Sunday, October 31, 2010

पतझड़ की सुन्दरता [इस्पात नगरी से - 32]

पतझड़ का मौसम आ चुका है ठंड की चिलगोज़ियाँ शुरू होने लगी हैं। हर साल की तरह पर्णहीन वृक्षों से छूकर हवा साँय-साँय और भाँय-भाँय की अजीब-आवाज़ें निकालकर कमज़ोर दिल वालों के मन में एक दहशत सी उत्पन्न कर रही है। प्रेतों के उत्सव के लिये बिल्कुल सही समय है। कुछ लोगों के लिये पतझड़ का अर्थ ही निराशा या दुःख है परंतु पतझड़ की एक अपनी सुन्दरता भी है। संस्कृत कवियों का प्रिय मौसम है पतझड़। आप कहेंगे कि वह तो वसंत है। हाँ है तो मगर वसंत तो पतझड़ ही हुआ न!

वसंत = वस+अंत = (वृक्षों के) वस्त्रों का गिरना
तो फिर वसंत क्या है? कुसुमाकर = फूलों का खिलना, बहार

तो निष्कर्ष यह निकला कि पतझड़ वसंत है और वसंत बहार है। दूसरे शब्दों में पतझड़ ही बहार है। तो आइये देखते हैं पतझड़ की बहार के रंग - चित्रों के द्वारा


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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
मेरे आँगन में क्वान्ज़न चेरी ब्लोसम के रंग
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा - All photographs by Anurag Sharma]

27 comments:

  1. शब्‍दों से आप खेलते रहिए। हमें तो चित्रों ने आनन्दित कर दिया। आपने मुहावरे बदल दिए। यहॉं विदा ले रही शरद ऋतु का स्‍वागत, आपके इन चित्रों ने कर दिया।

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  2. शब्‍दों से आप खेलते रहिए। हमें तो चित्रों ने आनन्दित कर दिया। आपने मुहावरे बदल दिए। यहॉं विदा ले रही शरद ऋतु का स्‍वागत, आपके इन चित्रों ने कर दिया।

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  3. @चिलगोज़ियाँ - इसका 'चिलगोंजई' से कोई सम्बन्ध तो नहीं? ;)

    @ हाँ है तो मगर वसंत तो पतझड़ ही हुआ न!
    वसंत = वस+अंत = (वृक्षों के) वस्त्रों का गिरना
    तो फिर वसंत क्या है? कुसुमाकर = फूलों का खिलना, बहार
    तो निष्कर्ष यह निकला कि पतझड़ वसंत है और वसंत बहार है।
    वारे गए। ढेर सारी जानकारी इत्ते छोटे पैरा में!

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  4. बहुत सुन्दर फोटो हैं... मुझे भी लाल-पीले पत्ते देखकर बहुत अच्छा लगता है. तब और भी, जब नीचे पानी भी हो ताल-तलैयों में. आप के तर्क बहुत अच्छे हैं.

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  5. पतझढ़ के सुन्दर दृश्य बहुत मनोरम हैं!

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  6. सुन्दर , मनमोहक चित्र |

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  7. सच में पतझड भी सुन्दरता विखेरता है

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  8. बहुत सुंदर लिखा ओर बहुत ही सुंदर चित्र भी, सच मे आज कल बहुत सुंदर लगता हे, जब हम जंगल के रास्ते गुजते हे तो दोनो ओर रंगबिरंगे पत्तो से सजे पेड बहुत सुंदर लगते हे, लेकिन थोडा समभल कर भी चलना पडता हे कि कही इन की सुंदरता देखते हुये हम कही फ़िसल ही जा जाये,धन्यवाद इस अति सुंदर पोस्ट के लिये

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  9. शेख फ़रीद ने कहा था,
    "देख पराई चुपड़ी, मत ललचाये जी,
    रूखी सूखी खायके, ठंडा पानी पी"

    ऐसे चित्र दिखाकर हमारी रूखी सूखी को और रूखा सूखा कर रहे हैं जी आप:) अब हमें भी कभी तस्वीरें डालनी होंगी।

    बहुत खूबसूरत लगे मौसम के असर से रंगाते पेड़।

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  10. पतझड़ भी इतना खूबसूरत हो सकता है ...तस्वीरें बता ही रही हैं ...
    पहाड़ी इलाकों में ऑक्सीजन की मात्रा इतनी अधिक होती है कि वहां पत्तियां पीली नहीं पडती ,लाल हो जाती हैं....इन पत्तियों का लाल रंग किस कारण है!!

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  11. प्रकृति से बेहतर , उससे बढ़कर रंग बिखेरने वाला कोई नहीं , ये विश्वास मुझे भी है !

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  12. नयनाभिराम चित्र.... प्रकृति के रंगों की छटा न्यारी ही है.....

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  13. शब्द का सही विच्छेद। प्रकृति के सभी तत्व मिल कर एक नशा उत्पन्न कर देते हैं।

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  14. सुन्दर चित्र देख कर प्रकृ्ति के प्रति मन श्रद्धानत हो रहा है। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  15. बहुत ही मनोरम दृश्य है ....

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  16. बहुत ही मनोरम दृश्य है ....

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  17. पतझड़ का भी अपना ही रंग है
    बसंत और बहार की तरह...

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  18. सुंदर चित्रों को देखकर आनंद आगया, गिरजेश राव जी की बात से सहमत हैं हम तो.

    रामराम

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  19. वाह...क्या अर्थ और प्रकृति साम्य दिखाया है आपने...

    सत्य ही तो है..

    वैसे मुझे भी पतझड़ उदास कर देती है,पर आपने जो मनोहारी चित्र दिखाए, आँखें ठंडी हो गयीं...

    आपका पतझड़ को देखने का यह सदा याद रखूंगी...प्रेरणा लुंगी...

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  20. पतझड़, वसंत और बहार की व्याख्या पसंद आई. तसवीरें तो हम भी अपने आस पास ऐसी ही देख रहे हैं.

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  21. वाह! वाह!
    समझा गए क़ायदे से , हम समझ भी गए !
    चित्र तो खूबसूरत हैं ही !
    आभार ।

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  22. शब्दों से खेल .... और प्रकृति को कैद .... दोनों ही काम बहुत अछे से किये हैं आपने ... बहुत ही खूबसूरत चित्र हैं ...

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  23. वसंत का संधिविच्छेद कर सुंदर परिभाषित किया है आपने । चित्र मोहक हैं ।

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  24. चित्र देखकर मजा आ गया, इस बार हम तो पतझड़ देखने जा नहीं पाये इसलिए आपके चित्रों ने पूरा आनन्द दिया ....

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  25. आपको स: परिवार दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई .

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  26. दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

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  27. दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

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