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Monday, February 3, 2014

हिमपातकाले [इस्पात नगरी से 67]

कहाँ से आए बदरा

वीरों के पदचिन्ह
एक अकेला इस शहर में
बादल पे चलके आ
सूरज रे, जलते रहना
आसमां गा रहा है 
सूरज की गर्मी से पिघलकर फिर जमी बर्फ पानी का धोखा देकर वाहनों के लिए घातक सिद्ध होती है   
चम्बे दा गाँव, गाँव में दो प्रेमी रहते हैं 
ये कौन चित्रकार है 
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के 
आज रपट जाएँ तो हमें न उठइयो 
ये वादियाँ, ये फिज़ाएँ बुला रही हैं मुझे 
सीधे सीधे रास्तों को हल्का सा मोड दे दो   
तुम निडर हटो नहीं, तुम निडर डटो वहीं 
वादियाँ मेरा दामन
ये कहाँ आ गए हम 
पत्ता पत्ता बूटा बूटा 
गोरी चलो न हंस की चाल ज़माना दुश्मन है 
नीले गगन के तले
हर तरफ अब यही अफसाने हैं ... 


[सभी चित्र: अनुराग शर्मा :: Photos by Anurag Sharma]

Tuesday, October 29, 2013

केसर पुष्प - इस्पात नगरी से [66]

खबर आई कि केसर (Saffron, ज़ाफ़रान) की खेती की पहचान बनाने के उद्देश्य से आज 29 अक्तूबर 2013 मंगलवार को विस्सु, जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित केसर मेला धूमधाम से शुरू हुआ है। केसर उगाने वाले किसान और बड़ी संख्या में पर्यटक भी उपस्थित थे। 

डेढ़ सौ से अधिक सुगन्धित रसायनों से भरा केसर संसार के सबसे महंगे मसालों में से एक है। इसका स्वाद मुझे कोई ख़ास पसंद नहीं लेकिन कुछ साल पहले यूँ ही मन में आया कि पिट्सबर्ग की जलवायु इसे उगाने के अनुकूल होने का लाभ उठाया जाए। बोने के लिए खोज शुरू की गयी और फिर एक ऑनलाइन स्टोर से केसर की गांठें (bulbs) मंगाई गईं।


अगस्त के महीने में थैले में बंधी हुई गाँठें आ गईं। बाहर बाग में लग भी गईं। कुछ ही दिन में उनमें घास जैसे पत्ते भी आ गए। लेकिन उस साल बहुत बर्फ  पड़ने के कारण पौधे बर्फ से ढँके रहे। चूंकि गाँठें हर वर्ष नई हो जाती हैं इसलिए केसर के फूलों की आशा को अगले वर्ष पर टाल दिया गया। लेकिन उस साल जब कुछ नहीं उगा तो अगले साल नई गाँठें लाकर उन्हें घर के अंदर गमलों में उगाया। कुछ फूल आए तो साहस बढ़ा।

 





तरह तरह के गमले, तरह तरह के फूल

सीजन पूरा होने पर मैंने गमले खाली करके गाँठों को ज़मीन में प्रतिरोपित कर दिया और भूल गया। पिछले हफ्ते यूँ ही घास के बीच नीले फूल पर नज़र गई। अरे वाह, यह तो केसर ही लग रहा है।  

एक-एक करके कुछ फूल आ गए हैं। तीन तो खिल भी चुके हैं। एक दो दिन खिलकर मुरझा जाएंगे। तब तक केसर की खुशबू और सौन्दर्य का आनंद ले रहा हूँ।


नीली पंखुड़ियों के अंदर लंबे वाले गहरे लाल तन्तु ही केसर हैं, संसार का सबसे महंगा मसाला।

    
यह प्रयोग सफल होने के बाद मैंने अधिक मात्रा में केसर कंद मंगाए और खुद लगाने के अलावा 50 से अधिक कंद व गमले में लगे पौधे अपने मित्रों, पड़ोसियों, व सहकर्मियों में बाँटे जिनमें से चार-पाँच ने उनके पुष्पित होने की सूचना भी दी। 

[आलेख व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* कश्मीर का केसर

Tuesday, September 24, 2013

शव पुष्प - इस्पात नगरी से [65]

क्या आप बता सकते हैं कि भारत का सबसे बड़ा पुष्प कौन सा होता है और कहाँ पाया जाता है?
जब तक आप उत्तर ढूंढें, संसार के सबसे बड़े पुष्प से पिट्सबर्ग में हुई मेरी संक्षिप्त मुलाक़ात से प्राप्त जानकारी यहाँ देख और पढ़ सकते हैं. आकार के मामले में संसार का सबसे बड़ा सुमन भारत के पूर्व में सुमात्रा द्वीप में प्राकृतिक रूप से बड़ी मात्रा में उगता है. प्याज लहसुन की तरह ही यह पौधा गाँठ/बल्ब से उगता है. स्वरुप भी लगभग वैसा ही है. फूल के पल्लवित होने पर उसमें से तीव्र दुर्गन्ध भी आती है ताकि मक्खी, भुनगे आदि आकर उसके परागण में सहायता करें. गाँठ वाले अधिकाँश पौधों की तरह ही अपना पल्लवन-चक्र पूरा होने के बाद यह पौधा सतह के ऊपर से फिर गायब हो जाता है, अगले चक्र के इंतज़ार में. इस दुस्सह दुर्गन्ध के कारण ही इस फूल को शव पुष्प (corpse flower) कहा जाता है.

परिपक्व पौधे में बस एक ही पत्ती होती है

पौधे में पहला फूल आने में 8-10 साल लग जाते हैं

पित्त्स्बर्ग में खिलते पुष्प के मार्ग में मजाकिया सन्देश लगाने का प्रयास

शव पुष्प की ऊंचाई 8 से 20 फीट तक हो सकती है

सुमात्रा के बाहर पहली बार यह पुष्प लन्दन में 1889 में खिला और 1937 में पहली बार अमेरिका में.

कहीं सुना था, "जिन लाहौर नहीं वेख्या ..." लेकिन प्रकृति के चमत्कार देखकर लगता है कि अपने संसार को लाहौर तक सीमित रखना शायद ठीक नहीं है. फ़िप्स कंजर्वेटरी, पिट्सबर्ग में इस साल "रोमेरो" नामक एक फूल के विकास के क्रम को एक स्टिल कैमरा द्वारा नियमित अंतराल पर लिए गए चित्रों से एक विडिओ क्लिप में गतिमान किया गया है जो कि यूट्यूब पर उपलब्ध है और मैंने भी यहाँ एम्बेड की है ताकि आप उसका आनंद ले सकें.




[आलेख व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Thursday, August 8, 2013

मन गवाक्ष चित्रावली - इस्पात नगरी से [64]

कैनेडा, संयुक्त राज्य, जापान और भारत के कुछ अलग से द्वारों की पुरानी पोस्ट "मेरे मन के द्वार - चित्रावली" की अगली कड़ी प्रस्तुत है। प्रस्तुत सभी चित्र अमेरिका महाद्वीप में लिए गए हैं।
मन गवाक्ष फिर फिर खुल जाये, शीतल मंद समीर बहाये
(इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)
पंथी पथ के बदल रहे पर पथ बेचारे वहीं रहे
(इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

मन की बात सुना भी डालो, यह दर आज खुला ही छोड़ो
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

द्वार भव्य है भवन अनूठा, पर मेरा तो मन है झूठा
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

प्यार का इज़हार करेंगे, रोज़ तेरे द्वार करेंगे
(मांटेगो बे, जमयिका) 

द्वार बंद कोई आ न पाता, मन मानस सूना रह जाता
(ओचो रिओस, जमयिका)

स्वागत है ओ मीत हमारे, चरण पड़े जो इधर तुम्हारे
(ओचो रिओस, जमयिका) 

सपने में हर रोज़ जगाते, खुली आँख वह द्वार न पाते
(परदेस के एक भारतीय ढाबे में भित्तिचित्र)  

दिल खुला दर भी खुला था, मीत फिर भी न मिला था
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)

वसुंधरा का प्यार है, खुला-खुला ये द्वार है
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग) 

दस द्वारे को पिंजरा, तामे पंछी कौन, रहे को अचरज रहे, गए अचम्भा कौन। ~ (संत कबीर?)
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]

* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* मेरे मन के द्वार - चित्रावली

Thursday, April 26, 2012

परशु का आधुनिक अवतार - इस्पात नगरी से [57]


माँ बाप कई प्रकार के होते हैं। एक वे जो बच्चों की उद्दंडता को प्रोत्साहित करते हैं जबकि एक प्रकार वह भी है जो अपने बच्चे की ग़लती होने पर खुद भी शर्मिन्दा होकर क्षमायाचना करते हैं। एक माता पिता बच्चों के पढाई में ध्यान न देने पर उन्हें डराते हैं कि पढोगे नहीं तो घास काटनी पड़ेगी। हमारे यहाँ गर्मी का मौसम रहने तक लगभग प्रत्येक गृहस्वामी/स्वामिनी हफ़्ता दस दिन में अपने लॉन में घास काटता ही नज़र आता है। बेशक, हम भी शनिवार की कई दोपहरी यही महान कार्य करते बिताते हैं। मन में यह भी ख्याल आता है कि कहीं ज़्यादा पढ लेते तो शायद इस काम के भी न रहते। :(
एक दिन घास काटते-काटते देखा कि मेपल का एक छोटा वृक्ष बिजली, केबल, फ़ोन आदि के तारों तक पहुँचने लगा है। सोचा कि समय रहते छाँट दिया जाये तो बेहतर रहेगा। फिर भी मन में दुविधा थी। एक तो यह कि बोनसाई तो सैकड़ों बनाई थीं लेकिन बड़ा पेड़ काटने का कोई अनुभव नहीं था। दूसरी बात यह कि भरे पूरे वृक्ष पर चिड़ियों के घोंसले होने की पूरी सम्भावना थी। सर्दियों में ताम्बई लाल पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं। हर तरफ़ प्रकृति के शांत रंगों की बहार सी छा जाती है। ठंड अधिक बढने पर काले कौवों व छोटी गौरय्या के अलावा कोई चिड़िया यहाँ नहीं दिखती है। पेड़ काटने के लिये वही समय उपयुक्त लगा।
मौसम बदलने का इंतज़ार किया। पतझड़ आने पर जब चिड़ियाँ दक्षिण दिशा को और पत्ते रसातल को चले गये तब एक दिन परशुराम जी की जय बोलकर एक आधुनिक परशु, मेरा मतलब है कि एक चेन वाली आरी (चेनसॉ) खरीदी गई। लेकिन सिर मुंडाते ओले पड़ने वाली कहावत का पालन करते हुए जब आरी आई तो बर्फ़ गिरनी शुरू हो गयी। लेकिन अल्लाह के फ़ज़ल से इस बार सर्दियाँ हल्की रहीं और ऐसे कई सप्ताहांत आये जब बर्फ़ का नामोनिशाँ न था। जब कभी मौसम ठीक था तब या तो हम शहर में नहीं थे या घर पर नहीं थे। एक दिन जब पेड़ पूर्णतया पर्णहीन था, आसमान साफ़ था और हम भी ठलुआ थे, सोचा काग़ज़ी कविताई करने के बजाय कुछ ठोस काम किया जाये।
उस शुभ दिन हमने अपने लॉन के सबसे छोटे मेपल पर हाथ आज़मा लिया। आरी वाकई बहुत सशक्त है। पच्चीस फ़िट ऊँचे पेड़ का मुख्य तना काटने में कुछ सेकंड ही लगे। यद्यपि बाद में तने और शाखाओं को छोटे टुकड़ों में काटने में अधिक समय लगा और फिर हमारे आलस के चलते उन्हें हटाने में और भी समय लगा। कुल मिलाकर एक नया अनुभव। कुछ समय तक तो पेड़ का ठूंठ अजीब सा दिखता रहा। वसंत में सब वृक्षों पर नई पत्तियाँ आईं तो यह मेपल भी फिर से खिलखिलाने लगा है।



मेपल के नवपल्लव

मेपल छाँटने से पहले के इस आकाशीय परिदृश्य में वह छोटा मेपल और अन्य सारे वृक्ष दिख रहे हैं। इस मेपल के अलावा तीन अन्य मेपल हैं जो कि खासे बड़े हैं और उनके तने की परिधि 4-5 फ़ुट की होगी यद्यपि इस चित्र में उनमें से बड़े वाले दो अपने से कहीं बड़े ओक वृक्षों से ढंके होने के कारण पूरे दिखाई नहीं दे रहे। यह चित्र अभय जी और दराल जी की टिप्पणियों के बाद प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के अंतर्गत जोड़ा गया है।   


... और यह है हमारा तड़ित-परशु मौका-ए-वारदात पर। सात किलो वज़न,  डेढ फ़ुट का फल और कड़ी से कड़ी लकड़ी को मक्खन की तरह काटने में सक्षम।
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