स्थानीय पत्र में कोलम्बस पर विमर्श |
12 अक्टूबर 1492 को क्रिस्टोफ़र कोलम्बस और उसके साथियों ने धरती के गोलाकार होने की नई वैज्ञानिक जानकारी का प्रयोग करते हुए पश्चिम दिशा से भारत का नया मार्ग ढूंढने का प्रयास किया। बेचारों को नहीं पता था कि यूरोप के पश्चिम में उत्तर से दक्षिण तक एक लम्बी दीवार के रूप में एक अति विशाल भूखण्ड भारत पहुँचने में बाधक बनने वाला है।
कोलम्बस का तैलचित्र |
अपने अभियान के लिये पुर्तगाल राज्य द्वारा सहायता नकारे जाने के बाद उसने स्पेन से वही अनुरोध किया और स्वीकृति मिलने पर नीना, पिंटा और सैंटा मारिया नामक तीन जलपोतों का दस्ता लेकर पैलोस बन्दरगाह से स्पेनी झंडे के साथ 3 अगस्त 1492 को पश्चिम दिशा में चल पड़ा।
कोलम्बस के अभियान के साथ ही आरम्भ हुआ अमेरिका के मूल स्थानीय नागरिकों और उनकी संस्कृति के विनाश की उस अंतहीन गाथा का जिसके कारण कुछ लोग आज कोलम्बस को एक खोजकर्ता कम और विनाशक अधिक मानते हैं। वैसे भी अमेरिगो वेस्पूशी जैसे नाविक पहले ही अमेरिका आ चुके थे और जिस महाद्वीप पर लोग पहले से ही रहते हों, उसकी "खोज" ही अपने आप में एक विवादित विषय है।
फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका में अक्टूबर मास का दूसरा सोमवार प्रतिवर्ष कोलम्बस डे के रूप में मनाया जाता है और एक राष्ट्रीय अवकाश है। क्षेत्र के अन्य कई राष्ट्र भी किसी न किसी रूप में इसे मान्यता देते हैं। वैसे अमेरिका की उपभोगवादी परम्परा में किसी भी पर्व का अर्थ अक्सर शॉपिंग, सेल, छूट, प्रमोशन आदि ही होता है। अमेरिका में बैठे एक भारतीय के लिये यह देखना रोचक है कि समय के साथ किस प्रकार विश्व के केन्द्र में रहने वाले राष्ट्र स्थानापन्न होते रहते हैं।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* कोलम्बस, कोलम्बस! छुट्टी है आयी
बहुत सी सूचनाएं हैं आपकी इस पोस्ट में एक संग्रहणीय आलेख .....!
ReplyDeleteराह भूलना, भटकना और खोज लेना व्याख्या आश्रित होता है.
ReplyDeleteकोलंबस की यह खोज और उसके पश्चात हुयी त्रासदी मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी है। दो महाद्विपो की सभ्यताओं, संस्कृतिओं का समूल विनाश!
ReplyDeleteयह विनाश हीरोशीमा, नागासाकी के परमाणु बम, दोनो विश्व युद्धो से भी भयावह था!
सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
कोलम्बस दिवस पर एक रोचक आलेख ...कोलम्बस के काफी पहले ही वाहना मनुष्य के चरण पड़ चुके थे ..और जहां जहाँ बाद में उसके चरण पड़े बंटाधार ही हुआ है यह सच है !
ReplyDeleteकोलंबस डे पर राष्ट्रीय अवकाश ...सुखद आश्चर्य !
ReplyDeleteनवीन जानकारी!
अमेरिका की उपभोगवादी परम्परा में किसी भी पर्व का अर्थ अक्सर शॉपिंग, सेल, छूट, प्रमोशन आदि ही होता है।
ReplyDeleteसही कहा ।
वैसे अब यहाँ भी कुछ कुछ ऐसा ही होने लगा है । ५०+५० % छूट देखकर अपने गणित ज्ञान पर भी शक होने लगता है ।
कोलम्बस डे...एक नई जानकारी।
ReplyDeleteआज भी लोग असली अमेरिका पाने को भाग रहे हैं।
ReplyDeleteयह तो ऐतिहासिक सत्य है कि यूरोपियन्स ने अमेरिका के मूल निवासियों का बड़ी तादाद में कत्लेआम किया था।
ReplyDeleteकोलंबस डे के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ ! अछि जानकारी मिली इस लेख से ! आभार !!
ReplyDeleteThanks for sharing this information with us. :)
ReplyDeleteकोलम्बस एक साहसी नाविक था,'अमेरिका' के होने और उसे भोगने का ठीकरा उसके माथे क्यों? वह न ढूँढ निकालता तो देर-सबेर कोई और खोज लेता ! अच्छी जानकारी !
ReplyDeleteकाफी जानकारी से युक्त पोस्ट.वैसे पर्वो के नाम पर सेल और शौपिंग हर जगह का ही चलन बन गया है अब.
ReplyDeleteअमेरिका की खोज का यह दृष्टिकोण पठनीय है।
ReplyDeleteयह जानना भी रोचक होता कि कोलंबस के पास भारत के बारे में क्या क्या सूचनाएं थी?
@ उसकी "खोज" ही अपने आप में एक विवादित विषय है।
ReplyDeleteधन्यवाद ये वाक्य लिखने के लिए जहा पहले से ही जीवन मानव जी रहा है उसका तो मार्ग ही खोजा जा सकता है उसे नहीं वैसे ही भारत भूमि का मार्ग की खोजने चला था भारत को नहीं पर कई बार लोग इन बातो को समझ नहीं पाते है | जानकारी के लिए आभार |
हरिऔध जी की एक कविता में आसमान से गिरती बूँद की मनोदशा और उसका अद्भुत अंत याद आ गया... कोलंबस दिवस की जानकारी संग्रहणीय है!!
ReplyDeleteसचमुच यह खोज तो हमेशा से विवादित ही रही है।
ReplyDeleteयाने कि खोजने के लिए भूलना पहली शर्त है। सूचनाओं से भरी रोचक पोस्ट।
ReplyDelete’खोज’ की जगह ’उपलब्धि’ शायद ज्यादा उपयुक्त शब्द है - एक नया मार्ग खोजने की उपलब्धि।
ReplyDeleteदो तीन माह पहले ’अहा जिन्दगी’ पत्रिका में कोलंबस पर बहुत बड़ा आर्टिकल था, बेहद रोचक और बेहद रोमांचक।
हमारी सरकार भी कभी तो ’वास्को-डि-गामा’ डे घोषित करेगी:)
बड़ा लेट से आपके ब्लॉग से मैं जुड़ा...ये अफ़सोस है...जानकारियां इतनी सारी हैं आपके ब्लॉग पे की क्या कहूँ...इस्पात नगरी से वाली श्रृंखला देखा अभी...काफी रोचक सी लग रही है,पढूंगा वो सब भी धीरे धीरे!!
ReplyDeleteरोचक है और सुखद भी कि आप कितना विस्तृत लिखते हैं।
ReplyDeleteपुनः जानना भी जानना है । ये बातें मालूम थीं पर फिर पढीं तो भी अच्छी लगीं ।
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