शामे-अवध और सुबहे बनारस की खूबसूरती के बारे में आपने सुना ही होगा लेकिन पिट्सबर्ग की सुबह का सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा ही है। किसी अभेद्य किले की ऊँची प्राचीर सरीखे ऊँचे पर्वतों से अठखेलियाँ करती काली घटायें मानो आकाश में कविता कर रही होती हैं। भोर के चान्द तारों के सौन्दर्य दर्शन के बाद सुबह के बादलों को देखना किसी दैवी अनुभूति से कम नहीं होता है।
मोनोंगैहेला नदी की धारा के ऊपर वाष्पित जल की एक धारा सी बहती दिखती है। लेकिन पुल के ठीक सामने की पहाड़ी को बादलों की चिलमन ने जैसे छिपा सा लिया है। चिड़ियाघर के लिये बायें और बड़े बाज़ार के लिये दायें, जहाँ जाकर मोनोंगैहेला का संगम ऐलेगनी नदी से होगा और फिर वे दोनों ही अपना अस्तित्व समाप्त करके आगे से ओहायो नदी बनकर बह जायेंगी।
लीजिये हम नगर की ओर जाने के बजाय चिड़ियाघर की ओर मुड़ गये। सामने की सड़क का नाम तो एकदम सटीक ही लग रहा है। भाँति-भाँति के वन्य प्राणी जब नगर के भीतर एक ही जगह पर चौपाल सजा रहे हों तो उसे "वन वाइल्ड प्लेस" से बेहतर भला क्या नाम दिया जा सकता है।
अरुणोदय की आहट सुनते ही बादलों की चादर झीनी पड़ने लगती है और अब तक सोयी पड़ी लाल सुनहरी किरणों से शस्य श्यामला धरती प्रकाशित होकर नृत्य सा करने लगती है। हरी भरी वादी के किनारे की इस सड़क पर सुबह की सैर का आनन्द ही कुछ और है।
सूर्यदेव के दस्तक देने के बाद भी जहाँ कुछ बादल छँट रहे हैं वहीं कुछ ने मानो डटे रहने का प्रण लिया है। इसी जुगलबन्दी से आकाश में बना है यह खूबसूरत चित्र। नीचे नदी और पुल दोनों ही नज़र आ रहे हैं। आकाश में भले ही कालिमा अभी दिख रही है, नदी का जल पूरा स्वर्णिम हो गया है।
इस्पात नगरी है तो जलधारा की जगह लावा बहने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्लिक करके सभी चित्रों को बड़ा किया जा सकता है।
|
आपका दिन शुभ हो! |
सम्बन्धित कड़ियाँ
इस्पात नगरी से - श्रृंखला