सृजनगाथा पर जापान के अपने यात्रा संस्मरण में मैंने त्सुकुबा पर्वत की यात्रा का वर्णन किया था। इसी पर्वत की तलहटी में, टोक्यो से ५० किलोमीटर की दूरी पर शोध और तकनीकी विकास के उद्देश्य से सन १९६३ में त्सुकुबा विज्ञान नगर परियोजना ने जन्म लिया और १९८० तक यहाँ ४० से अधिक शोध, शिक्षा और तकनीकी संस्थानों की स्थापना हो गयी थी। जापान के भीड़भरे नगरों की छवि के विपरीत त्सुकूबा (つくば?) एक शांत सा नगर है जो भारत के किसी छावनी नगर जैसा शांत और स्वच्छ नज़र आता है।
त्सुकुबा विश्वविद्यालय सहित कई राष्ट्रीय जांच और शोध संस्थान यहाँ होने के कारण जापान के शोधार्थियों का ४० प्रतिशत आज त्सुकुबा में रहता है। त्सुकुबा में लगभग सवा सौ औद्योगिक संस्थानों की शोध इकाइयाँ कार्यरत हैं। सड़कों के जाल के बीच ३१ किलोमीटर लम्बे मार्ग केवल पैदल और साइकिल सवारों के लिए आरक्षित हैं। और इन सबके बीच बिखरे हुए ८८ पार्क कुल १०० हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हुए हैं। ऐसे ही एक पार्क में मेरा सामना हुआ त्सुकुबा के अधिकारिक पक्षी त्सुकुत्सुकू (Tsuku-tsuku) से।
जापान में दो लिपियाँ एक साथ चलती हैं - कांजी और हिरागाना। कांजी लिपि चीन की लिपि का जापानी रूप है जबकि हिरागना जापानी है। नए नगरों के नाम हिरागना में ही लिखे जाते हैं। त्सुकुबा का नाम भी हिरागना में ही लिखा जाता है और यहाँ के अधिकारिक पक्षी का नाम त्सुकुत्सुकू जब हिरागना में लिखा जाए तो उसका अर्थ होता है असीमित विकास एवं समरसता।
सोचता हूँ कि भारत में यदि ज्ञान की नगरी के लिए कोई राजपक्षी चुना जाता तो वह क्या होता? राजहंस, शुक, सारिका, वक या कुछ और? परन्तु त्सुकुबा का त्सुकुत्सुकू नामक राजपक्षी है एक उल्लू। वैसे तो जापान में पशु-पक्षी अधिक नहीं दिखते हैं, उस पर उल्लू तो वैसे भी रात में ही निकलते हैं सो हमने वहां सचमुच का एक भी उल्लू नहीं देखा मगर फिर भी वे थे हर तरफ। दुकानों, पार्कों, रेल और बस के अड्डे पर - चित्र, मूर्ति और कलाकृतियों के रूप में त्सुकुत्सुकू हर ओर मौजूद था।
विश्व विद्यालय परिसर का एक पार्क तो ऐसा लगता था जैसे उसी को समर्पित हो। इस उपवन में विचरते हुए शायर की निम्न पंक्तियाँ स्वतः ही जुबां पर आ गईं: हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा?
आइये देखें कुछ झलकियाँ त्सुकुबा के उलूकराज श्रीमान त्सुकुत्सुकू की।
1. परिवहन अड्डे पर श्रीमान त्सुकुत्सुकू
2. उलूकराज
3. विनम्र उल्लू
4. भोला उल्लू
5. दार्शनिक उल्लू
6. उल्लू परिवार
7. उल्लू के पट्ठे
8. जापान की दुकान में "मेड इन चाइना" उल्लू
9. और अंत में - दुनिया भर में प्रसिद्ध काठ के उल्लू
[Photographs by Anurag Sharma || सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा]
उल्लू और उल्लू के पठ्ठे देख आनंद आया . एक गाना भी था अपने यहा जो आपने शीर्षक मे दिया है
ReplyDeleteग़जब! उल्लू ही उल्लू। कोई आश्चर्य नहीं कि आप को डाल पर बैठा कोई उल्लू नहीं मिला। उस टाइप के सभी भारत के वासी हो गए हैं।
ReplyDeleteकिसी नगर का 'राजपशु' गधा है कि नहीं? गिद्धों के बारे में भी बताइए।
उल्लुओं की इतनी वेरायटी तो मैने कभी सुनी ही नही थी और आज देख भी ली....धन्यवाद अनुराग जी..वैसे संस्मरण काफ़ी रोचक और जानकारी भरा...बधाई
ReplyDeleteउल्लू ने विद्वानों का आकर्षित किया है। किसी ने मूर्ख तो किसी ने बुद्धिमान समझा। बनारस में 1 अप्रैल के दिन कवि गण उलुक सम्मेलन के नाम पर हास्य-व्यंग्य कवि सम्मेलन का आयोजन करते हैं। हर कवि को एक काठ का उल्लू भेंट किया जाता है। खूब मस्ती करते हैं। जापानी उल्लुओं ने आपको आकर्षित किया तो इसमें कोई अचरज नहीं।
ReplyDelete..सुंदर जानकारी व खूबसूरत चित्रों के लिए आभार।
बडा ही उल्लौकिक देश है :)
ReplyDeleteउल्लू तो सब भारत में हैं इसलिए बेचारे काठ के उल्लुओं से ही काम चला रहे हैं ..
ReplyDeleteफिर भी ..
उल्लुओं की तस्वीरें बहुत अच्छी लगी ...!
झलकियां बहुत अच्छी लगी। क्योंकि दिन मे उल्लू कहाँ नज़र आते है। इस संस्मरण के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इतने उल्लुओं को देखकर :-)
ReplyDeleteहमे तो यह भोला उल्लू अपना सा लगा....बेचारा?
ReplyDeletebahut sundar aalekh laga.. aur ulluon kee itni vividhta dekhar hairaan huyee aur iske saath hi Dhan kee Devi Laxmi ji kee ke kami khal rahi thi....
ReplyDeleteमजेदार विवरण ,मजेदार चित्र -केवल भारत में ही उल्लू मूर्खता का पर्याय है क्योकि चिर विपन्नता ग्रस्त बुद्धिजीवियों ने इसे लक्ष्मी से जोड़ कर उसमें मूर्खता आरोपित कर दी -बुद्धिजीवियों के प्रतिशोध का शिकार हुआ है यहाँ उल्लू !
ReplyDelete.
ReplyDeleteInformative, Interesting and beautiful post .
'ullu ke pattey' is the best one !
lol
हमें तो अंजामे-गुलिस्ताँ अच्छा ही लगा जी, चित्र सभी अच्छे हैं, कैप्शनवाईज़ लक्की सैवन सबसे अच्छा लगा।
ReplyDeleteमज़ाक की बात नहीं है लेकिन अगर कभी गौर से उल्लू, गधे या बैल की तरफ़ देखता हूँ तो बहुत अटैचमेंट सी लगती है। सीधापन, कर्मठता और बदले में कुछ अपेक्षा न करना बेसिक कैरेक्टरिस्टिक्स हैं इनके।
लांग लिव ऊल्लूज़, बैल्स ऎंड गधाज़।
जापान के बारे में एक रोचक जानकारी मिली, उल्लू और उनके पठ्ठों के चित्र अति मनमोहक लगे.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब!
ReplyDeleteराजहंस अच्चा रहेगा अपने लिए :) पर प्रतीक से ज्यादा जरूरी होगा दृढ संकल्प और उसका पालन/.
ReplyDeleteत्सुकुबा
ReplyDeleteआनन्द आ गया.
बड़ा ही रोचक संस्मरण।
ReplyDeleteहा हा बड़े अच्छे लगे आपके उल्लू। वैसे देवी लक्ष्मी की सवारी है उल्लू। रोचक जानकारी।
ReplyDeleteबचपन में फूल वाले जापानी की कहानी पढ़ी थी तब से जापानियों का जबरदस्त फेन हो गया था और अब तक हूँ. नौकरी लगाने के बाद जापानी भाषा सीखी और इस भाषा पर बहुत अच्छा अधिकार भी हो गया था पर बाद में गृहस्थी का बैल बन सब कुछ भूल गया. जापानी लोग मेरे favourite हैं और रहेंगे. राष्ट्रवाद क्या होता है देशभक्ति क्या होती है ये कोई उन लोगों से सीखे.... सुंदर चित्रमय आलेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteवाह ... उल्लू के भी इतने रूप हैं जापान में ....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा जापान को जानना आपकी नज़र से ....
याने जापान में आप न चाहें तो भी वे आपसे टकरा जाते हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट और उतने ही सुन्दर चित्र।
इतने सारे उल्लू :)
ReplyDeletejab itne sare ullu hai dunia main to is dunia ka kiya hoga .
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