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अरे डरने की क्या बात है? |
मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा
दही बड़े में पन्नी, धर दो झंई अठन्नी।
छोटे थे तो एक शाम को छोटे-छोटे बच्चे तीन डंडियों पर एक खूबसूरत मुंडी रखकर बनाये गये तलवारधारी टेसू को घर-घर ले जाकर कुछ पैसे-मिठाई आदि मांगते थे। हमारे घर भी आते थे और मैं कौतूहल से उनके गीत सुनता था। हैलोवीन पर भी बच्चे कुछ उसी प्रकार के गीत गाकर, "गिव मी समथिंग गुड टू ईट" करते हैं। टेसू में मांग थी, पर हैलोवीन के "ट्रिक और ट्रीट" में धमकी होती है कि न दोगे तो शरारत करेंगे। वैसे डरने की बात नहीं है क्योंकि बच्चे वैसे शरारती नहीं होते हैं। जो लोग ट्रीट देना पसन्द नहीं करते वे अपने पोर्च की बत्तियाँ बन्द रखते हैं और जो पसन्द करते हैं वे तो अपनी कैंडी, फल आदि के गंगाल लिये दरवाज़े पर या ड्राइववे में बैठे स्वागत कर रहे होते हैं।
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बच्चे हैलोवीन में कद्दू पर चेहरे काटकर उसमें मोमबत्ती जलाते हैं |
हैलोवीन का इतिहास ईसाइयत पूर्व की परम्पराओं के पीछे दबा हुआ है। आइये आपके साथ चलते हैं ट्रिक और ट्रीट करने इस फ़ोटो फ़ीचर के सहारे। पतझड़ का मौसम है। सूखे पत्तों पर चलने पर अजीब सी आवाज़ें होती हैं। तेज़ हवायें भी साँय-साँय और भाँय-भाँय तो करती ही हैं, सूखे पेड़ों की डंडियाँ भी तोड़कर गिराती रहती हैं। शाम पाँच बजे अधेरा गहराने लगता है और तब आता है हैलोवीन का उत्सव। 31 अक्टूबर को बच्चे और बड़े किस्म-किस्म की वेशभूषा में नज़र आते हैं। और हर ओर दिखती है हाहाकारी भुतहा सजावट मानो भोलेबाबा की बारात आ रही हो। छोटे बच्चे तो प्रचलित कार्टून चरित्रों को भी अपनाते हैं।
कुछ अन्य चित्र:
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डरना ज़रूरी है क्या? |
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प्रेत के बिना कैसा हैलोवीन |
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ये किसका खून है? लाश कहाँ ग़ायब है? |
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ट्रिक-ट्रीटिंग पर जाने से पहले कुछ खा लिया जाये |
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अन्धेरी रातों में सुनसान राहों पर |
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भूत राजा, बहार आ जा |
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कद्दू की टोकरी, कद्दू का लैम्प |
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बिल्ली प्रेमी के कार्व्ड कद्दू |
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मैं कोई असली कंकाल थोड़े ही हूँ? |
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Halloween as captured by Anurag Sharma]
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
रोचक!
ReplyDeleteरोचक लग रहा है, डर का यह खेल.
ReplyDeleteयदि डरा कर खाने को हैलोवीन कहते हैं तो हमारे देश में तो रोज मनाया जा रहा है यह त्योहार।
ReplyDeleteबड़ा अजीब सा है यह त्यौहार ..गोथिक परम्परा में भयावहता भूत पिसाच घोस्ट आदि महिमामंडित हैं और यहाँ भी :) वैसे मजेदार है !
ReplyDeleteवैज्ञानिक युग में भी भूतों को सिर पर चढ़ा रखा है। बड़ा अजीब सा लगता है। दुनिया में डर को क्यों पैदा किया जाता है?
ReplyDeleteजिस समय भारत में रोशनी का त्यौहार मनता है लगभग उसी समय आप भुतहा-अँधेरा का अनुभव करते हो !
ReplyDeleteटेसू के बारे में हमने भी थोड़ा सुन रखा था,हैलोवीन तो नई पीढ़ी के लिए है !
हाँ ,यह त्यौहार अमेरिका के मूल निवासियों द्वारा प्रेत-पूजा के रूप में मनाया जाता था ,लोग अपने घरों के बाहर भी वैसे ही भयावह वातावरण बना देते हैं .मकड़ी के जाले ,आधे-अँधेरे में हिलती सूखी डालें ,भयानक खोपड़ियाँ, हिलते कंकाल विचित्र ध्वनियाँ आदि .और फिर बच्चे आते हैं फ़ैन्सी ड्रेस में -बहुत प्यारे बच्चे !
ReplyDeleteवाह! मोटी माँऊ का मनोविज्ञान भारत में ही नहीं सारी दुनियां में है। :)
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं ||
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई ||
ट्रिक ओ ट्रीट ... बाजारवाद ने इस त्यौहार को अरब दुनिया में तो पहुंचा दिया है जल्दी ही भारत में भी दिवाली के आस पार हेलोवीन मनाया जायगा ...
ReplyDeleteरोचक त्यौहार है ये.टेसू के बारे में सुना था पर देखा कभी नहीं हाँ हेलोइन की रौनक यहाँ भी हो गई है .
ReplyDeleteयह तो अमेरिका का अद्भुत त्योहार है जिसमें बच्चे मौज़ करते हैं और मेवा भी उन्हें मिलता है:)
ReplyDeleteयहाँ तोक्यो में भी इस प्रकार के कद्दुओं की बहार है हर डिपार्टमेंटल स्टोर की सजावट में । वैसे ही जैसे क्रिसमस के दिनों में साँता की होती है पर जापानी लोग इनका इस्तेमाल महज़ मार्केटिंग स्टंट के तौर पे करते हैं । कुल मिलाकर मुझे तो बड़ा ही अटपटा और वीभत्स लगता है । शायद आंग्ल, शुभ्रवर्ण बच्चों का ऐसा करना ठीक लगता हो । कुल मिलाकर इंसान है तो खुराफ़ाती जीव ही ।
ReplyDeleteकहते हैं कि प्रेत अच्छे भी होते हैं और बुरे भी... मगर इन प्रेतों की रात जश्न की रात... पिछले वर्ष भी इन दिनों आपसे बहुत कुछ जानने को मिला था इस दिन के बारे में... और आज भी खूबसूरत लगा यह फोटो फीचर!!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ..
ReplyDelete.. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
दुनिया का कोई भी कोना हो, 'लोक तत्व' कमोबेश समान रूप से विद्यमान होते हें।
ReplyDeleteसच में बड़ा अजब त्यौहार है यह ..... आजकल यहाँ भी चारों तरफ सब कुछ डरावना ही दिख रहा है.....
ReplyDeleteइस बहाने ’टेसू’ और ’लोहड़ी’ मांगने वाले बच्चे और उनके द्वारा गाये जाने वाली बोलियाँ भी याद दिला दीं।
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा की आशंका भी सच के करीब दिखती है।
मजेदार लगा इस बार भी हैलोवीन लेख।
I am getting scared :(
ReplyDelete:)
टेसू,झान्झी(यही शब्द था शायद उसका जो लेकर लडकियां घर घर घूमती थीं)और लोहड़ी बचपन में खूब भाते थे. यह हैलोवीन भी मजेदार ही रहता होगा.
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
सुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें
भाई मजा आ गया... और टेसू की याद भी...
ReplyDeleteदोपोत्सव की शुभकामनाएं....
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
मजेदार है हैलोवीन का त्यौहार। रुचिकर जानकारी दी आपने।
ReplyDeletebehad rochak......
ReplyDeleterochak..har parampara ke peechhe hai ek kahani...
ReplyDeleteरोचक रोमांम्चक जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteअजीब रवायतें हैं दुनिया में...
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