Saturday, September 25, 2010

कम्युनिस्ट सुधर रहे हैं?

सोवियत संघ का दिवाला पिटने के समय से अब तक लगभग सारी दुनिया में कम्युनिज़्म की हवा कुछ इस तरह निकलती रही है जैसे पिन चुभा गुब्बारा। लेकिन विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के पड़ोस में कम्युनिज़म की बन्दूक, मेरा मतलब है, पर्चम अभी भी फहर रही है। वह बात अलग है कि कम्युनिज़्म के इन दोनों ही रूपों में तानाशाही के सर्वाधिकार और जन-सामान्य के दमन के अतिरिक्त अन्य समानतायें न्यूनतम हैं। कम्युनिज़्म के पुराने साम्राज्य से तुलना करें तो आज बहुत कुछ बदल गया है। क्या कम्युनिज़्म भी समय के साथ सुधर रहा है? क्या यह एक दिन इतना सुधर जायेगा कि लोकतंत्र की तरह प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने लगेगा? शायद सन 2030 के बाद ऐसा हो जाये। मगर 2030 के बाद ही क्यों? क्योंकि, चीन के एक प्रांत ने ऐसा सन्देश दिया है कि आज से बीस वर्ष बाद वहाँ के परिवारों को दूसरा बच्चा पैदा करने का अधिकार दिया जा सकता है। मतलब यह कि आगे के बीस साल तक वहाँ की जनता ऐसे किसी पूंजीवादी अधिकार की उम्मीद न करे। मगर चीन के आका यह भूल गये कि अगर जनता 2030 से पहले ही जाग गयी तो वहाँ के तानाशाहों का क्या हाल करेगी।

ऐसा नहीं है कि चीन में इतने वर्षों में कोई सुधार न हुआ हो। कुछ वर्ष पहले तक चीन की जनता अपने बच्चों का नामकरण तो कर सकती थी परंतु उन्हें उपनाम चुनने की आज़ादी नहीं थी। चीनी कानून के अनुसार श्रीमान ब्रूस ली और श्रीमती फेंग चू के बच्चे का उपनाम ली या चू के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता है। उस देश में होने वाले बहुत से सुधारों के बावज़ूद जनता की व्यक्तिगत पहचान पर कसे सरकारी शिकंजे की मजबूती बनाये रखने के उद्देश्य से कुलनाम के नियम में कोई छूट गवारा नहीं की गयी थी। मगर कुछ साल पहले जनता को एक बडी आज़ादी देते हुए उपनाम में माता-पिता दोनों के नाम का संयोग एक साथ प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गयी है। मतलब यह कि अब ली और चू को अपने बच्चे के उपनाम के लिये चार विकल्प हैं: चू, ली, ली-चू और चू-ली।

चीन से दूर कम्युनिज़्म के दूसरे मजबूत किले क्यूबा की दीवारें भी दरकनी शुरू हो गयी हैं। वहाँ के 84-साला तानाशाह फिडेल कास्त्रो के भाई वर्तमान तानाशाह राउल कास्त्रो ने देश की पतली हालत के मद्देनज़र पाँच लाख सरकारी नौकरों को बेरोज़गार करने का आदेश दिया है। मतलब यह है मज़दूरों के तथाकथित मसीहा हर सौ में से दस सरकारी कर्मचारी को निकाल बाहर कर देंगे। क्या इन बेरोज़गारों के समर्थन में हमारे करोड़पति कम्युनिस्ट नेता क्रान्ति जैसा किताबी कार्यक्रम न सही, आमरण अनशन जैसा कुछ अहिंसक करेंगे?

28 comments:

  1. ये बातें अपने यहाँ के कोमरेडों के दिमाग में नहीं घुस रही

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  2. टूटते सिद्धान्तों को सम्हालने में कमर टूट जाती है।

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  3. कमुनिजम और तानाशाही पर्यायवाची हो गए हैं

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  4. चीन द्वारा उपनाम की स्वतंत्रता न देने पर नए नए आज़ाद भारत का वह प्रस्ताव याद आ गया जिसमें यह कहा गया था कि जातिसूचक उपनामों की परम्परा को प्रतिबन्धित कर दिया जाय। उसी भारत में शर्मा, वर्मा, सिंह, राव आदि उपनामों का कई जातियों द्वारा प्रयोग भी ध्यान में आया।
    साँसों की संख्या पर भी सीमा क्यों नहीं लगाई गई? आश्चर्य होता है।
    क्यूबा में प्राइवेट नौकरी की सम्भावनाएँ हैं क्या?
    यहाँ कामरेड लोग सेलेक्टिव विरोध प्रदर्शन में यकीन रखते हैं। बहरी कर देने वाली चुप्पी कई बार सुनाई देती है(यह तो उलटबाँसी हो गई!)।

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  5. ाब तानाशाही नही चलेगी। बहुत अच्छा लगा आलेख। धन्यवाद।

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  6. आपने चू और ली की कहानी बतायी, यह हमारे लिए नयी है। हम तो समझ ही नहीं पा रहे थे इनका रहस्‍य। बहुत ज्ञानवर्द्धक पोस्‍ट।

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  7. कौन चाहता है सुविधाओं को त्यागना... भारत में क्या कम्युनिष्ट और क्या बाकी सारे निष्ठ या निष्ठाहीन सभी एक जैसे ही हैं...

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  8. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, सर्वहारा वगैरह वगैरह का दम भरने वालों ने जब चीन के थियानमिन चौक हत्याकांड, सिक्यांग प्रांत में मुस्लिम विदोहियों को सरेआम फ़ांसी देने जैसे मुद्दों पर कुछ नहीं कहा, अब क्या कहेंगे। वाकपटुता दिखाते हुये कहीं न कहीं इसे अपने देश की समस्याओं से जोड़ देंगे।

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  9. स्कूल में जब इन वादों के बारे में जाना तबसे ही मुझे तो बीच का मार्ग बेहतर लगा. किसी भी विचारधारा का अतिवाद तो जयादा नहीं ठहर सकता.

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  10. अनुराग जी एक बात और कहना चाहता हूँ मुझे ये चीनी उपनाम वाला फड्डा समझ नहीं आया. अपने यहाँ तो श्रीमान पाण्डेय और श्रीमती जोशी के पुत्र को परंपरागत रूप से पाण्डेय वाला उपनाम ही मिलेगा. कोई दूसरा तीसरा या चौथा विकल्प है ही नहीं. चीन में इतने सारे विकल्प ! उपनाम का मतलब अंग्रेजी का surname ही है ना.

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  11. यह बात हमारे कमुनिस्टो को समझ मै क्यो नही आ रही, या उन के समरथको को?

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  12. हमारे देश के कम्युनिस्ट को बदलते कम्युनिज्म से कुछ भी लेना देना नहीं है | उन्हें तो केवल भगवे से परहेज है |

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  13. अपने यहाँ तो श्रीमान पाण्डेय और श्रीमती जोशी के पुत्र को परंपरागत रूप से पाण्डेय वाला उपनाम ही मिलेगा. कोई दूसरा तीसरा या चौथा विकल्प है ही नहीं.

    परम्परागत रूप से ऐसा होते हुए भी हमारे यहाँ अपना कुलनाम/उपनाम चुनने/बदलने की पूरी स्वतंत्रता है। उदाहरण के लिये मीर बाकी अगर अपने बेटे का नाम धिक्कार चन्द रखना चाहें तो कोई कानूनी रुकावट नहीं है। केरल के "राम मनोहर लोहिया" और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस" जैसे नाम इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।

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  14. हर व्यवस्था और विचारधारा को जनगण के व्यापक हित में समयानुकूल संशोधित परिवर्तित होना ही चाहिए सो कम्यूनिज्म भी इसका अपवाद नहीं है ! विचारधाराएं और व्यवस्थाएं होती किसके लिए हैं मूल प्रश्न यह है ?

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  15. आखिर समय तो हिसाब किताब चूकता कर ही देता है. अब इनका समय जा चुका है.

    रामराम.

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  16. धन्य है मेरा भारत देश.

    हमारे यहाँ के कम्युनिष्ट बातें इतनी बड़ी करते हैं - अगर चीन जैसे देश की तानाशाही अपने देश में भी लागू हो जाये तो - यही कम्युनिष्ट त्राहिमाम करते फिरेंगे.

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  17. कम्यूनिस्टों का एक नाम "रेड" भी है यानि कि "लाल". बहुत पहले अपने यहाँ हिन्दुस्तान में एक राजा हुआ करता था---"लाल बुझक्कड". अब ये तो मालूम नहीं कि क्या वजह है, लेकिन जब भी ये कम्यूनिस्ट शब्द कहीं पढने/सुनने को मिलता हैं तो बस दिमाग में एक ये "लाल-बुझक्कड" शब्द की गूँजने लगता है. अब राम जाने इन कम्यूनिस्टों की "लाल-बुझक्कड" से क्या साम्यता है :)

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  18. ईश्वर की बहुत क्रपा होगी कि कम्युनिस्ट खतम हो जाये

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  19. कम्युनिस्ट सुधर नहीं रहे हैं. वो जब तक पूरी तरह खोखले और बर्बाद नहीं हो जाते किसी को पता ही कहाँ चलता है कि उनके यहाँ हो क्या रहा है ! यही हाल सोवियत रूस में था, नोर्थ कोरिया में है और और अब क्यूबा से भी खबरें आ ही रही हैं. कम्युनिस्म एक विफल तानाशाही व्यवस्था है पर इतना भारी ब्रेनवाश होता है कि जो इससे प्रभावित होते हैं वो कुछ भी और सुनने को तैयार नहीं होते. अब उनका क्या किया जा सकता है जो अपनी हांकने के अलावा किसी और का कुछ भी सुनने को तैयार ही ना हो. कोई भी व्यवस्था जो आजादी से डरे वो कैसे सही हो सकती है भला? वैसे आपको अभी भी ये कहने वाले मिल जायेंगे कि क्यूबा विश्व का सबसे सुखी देश हैं वहाँ गरीब नहीं होते. और अमेरिका में अगले ५० सालों में कम्युनिस्म आ जाएगा :) वगैरह वगैरह. वो ये भूल जाते हैं कि लेनिनग्राद का नाम भी बदलना पड़ता है !

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  20. कम्युनिष्ट सुधर रहे हैं.... आप कह रहे हैं तो मान लेते हैं। वैसे ये कुत्ते की दुम हैं बारह बरस पुंगी में रखो फिर निकालों तो टेड़ी ही निकलेगी। भारत के तो चिकने घड़े हैं, उन पर असर ही नहीं पड़ेगा।

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  21. कोरे सिद्धांत रूप में तो सभी 'वाद' कल्याणकारी ही दीखते हैं,परन्तु व्यवहार रूप में यही अपने ही सिद्धांतों का भारी खंडन करते दीखते हैं...

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  22. आदमी कभी भी बंधन में नहीं रहना चाहता। लोकतंत्र से सुंदर कोई व्यवस्था आदमी के लिए नहीं हो सकती। भेड़ों को नियंत्रित करने की बात कुछ और है।

    एक न एक दिन तो सभी को सुधरना होगा। उन्हें भी जो कम्युनिज्म के नाम पर तानाशाही चला रहे हैं और उन्हें भी जो लोकतंत्र में मिली स्वतंत्रता का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं।

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  23. तानाशाही तो बुरी है लेकिन कम्यूनिस्म यदि मार्क्सवाद पर आधारित न हो तो उसका ह्स्स्र यह होता है

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  24. कम्युनिस्ट खत्म हो रहे हैं या बदल रहे हैं।

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  25. विचार धारा में परिवर्तन होने पर व्यक्ति विशेष द्वारा परिचालित नियम का महत्व ख़त्म हो जाता है .... इसलिए यह नही कहना चाहिए की कोई देश कमुनिज़्म के सिधान्त पर पूरी तरह चलता है ..... हाँ देश काल और ज़रूरत के हिसाब से नियम ज़रूर बदलने चाहिएं .... वैसे हर कोई अपने लिए तो सुविधाएँ माँगता ही है ..... .

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  26. अहिंसक आन्दोलन तो ये कम्युनिष्ट अपने इस जन्म मेँ कर नही सकते, तानाशाही इनके सिद्धाँतो की जीवन रेखा है और दूसरा मनुष्य जन्म इनको है नही.

    इन्हे हर सुखी शोषक लगता, फिर भी सभी को सुखी बनाने के छद्म प्रयत्न करते है और कोई सुखी बन जाय तो उसे नष्ट करने का तत्काल प्रबन्ध करते है. न सुधर पाने का यह प्रमुख कारण है.

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  27. जब तक दायें हाथ को ज्यादा तबज्जो दिया जाएगा ये वाममार्गी चेहरा बदल-बदल कर रहेंगे ही .

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  28. kamyuniston ko yah baat pathyakram men daal kar kareene se samjhaane ki zaroorat hai.

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।