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Sunday, September 28, 2014

सम्राट पतङ्गम [इस्पात नगरी से - 69]


एक हिन्दी कहावत है,"खाली दिमाग शैतान का घर"। कुछ दिमाग इसलिए खाली होते हैं कि उनके पास फुर्सत खूब होती है लेकिन कुछ इसलिए भी खाली होते हैं कि वे पुराने काम कर कर के जल्दी ही बोर हो जाते हैं और इसलिए कुछ नया, कुछ रोचक करने की सोचते हैं। कोई एवरेस्ट जैसी कठिन चोटियों पर चढ़ जाता है तो कोई बड़े मरुस्थल को अकेले पार करने निकल पड़ता है। उत्तरी-दक्षिणी ध्रुव अभियान हों या अन्तरिक्ष में हमारे चंद्रयान और मंगलयान जैसे अभियान, ये मानव की ज्ञान-पिपासा और जिजीविषा के साथ उसकी संकल्प शक्ति के भी प्रतीक हैं। बड़े लोगों के काम भी बड़े होते हैं, लेकिन सब लोग बड़े तो नहीं हो सकते न। तो उनके लिए इस संसार में छोटे-छोटे कामों की कमी नहीं है।

प्यूपा से तितली बनाते देखना भी एक ऐसा ही सरल परंतु रोचक काम है जो कि हमने पिछले दिनों किया। यह प्यूपा था एक मोनार्क बटरफ्लाई का जिसे हम सुविधा के लिए हिन्दी में सम्राट पतंग या सम्राट तितली कह सकते हैं। सम्राट तितली के गर्भाधान का समय वसंत ऋतु है। गर्मी के मौसम में अन्य चपल तितलियों के बीच अमेरिका और कैनेडा से मेक्सिको जाती हुई ये सम्राट तितलियाँ अपने बड़े आकार और तेज़ गति का कारण दूर से ही नज़र आ जाती हैं।

तितली और पतंगे कीट वर्ग के एक ही परिवार (order: Lepidoptera) के अंग हैं और उनकी जीवन प्रक्रिया भी मिलती-जुलती है। तितली का जीवनकाल उसकी जाति के अनुसार एक सप्ताह से लेकर एक वर्ष तक होता है।

तितली के अंडे गोंद जैसे पदार्थ की सहायता से पत्तों से चिपके रहते हैं। कुछ सप्ताह में अंडे से लार्वा (larvae या caterpillars) बन जाता है जो सामान्य रेंगने वाले कीटों जैसा होता है। लार्वा जमकर खाता है और समय आने पर प्यूपा (pupa) में बदल जाता है। प्यूपा बनाने की प्रक्रिया पतंगों में भी होती है। प्यूपा एक खोल में बंद होता है। पतंगे के प्यूपा के खोल को ककून (cocoon) तथा तितली के प्यूपा के खोल को क्राइसेलिस (chrysalis) कहते हैं। ज्ञातव्य है कि ककून से रेशम बनता है। क्राइसेलिस का ऐसा कोई उपयोग नहीं मिलता। क्राइसेलिस भी गोंद जैसे प्राकृतिक पदार्थ द्वारा अपने मेजबान पौधे से चिपका रहता है।

अब आता है तितली के जीवन-चक्र का सबसे रोचक भाग, जब क्राइसेलिस में बंद प्यूपा एक खूबसूरत तितली में बदलता है। प्यूपा के रूपान्तरण की इस जादुई प्रक्रिया को मेटमोर्फ़ोसिस (metamorphosis) कहते हैं। रूपान्तरण काल में प्यूपा अपने खोल में बंद होता है। इसी अवस्था  में प्यूपा के पंख उग आते हैं और तेज़ी से बढ़ते रहते हैं। भगवा और काले रंग के पंखों वाली खूबसूरत सम्राट तितली पिट्सबर्ग जैसे नगर से हजारों मील दूर मेक्सिको की मिचोआकन (Michoacán) पहाड़ियों में स्थित अपने मूल निवास तक हर साल पहुँचती हैं। सामान्यतः नवंबर से मार्च तक ये तितलियां मेक्सिको में रहती हैं। और उसके बाद थोड़ा-थोड़ा करके फिर से उत्तर की ओर हजारों मील तक अमेरिका और दक्षिण कैनेडा तक बढ़ आती हैं।

सम्राट तितलियाँ शक्तिशाली होती हैं। अधिकांश तितलियों की तरह उनके चारों पंख भी एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। लेकिन इनके पंख सामान्य तितलियों की तरह छूने से झड़ जाने वाले नाज़ुक नहीं होते हैं।

ऐसा समझा जाता है कि सम्राट तितलियों में धरती के चुंबकीय क्षेत्र और सूर्य की स्थिति की सहायता से मार्गदर्शन के क्षमता होती हैं। हजारों मील की दूरी सुरक्षित तय करने वाली सम्राट तितलियाँ जहरीली भी होती हैं। विषाक्तता उनमें पाये जाने वाले कार्डिनेलाइड एग्लीकॉन्स रसायनों के कारण है जो इनकी पाचनक्रिया में भी सहायक होते हैं। इस विष के कारण वे कीटों और चिड़ियों का शिकार बनाने से बच पाती हैं।  ये तितलियाँ काफी ऊँचाई पर उड़ सकती हैं और ऊर्जा संरक्षण के लिए गर्म हवाओं (jet streams) की सहायता लेती हैं।

सम्राट तितलियों का अभयारण्य (Monarch Butterfly Biosphere Reserve) एक विश्व विरासत स्थल है जहां का अधिकतम तापमान 22° सेन्टीग्रेड (71° फहरनहाइट) तक जाता है। राजधानी मेक्सिको नगर से 100 किलोमीटर उत्तरपूर्व स्थित यह क्षेत्र मेक्सिको देश का सबसे ऊँचा भाग है।

थोड़ा ढूँढने पर यूट्यूब पर एक वीडियो मिला जिसमें यह पूरी प्रक्रिया बड़ी सुघड़ता से कैमरा में कैद की गई है, आनंद लीजिये:


[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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इस्पात नगरी से - श्रृंखला
तितलियाँ

Friday, April 25, 2014

पंप हाउस - इस्पात नगरी से 68

सभी श्रमजीवियों को श्रमदिवस पर शुभकामनायें।
यह पम्पहाउस आज श्रमिकों का श्रद्धांजलिस्थल  है।
इस्पात नगरी पिट्सबर्ग की नदियों के किनारे आज भी स्टील मिलों के अवशेष बिखरे हुए हैं। मोनोङ्गहेला (Monongahela) नदी के किनारे बसा होमस्टेड तो पिट्सबर्ग के इस्पात निर्माण की कहानी का एक ऐतिहासिक अध्याय रहा है। विश्व प्रसिद्ध उद्योगपति एण्ड्र्यू कार्नेगी की कार्नेगी स्टील कंपनी का होमस्टेड कारख़ाना अन्य कारखानों से बेहतर था। इसके श्रमिक भी अधिक कुशल थे और यहाँ नई तकनीक के प्रयोग पर खासा ज़ोर था।

यह भवन हर रविवार को टूअर के लिए खुलता है।

प्रबंधन और कर्मियों की तनातनी लगातार बनी हुई थी जिसके कारण हड़ताल और तालाबंदी भी आम थे। 1889 की हड़ताल के बाद हुए तीन-साला समझौते के फलस्वरूप श्रमिकों के संघ अमलगमेटेड असोसियेशन ऑफ आइरन एंड स्टील वर्कर्स (Amalgamated Association of Iron and Steel Workers) को प्रबंधन द्वारा मान्यता मिली। इसके साथ ही होमस्टेड मिल के कर्मियों का वेतन भी देश के अन्य इस्पात श्रमिकों से बहुत अधिक बढ़ गया। तीन साल बाद करार पूरा होने पर खर्च बचाने को तत्पर मिलमालिक एंड्रयू कार्नेगी, कंपनी के अध्यक्ष हेनरी क्ले फ्रिक के सहयोग से संघ को तोड़ने के प्रयास में जुट गया।

घटना की विवरणपट्टी के पीछे मोनोङ्गहेला नदी पर बना इस्पात का पुरातन रेलपुल

मजदूरों ने तालाबंदी कर दी तो कार्नेगी ने पिंकरटन नेशनल डिटेक्टिव एजेंसी (Pinkerton National Detective Agency) को अपनी मिल का कब्जा लेने के लिए नियुक्त किया। 6 जुलाई 1892 को जब पिंकरटन रक्षकों का पोत मिल के साथ नदी के किनारे लगा तो श्रमिकों ने कड़ा विरोध किया। संघर्ष में सात श्रमिक और तीन रक्षकों की मृत्यु हुई और दर्जनों लोग घायल हुए। दो अन्य श्रमिकों की मृत्यु बाद में हुई। इस घटना के कारण स्थिति पर काबू पाने के लिए किए गए फ्रिक के अनुरोध पर आठ हज़ार से अधिक नेशनल गार्ड घटनास्थल पर पहुँच गए और मिल के साथ पूरी बस्ती को कब्जे में ले लिया। स्थिति नियंत्रण में आ गई।


एक बड़ी सी केतली, नहीं तब की अत्याधुनिक भट्टी


23 जुलाई 1892 को अराजकतावादी (anarchist) अलेक्ज़ेंडर बर्कमेन ने श्रमिकों के खून का बदला लेने के लिए फ्रिक के दफ्तर में घुसकर उसकी गर्दन पर दो गोलियां मारीं और बाद में चाकू से भी कई वार किए। फ्रिक को बचा लिया गया। वह एक हफ्ते में ही अस्पताल से छूटकर काम पर आ गया। बर्कमेन के हमले की वजह से मजदूरों का पक्ष काफी कमजोर पड़ा। उसे 22 वर्ष का कारावास हुआ और नवंबर 1892 तक सभी मजदूरों ने हड़ताल खत्म कर दी। श्रमिक संघ ऐसे समाप्त हुआ कि उसके बाद 1930 में ही वापस अस्तित्व में आ सका।

अपने कलाप्रेम के लिए देश भर में विख्यात फ्रिक को इस घटना के कारण अमेरिका के सबसे घृणित व्यक्ति और सबसे खराब सीईओ (Worst American CEOs of All Time) जैसे नाम दिये गए।

फ्रिक ने अपनी वसीयत में 150 एकड़ ज़मीन और बीस करोड़ (200,000,000) डॉलर का न्यास पिट्सबर्ग पालिका को दान किया। उसकी पत्नी एडिलेड की मृत्यु के बाद उनका कला संग्रहालय भी जनता के लिए खोल दिया गया। 1990 में उनकी पुत्री हेलेन ने उनकी अन्य संपत्ति दान करके पिट्सबर्ग के फ्रिक कला और इतिहास केंद्र (Frick Art and Historical Center) की स्थापना की।   

1892 की हड़ताल और तालाबंदी के स्थल पर आज "मनहाल का पंपहाउस" इस्पात श्रमिकों का स्मारक बनकर खड़ा है। घटनास्थल के कुछ अन्य चित्र यहाँ हैं। प्रत्येक चित्र को क्लिक करके बड़ा किया जा सकता है।


प्रकृति, जल, इस्पात, श्रम, निवेश, तकनीक और इतिहास

इस्पात के पुर्जे आज भी बिखरे हैं

एक पुरानी मिल के अवशेष

आलेख व सभी चित्र: अनुराग शर्मा द्वारा :: Pictures and article: Anurag Sharma

Friday, August 2, 2013

कैन्टन एवेन्यू, बीचव्यू - इस्पात नगरी से [63]

बरेली में थे तो सब कुछ समतल था। बिहारीपुर का ढलान, या कुल्हाड़ापीर की चढ़ाई से आगे यदि कोई सोचता तो शायद छावनी की हिलट्रेक रोड ही थी। हाँ, नैनीताल बहुत दूर नहीं था। सैर के लिए लोग गर्मियों में अक्सर वहाँ जाते थे। धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए पूर्णागिरी देवी का दर्शन पर्वत यात्रा का कारक बनाता था। इस शृंखला की पिछली कड़ी में हमने पिट्सबर्ग के हिमाच्छादित कुटिल पथों के नैसर्गिक सौन्दर्य को देखा था। आज फिर से हम पिट्सबर्ग की सैर पर निकले हैं। ऊंची, नीची, टेढ़ी मेढ़ी सड़कें। सावन के महीने में बर्फ तो नहीं है लेकिन टेढ़ापन मौसम से कहाँ बदलता है?


आपके साथ आज हम चलते हैं कैन्टन एवेन्यू (Canton Avenue) देखने जिसका ढलान (grade) 37% है। यह मामूली सी दिखने वाली संख्या किसी सड़क की चढ़ाई के लिए काफी बड़ी है, इतनी बड़ी कि सामान्यतः नज़रअंदाज़ रहने वाली मामूली सी सड़क कैन्टन एवेन्यू को आधिकारिक रूप से अमेरिका की सबसे ढलवां सड़क होने का गौरव प्राप्त है।

गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकोर्ड्स के अनुसार न्यूज़ीलैंड की बाल्डविन स्ट्रीट संसार की सबसे खड़ी चढ़ाई है। लेकिन जब उसके ढलान की बात आती है तब स्पष्ट होता है कि वास्तव में कैन्टन एवेन्यू ही संसार की सबसे खड़ी चढ़ाई वाली सड़क है। शुक्र है कि अमेरिका में वोट पाने के लिए इन मुद्दों की आक्रामक दूकानदारी का रिवाज नहीं है वरना ...  

कैन्टन एवेन्यू की कुल लंबाई 192 मीटर या 630 फुट है। इस पर तीन मीटर की क्षैतिज दूरी तय करने पर आप स्वतः ही 1.1 मीटर चढ़ लेते हैं। पिट्सबर्ग के लोगों को यह सड़क देखने पर कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि बहुत से घरों के घास के मैदान भी इससे अधिक ढलवां होते हैं। लेकिन (ड्राइवेबल) सड़क की बात और है। सड़क के किनारे का फुटपाथ दरअसल सीढ़ियाँ हैं।

पिट्सबर्ग की "डर्टी दजन" साइकल रेस 12 चढ़ाइयों से गुजरती है जिनमें कैन्टन एवेन्यू सबसे महत्वपूर्ण है। इसी साइकिल दौड़ के कैन्टन एवेन्यू खंड की एक वीडियो क्लिप यूट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत है।


सम्बन्धित कड़ियाँ
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* डर्टी दजन साइकल रेस
* कैन्टन एवेन्यू - विकीपीडिया
 

Sunday, January 27, 2013

सुखदाम् वरदाम् मातरम् - इस्पात नगरी से [62]

(अनुराग शर्मा)

क्रिसमस के आसपास से जो हिमपात आरंभ हुआ वह अभी भी अपना श्वेत सौंदर्य बिखेर रहा है। चाँदनी रातों की तो बात ही अवर्णनीय है लेकिन दिन का सौंदर्य भी कोई कम नहीं। श्वेत-श्याम प्रकृति कितनी सुंदर हो सकती है इसका अनुभव देखे बिना नहीं किया जा सकता। आइये एक चित्रमयी सैर पर निकलते हैं
घर जाने का मार्ग

घर से आने का मार्ग

बर्फ की नदी का किनारा

लवणों द्वारा बर्फ पिघलाने के बाद की सड़क

बर्फ पिघलने से पहले श्वेत वालुका सा पथ 

वैदिक ऋषि केवल उषा के सौन्दर्य, मरुत के वेग, वरुण की असीमता पर ही मुग्ध नहीं होता, वह अरण्यानी अर्थात् प्रकृति की ग्राम से दूरी का अनुभव करके भी वियोग से व्याकुल हो जाता हैः
अरण्यान्रण्यान्सौ या प्रेवनश्यति, कथं ग्रामं न प्रच्छसि न त्वाभीरिवविन्दति।
(हे अरण्यानी तुम हमारी दृष्टि से कैसे तिरोहित हो जाती हो, इतनी दूर चली जाती हो कि हम तुम्हें देख नहीं पाते। तुम ग्राम जाने का मार्ग क्यों नहीं पूछती हो ? क्या अकेले रहने में भय की अनुभूति नहीं होती ?) ~ महादेवी वर्मा
शुभ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम्

घर के काष्ठ चबूतरे का हाल 

बच्चों का क्लब हाउस उपेक्षित पड़ा है

शस्य-श्यामलां मातरम्

सम्बन्धित कड़ियाँ
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Saturday, November 3, 2012

तूफ़ान, बर्फ और उत्सव - इस्पात नगरी से [61]

भारतीय पर्व पितृपक्ष की याद दिलाने वाला हैलोवीन पर्व गुज़ारे हुए कुछ समय हुआ लेकिन हाल में आये भयंकर तूफ़ान सैंडी के कारण अधिकाँश बस्तियों ने उत्सव का दिन टाल दिया था। हमारे यहाँ यह उत्सव आज मनाया गया। खूबसूरत परिधानों में सजे नन्हे-नन्हे बच्चे घर घर जाकर "ट्रिक और ट्रीट" कहते हुए कैंडी मांग रहे थे। विभिन्न स्कूलों व कार्यालयों में यह उत्सव कल या परसों बनाया गया था जब सभी बड़े और बच्चे तरह तरह के भेस बनाए हुए टॉफियों के लेनदेन में व्यस्त थे। आसपास से कुछ चित्रों के साथ आपको हैलोवीन की शुभकामनाएं!



 सैंडी तूफ़ान ने अमेरिका के न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी समेत कुछ क्षेत्रों में काफ़ी तबाही मचाई और अमेरिका के सबसे बड़े नगर का कामकाज बिलकुल रोक दिया। इसका असर हमारे यहाँ भी हुआ। हफ्ते भर चलने वाली बरसात के साथ-साथ आसपास के कुछ क्षेत्रों में समयपूर्व हिमपात देखने को मिला। आपके लिए एक हिमाद्री क्लिप एक नज़दीकी राजमार्ग से:

सम्बंधित कड़ियाँ
* हैलोवीन - प्रेतों की रात्रि [२०११]
* प्रेतों का उत्सव [२००९]
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

[वीडियो व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा]

Saturday, September 29, 2012

ये सुबह सुहानी हो - इस्पात नगरी से [60]


शामे-अवध और सुबहे बनारस की खूबसूरती के बारे में आपने सुना ही होगा लेकिन पिट्सबर्ग की सुबह का सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा ही है। किसी अभेद्य किले की ऊँची प्राचीर सरीखे ऊँचे पर्वतों से अठखेलियाँ करती काली घटायें मानो आकाश में कविता कर रही होती हैं। भोर के चान्द तारों के सौन्दर्य दर्शन के बाद सुबह के बादलों को देखना किसी दैवी अनुभूति से कम नहीं होता है।  
मोनोंगैहेला नदी की धारा के ऊपर वाष्पित जल की एक धारा सी बहती दिखती है। लेकिन पुल के ठीक सामने की पहाड़ी को बादलों की चिलमन ने जैसे छिपा सा लिया है। चिड़ियाघर के लिये बायें और बड़े बाज़ार के लिये दायें, जहाँ जाकर मोनोंगैहेला का संगम ऐलेगनी नदी से होगा और फिर वे दोनों ही अपना अस्तित्व समाप्त करके आगे से ओहायो नदी बनकर बह जायेंगी।

लीजिये हम नगर की ओर जाने के बजाय चिड़ियाघर की ओर मुड़ गये। सामने की सड़क का नाम तो एकदम सटीक ही लग रहा है। भाँति-भाँति के वन्य प्राणी जब नगर के भीतर एक ही जगह पर चौपाल सजा रहे हों तो उसे "वन वाइल्ड प्लेस" से बेहतर भला क्या नाम दिया जा सकता है।
अरुणोदय की आहट सुनते ही बादलों की चादर झीनी पड़ने लगती है और अब तक सोयी पड़ी लाल सुनहरी किरणों से शस्य श्यामला धरती प्रकाशित होकर नृत्य सा करने लगती है।  हरी भरी वादी के किनारे की इस सड़क पर सुबह की सैर का आनन्द ही कुछ और है।

सूर्यदेव के दस्तक देने के बाद भी जहाँ कुछ बादल छँट रहे हैं वहीं कुछ ने मानो डटे रहने का प्रण लिया है। इसी जुगलबन्दी से आकाश में बना है यह खूबसूरत चित्र। नीचे नदी और पुल दोनों ही नज़र आ रहे हैं। आकाश में भले ही कालिमा अभी दिख रही है, नदी का जल पूरा स्वर्णिम हो गया है। इस्पात नगरी है तो जलधारा की जगह लावा बहने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्लिक करके सभी चित्रों को बड़ा किया जा सकता है। 
आपका दिन शुभ हो!
  

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इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Thursday, April 26, 2012

परशु का आधुनिक अवतार - इस्पात नगरी से [57]


माँ बाप कई प्रकार के होते हैं। एक वे जो बच्चों की उद्दंडता को प्रोत्साहित करते हैं जबकि एक प्रकार वह भी है जो अपने बच्चे की ग़लती होने पर खुद भी शर्मिन्दा होकर क्षमायाचना करते हैं। एक माता पिता बच्चों के पढाई में ध्यान न देने पर उन्हें डराते हैं कि पढोगे नहीं तो घास काटनी पड़ेगी। हमारे यहाँ गर्मी का मौसम रहने तक लगभग प्रत्येक गृहस्वामी/स्वामिनी हफ़्ता दस दिन में अपने लॉन में घास काटता ही नज़र आता है। बेशक, हम भी शनिवार की कई दोपहरी यही महान कार्य करते बिताते हैं। मन में यह भी ख्याल आता है कि कहीं ज़्यादा पढ लेते तो शायद इस काम के भी न रहते। :(
एक दिन घास काटते-काटते देखा कि मेपल का एक छोटा वृक्ष बिजली, केबल, फ़ोन आदि के तारों तक पहुँचने लगा है। सोचा कि समय रहते छाँट दिया जाये तो बेहतर रहेगा। फिर भी मन में दुविधा थी। एक तो यह कि बोनसाई तो सैकड़ों बनाई थीं लेकिन बड़ा पेड़ काटने का कोई अनुभव नहीं था। दूसरी बात यह कि भरे पूरे वृक्ष पर चिड़ियों के घोंसले होने की पूरी सम्भावना थी। सर्दियों में ताम्बई लाल पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं। हर तरफ़ प्रकृति के शांत रंगों की बहार सी छा जाती है। ठंड अधिक बढने पर काले कौवों व छोटी गौरय्या के अलावा कोई चिड़िया यहाँ नहीं दिखती है। पेड़ काटने के लिये वही समय उपयुक्त लगा।
मौसम बदलने का इंतज़ार किया। पतझड़ आने पर जब चिड़ियाँ दक्षिण दिशा को और पत्ते रसातल को चले गये तब एक दिन परशुराम जी की जय बोलकर एक आधुनिक परशु, मेरा मतलब है कि एक चेन वाली आरी (चेनसॉ) खरीदी गई। लेकिन सिर मुंडाते ओले पड़ने वाली कहावत का पालन करते हुए जब आरी आई तो बर्फ़ गिरनी शुरू हो गयी। लेकिन अल्लाह के फ़ज़ल से इस बार सर्दियाँ हल्की रहीं और ऐसे कई सप्ताहांत आये जब बर्फ़ का नामोनिशाँ न था। जब कभी मौसम ठीक था तब या तो हम शहर में नहीं थे या घर पर नहीं थे। एक दिन जब पेड़ पूर्णतया पर्णहीन था, आसमान साफ़ था और हम भी ठलुआ थे, सोचा काग़ज़ी कविताई करने के बजाय कुछ ठोस काम किया जाये।
उस शुभ दिन हमने अपने लॉन के सबसे छोटे मेपल पर हाथ आज़मा लिया। आरी वाकई बहुत सशक्त है। पच्चीस फ़िट ऊँचे पेड़ का मुख्य तना काटने में कुछ सेकंड ही लगे। यद्यपि बाद में तने और शाखाओं को छोटे टुकड़ों में काटने में अधिक समय लगा और फिर हमारे आलस के चलते उन्हें हटाने में और भी समय लगा। कुल मिलाकर एक नया अनुभव। कुछ समय तक तो पेड़ का ठूंठ अजीब सा दिखता रहा। वसंत में सब वृक्षों पर नई पत्तियाँ आईं तो यह मेपल भी फिर से खिलखिलाने लगा है।



मेपल के नवपल्लव

मेपल छाँटने से पहले के इस आकाशीय परिदृश्य में वह छोटा मेपल और अन्य सारे वृक्ष दिख रहे हैं। इस मेपल के अलावा तीन अन्य मेपल हैं जो कि खासे बड़े हैं और उनके तने की परिधि 4-5 फ़ुट की होगी यद्यपि इस चित्र में उनमें से बड़े वाले दो अपने से कहीं बड़े ओक वृक्षों से ढंके होने के कारण पूरे दिखाई नहीं दे रहे। यह चित्र अभय जी और दराल जी की टिप्पणियों के बाद प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के अंतर्गत जोड़ा गया है।   


... और यह है हमारा तड़ित-परशु मौका-ए-वारदात पर। सात किलो वज़न,  डेढ फ़ुट का फल और कड़ी से कड़ी लकड़ी को मक्खन की तरह काटने में सक्षम।
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Saturday, April 21, 2012

ओहायो में सरस्वती दर्शन - इस्पात नगरी से [56]

सिनसिनाटी डाउनटाउन की एक इमारत पर भित्तिकला का नमूना
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या भले ही कम हो, भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। होली, दीवाली, रामनवमी हो, चाहे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या गान्धी जयंती, भारत से सम्बन्धित समारोह लगभग हर नगर में होते हैं। उत्सव भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। इन समारोहों में अन्य कार्यक्रमों के साथ साहित्य, संगीत, नृत्य आदि के कार्यक्रम भी चलते हैं। ऐसा नहीं कि यह सब बुज़ुर्गों द्वारा ही संचालित होता हो, नई पीढी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहने में गर्व का अनुभव करती है। इस सांस्कृतिक गंगा से छलकती बून्दें अक्सर हमें भी भिगोती रहती हैं। इस रामनवमी पर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम के सिलसिले में ओहायो राज्य के सिनसिनाटी नगर में जाना हुआ। चार-पाँच सौ मील की दूरी को सड़क मार्ग से तय करना अमेरिका में सामान्य सी बात है। सिनसिनाटी मैं पहले भी जा चुका हूँ इसलिये कोई खास बात नहीं थी, मगर फिर भी एक खास बात तो थी। प्रसिद्ध कवयित्री और ब्लॉगर लावण्या जी से परिचय के बाद यह पहली सिनसिनाटी यात्रा थी।

अपनी लावण्या दीदी के घर अनुराग शर्मा
लावण्या जी की ममतामयी आवाज़ फ़ोन पर तो सुनता ही रहा हूँ। उनके साक्षात्कार का मौका छोड़ना नहीं चाहता था। उनकी कवितायें हों या प्रसिद्ध टीवी सीरियल महाभारत के लिये लिखे हुए दोहे, सभी अप्रतिम हैं। लेकिन एक कवयित्री से कहीं आगे वे एक उदार हृदय और महान व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं। सुबह जल्दी उठकर घर से निकल पड़े और कुछ घंटों की ड्राइविंग के बाद महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी पण्डित नरेन्द्र शर्मा की इस बिटिया के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

लावण्या जी एक कलाकार की कूची से

लावण्या जी को बिल्कुल वैसा ही पाया जैसा उनके बारे में सोचा था। उनके पति, बेटी, दामाद और सबका प्यारा नन्हा नोआ, इन सबके बारे में सुनते रहे थे, फ़ेसबुक पर उनसे मुलाकात भी होती रहती थी पर आमने-सामने मिलने की बात ही और है। बहुत खुशी हुई। बच्चे और दामादजी मिलकर मोनोपली खेलते रहे और बड़े लोगों की बातों का सिलसिला बैठक से शुरू होकर लावण्या जी के बनाये शुद्ध शाकाहारी भारतीय भोजन के साथ भी जारी रहा। सभी बहुत अच्छा था। उत्तर प्रदेश के अन्दाज़ में बनी दाल की खुशबू से ही माँ और मामियों की रसोई की याद आ गई।

सिनसिनाटी की यह घोड़ागाड़ी मानो किसी परीकथा से निकली है
पहली भेंट थी मगर ऐसा लग रहा था मानो हम लोगों की पहचान बहुत पुरानी हो। न जाने कितनी बातें थीं मगर समय तो सीमित ही था। शाम के कार्यक्रम में भाग लेने से पहले हमें होटल में चैक इन भी करना था। बातों-बातों में पता लगा कि कार्यक्रम के आयोजक लावण्या जी के परिचित हैं और वे स्वयं भी सपरिवार इस समारोह में आ रही हैं इसलिये उस समय उनसे विदा लेना बहुत भारी नहीं लगा। शाम को अत्यधिक भीड़ और अलग-अलग सीटिंग व्यवस्था बिना मिले ही ऑडिटोरियम से बाहर निकलने का सबब बनी। मगर लावण्या जी का आमंत्रण भी था और हम सब का मन भी, सो अगले दिन घर-वापसी के समय हम फिर उनके घर होते हुए आये। चाय नाश्ते के साथ उनकी रचनायें, माता-पिता से सम्बन्धित स्मृतियाँ, चित्र, कला आदि के दर्शन किये। पंडित जी की हस्तलिपि भी देखने को मिली। सभी परिजनों से विदा लेकर आते समय बड़े भाई, बहनों के घर से वापस आते समय की तरह ही वापसी में हमारे पास बहुत से उपहार थे। लेकिन सबसे बड़ा उपहार था एक बड़ी बहन का स्नेहसिक्त आशीर्वाद!
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* पण्डित नरेन्द्र शर्मा - कविता कोश
* रथवान का पाठ - लावण्या जी द्वारा
* लावण्या शाह - वेबसाइट

Monday, February 20, 2012

पिट्सबर्ग के खूबसूरत ऑर्किड्स - इस्पात नगरी से [55]


फूलों की सुन्दरता किसी पत्थर हृदय को भी द्रवित करने के लिये काफ़ी होती है। फूलों की असंख्य प्रजातियों में भी अपनी विविधता के कारण अनेक वर्ग-प्रवर्ग हैं। ऐसा ही एक प्रवर्ग है ऑर्किड (ओर्किड, Orchidaceae, Orchid)।




फूलो के पौधों का सबसे बड़ा परिवार ऑर्किड समुदाय ही है। ऑर्किड कई वर्षों तक जीवित रहते हैं और भूमि के साथ-साथ पेड़ों पर भी उगते हैं। कई ऑर्किड कुकुरमुत्तों की तरह मृतजीवी भी होते हैं और वृक्षों की टूटी टहनियों आदि पर पनपते हैं। ऐसे और्किडों में पर्णहरिम (क्लोरोफ़िल) नही होता।



वृक्षों पर पनपने वाले ऑर्किड अपनी जड़ों की बाहरी तह के जलशोषक तंतुओं द्वारा नमी ग्रहण करते हैं। शुष्क मरुस्थलों के सिवाय आर्किड सारी दुनिया में पाये जाते हैं - विशेषकर समोष्ण वनों में। और्किडों की लगभग 450 प्रजातियाँ (जॉनर) और 15,000 जातियाँ (स्पीशीज़) हैं तथा ये सब एक ही कुल (फ़ैमिली) के अंतर्गत हैं।



और्किडों के फूल चिरजीवी होने के लिए प्रसिद्ध हैं। यदि परागण न हो तो ये महीने डेढ़ महीने अथवा इससे भी अधिक दिनों तक पौधे पर सुरक्षित रहते हैं। परागण के पश्चात् फूल मुर्झा जाते हैं और इनसे अत्यंत नन्हे बीज बनते हैं। अधिकांश और्किडों की जड़ों में कवक (फ़ंगस) पाये जाये है जोकि इनके बीजों के अंकुरण में सहायता करते हैं।




छोटे भाई अमित शर्मा ने कुछ महत्वपूर्ण भारतीय ऑर्किडों के विषय में एक पोस्ट "ऋषभक का परिचय" के नाम से सामूहिक ब्लॉग निरामिष पर लिखी है, मेरा सुझाव - अवश्य पढिये!

साथ ही पिछले दिनों प्रसिद्ध साहित्यकार पंकज सुबीर जी की कहानी एक रात को स्वर देने का अवसर मिला जिसके ऑडियो को रेडियो प्लेबैक इंडिया के साथी सजीव सारथी ने साउंड एफ़ैक्ट्स द्वारा निखार दिया है। आप चाहें तो हमारे इस प्रयास का आनन्द भी अवश्य उठाइये।

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आप सभी को पिट्सबर्ग से हार्दिक शुभकामनायें!

[ओर्किडों के सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Orchids captured by Anurag Sharma at Phipps Conservatory]

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* इस्पात नगरी से - श्रृंखला