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Sunday, January 27, 2013

सुखदाम् वरदाम् मातरम् - इस्पात नगरी से [62]

(अनुराग शर्मा)

क्रिसमस के आसपास से जो हिमपात आरंभ हुआ वह अभी भी अपना श्वेत सौंदर्य बिखेर रहा है। चाँदनी रातों की तो बात ही अवर्णनीय है लेकिन दिन का सौंदर्य भी कोई कम नहीं। श्वेत-श्याम प्रकृति कितनी सुंदर हो सकती है इसका अनुभव देखे बिना नहीं किया जा सकता। आइये एक चित्रमयी सैर पर निकलते हैं
घर जाने का मार्ग

घर से आने का मार्ग

बर्फ की नदी का किनारा

लवणों द्वारा बर्फ पिघलाने के बाद की सड़क

बर्फ पिघलने से पहले श्वेत वालुका सा पथ 

वैदिक ऋषि केवल उषा के सौन्दर्य, मरुत के वेग, वरुण की असीमता पर ही मुग्ध नहीं होता, वह अरण्यानी अर्थात् प्रकृति की ग्राम से दूरी का अनुभव करके भी वियोग से व्याकुल हो जाता हैः
अरण्यान्रण्यान्सौ या प्रेवनश्यति, कथं ग्रामं न प्रच्छसि न त्वाभीरिवविन्दति।
(हे अरण्यानी तुम हमारी दृष्टि से कैसे तिरोहित हो जाती हो, इतनी दूर चली जाती हो कि हम तुम्हें देख नहीं पाते। तुम ग्राम जाने का मार्ग क्यों नहीं पूछती हो ? क्या अकेले रहने में भय की अनुभूति नहीं होती ?) ~ महादेवी वर्मा
शुभ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम्

घर के काष्ठ चबूतरे का हाल 

बच्चों का क्लब हाउस उपेक्षित पड़ा है

शस्य-श्यामलां मातरम्

सम्बन्धित कड़ियाँ
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Saturday, September 29, 2012

ये सुबह सुहानी हो - इस्पात नगरी से [60]


शामे-अवध और सुबहे बनारस की खूबसूरती के बारे में आपने सुना ही होगा लेकिन पिट्सबर्ग की सुबह का सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा ही है। किसी अभेद्य किले की ऊँची प्राचीर सरीखे ऊँचे पर्वतों से अठखेलियाँ करती काली घटायें मानो आकाश में कविता कर रही होती हैं। भोर के चान्द तारों के सौन्दर्य दर्शन के बाद सुबह के बादलों को देखना किसी दैवी अनुभूति से कम नहीं होता है।  
मोनोंगैहेला नदी की धारा के ऊपर वाष्पित जल की एक धारा सी बहती दिखती है। लेकिन पुल के ठीक सामने की पहाड़ी को बादलों की चिलमन ने जैसे छिपा सा लिया है। चिड़ियाघर के लिये बायें और बड़े बाज़ार के लिये दायें, जहाँ जाकर मोनोंगैहेला का संगम ऐलेगनी नदी से होगा और फिर वे दोनों ही अपना अस्तित्व समाप्त करके आगे से ओहायो नदी बनकर बह जायेंगी।

लीजिये हम नगर की ओर जाने के बजाय चिड़ियाघर की ओर मुड़ गये। सामने की सड़क का नाम तो एकदम सटीक ही लग रहा है। भाँति-भाँति के वन्य प्राणी जब नगर के भीतर एक ही जगह पर चौपाल सजा रहे हों तो उसे "वन वाइल्ड प्लेस" से बेहतर भला क्या नाम दिया जा सकता है।
अरुणोदय की आहट सुनते ही बादलों की चादर झीनी पड़ने लगती है और अब तक सोयी पड़ी लाल सुनहरी किरणों से शस्य श्यामला धरती प्रकाशित होकर नृत्य सा करने लगती है।  हरी भरी वादी के किनारे की इस सड़क पर सुबह की सैर का आनन्द ही कुछ और है।

सूर्यदेव के दस्तक देने के बाद भी जहाँ कुछ बादल छँट रहे हैं वहीं कुछ ने मानो डटे रहने का प्रण लिया है। इसी जुगलबन्दी से आकाश में बना है यह खूबसूरत चित्र। नीचे नदी और पुल दोनों ही नज़र आ रहे हैं। आकाश में भले ही कालिमा अभी दिख रही है, नदी का जल पूरा स्वर्णिम हो गया है। इस्पात नगरी है तो जलधारा की जगह लावा बहने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्लिक करके सभी चित्रों को बड़ा किया जा सकता है। 
आपका दिन शुभ हो!
  

सम्बन्धित कड़ियाँ
इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Sunday, December 20, 2009

रजतमय धरती हुई [इस्पात नगरी से - २२]

पिछले हफ्ते से ही तापक्रम शून्य से नीचे चला गया था. रात भर हिमपात होता रहा. कल सुबह जब सोकर उठे तो आसपास सब कुछ रजतमय हो रहा था. बर्फ गिरती है तो सब कुछ अविश्वसनीय रूप से इतना सुन्दर हो जाता है कि शब्दों में व्यक्त करना कठिन है. चांदनी रातों की सुन्दरता तो मानो गूंगे का गुड़ ही हो. शब्दों का चतुर चितेरा नहीं हूँ इसलिए कुछ चित्र रख रहा हूँ. देखिये और आनंद लीजिये:


मेरे आँगन का एक पत्रहीन वृक्ष


घर के सामने का मार्ग


रात में बाहर छूटी कार


हमारे पड़ोस का वाइल्ड वुड नामक पारिवारिक मनोरंजन क्षेत्र


एक करीबी मुख्य मार्ग

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा. बड़ा चित्र देखने के लिए चित्र को क्लिक करे.
Winter in Pittsburgh: All photos by Anurag Sharma]