============== अब तक की कथा: ============== अनुरागी मन - 1 अनुरागी मन - 2 अनुरागी मन - 3 अनुरागी मन - 4 अनुरागी मन - 5 ============== रेखाचित्र: अनुराग शर्मा |
“क्या पढ़ रहे हैं आप? देखें, कौन सी किताब पसन्द आयी अपको?”
कहते हुए परी उनके निकट आ गयी। जब तक वे बताते कि अजब लिपि में लिखी इन किताबों के बारे में वे बिल्कुल अज्ञानी हैं, किताब को निकट से देखने के प्रयास में परी उनसे सटकर खड़ी थी। इतना निकट कि वे उसकी साँसों के आवागमन के साथ-साथ उसके शरीर का रक्त प्रवाह भी महसूस कर सकते थे। क्या परियों के शरीर में इंसानों की तरह रक्त ही बहता है या कोई दैवी द्रव? सुरा? वारुणी? यह कैसा प्रश्न है? उन्हें लगा जैसे वे दीवाने होते जा रहे हैं। भला कोई अप्सरा उनसे निकटता बढ़ाना क्यों चाहेगी? कुछ तो है जो वे देख नहीं पा रहे हैं। कन्धे से एड़ी तक हो रहे उस सम्मोहक स्पर्श से उनके शरीर में एक अभूतपूर्व सनसनी हो रही थी। उनके हृदय की बेचैनी अवर्णनातीत थी। अगर वे दो पल भी उस अवस्था में और रहते तो शायद अपने-आप पर नियंत्रण खो देते। कुशलता से अपने अंतर के भावों पर काबू पाकर उन्होंने पुस्तक को मेज़ पर फ़ेंका और पास पड़े सोफे में धँस से गये।
बाहर गली में कोई ज़ोर से रेडियो बजा रहा था शायद:
बाहर से पायल बजा के बुलाऊँ
अंदर से बाँहों की साँकल लगाऊँ
तुझको ही ओढूँ तुझी को बिछाऊँ
तोहे आँचल सा SSS
तोहे आँचल सा कस लूँ कमरिया में
नहीं जाना कुँवर जी बजरिया में
एक रहस्यपूर्ण मुस्कान लिये अप्सरा कुछ देर उन्हें देखती रही फिर साथ ही बैठ गयी। उसने चाय का प्याला उठाकर वीरसिंह के हाथ में कुछ इस तरह उंगलियाँ स्पर्श करते हुए थमाया कि वीरसिंह के दिल के तार फिर से झनझना उठे। वीरसिंह चाय पीते जा रहे थे, आस पास का नज़ारा भी कर रहे थे और बीच-बीच में चोर नज़रों से अपनी परी के दर्शन भी कर लेते थे। वे मन ही मन विधि के इस खेल पर आश्चर्य कर रहे थे, परंतु साथ ही अपने भाग्य को सराह भी रहे थे। हवेली के अन्दर झरना के साथ के वे क्षण निसन्देह उनके जीवन के सबसे सुखद क्षण थे।
तभी वासिफ की माँ अन्दर आ गयीं। उन्होंने बताया कि वासिफ अपने दादाजी के साथ कुछ दूर तक गया है और वापस आने तक वीर को वहीं रुकने को कहा है। सामने बैठकर माँ वीर के घर-परिवार दादा-दादी आदि के बारे में पूछती रहीं और प्याला हाथ में थामे वीर विनम्रता से हर सवाल का जवाब देते हुए अगले प्रश्न की प्रतीक्षा करते रहे। हाँ, माँ की नज़रें बचाकर बीच-बीच अप्सरा-दर्शन भी कर लेते थे। अफसोस कि उनकी चोरी हर बार ही पकड़ी जाती क्योंकि झरना उन्हें अपलक देख रही थी। नज़रें मिलने पर दोनों के चेहरे खिल उठते थे। न मालूम क्या था उन कंटीले नयनों में, ऐसा लगता था मानो उनके हृदय को बीन्धे जा रहे हों।
इसी बीच बाहर से एक आवाज़ सुनाई दी, “ज़रीना, ओ ज़रीना बेटी ... ज़रा हमारे कने अइयो”।
आवाज़ सुनते ही अप्सरा “अभी आयी” कहकर बाहर दौड़ी। अब वीर सिंह का सर चकराने लगा। क्या परी ने अपना नाम उन्हें जानबूझकर ग़लत बताया था या फिर वे सचमुच दीवाने हो गये हैं जो उन्होंने ज़रीना की जगह झरना सुना। उन्हें क्या होता जा रहा है। चाय में कुछ मिला है क्या? या इस पुरानी हवेली की हवा में ही ...?
“बहुत पसीना आ रहा है बेटा, तबीयत तो ठीक है न?” वासिफ की माँ ने प्यार से दायीं हथेली के पार्श्व से उनका माथा छूकर पूछा।
[क्रमशः]
बहुत इंतज़ार के बाद अगली कड़ी आई ...रोचकता और सस्पेंस बरक़रार है ...!
ReplyDeleteपुरानी कड़ियों को पढ़कर पुनः तारतम्य बना।
ReplyDeleteपढ़कर रोमांच का अनुभव हुआ। स्वाति की बूँदों जैसी आ रही हैं कडि़याँ...
ReplyDeleteइसे पढते हुई मुझे खुद भी सनसनी सी हुई तब वीर सिंह का क्या हाल रहा होगा , बखूबी समझा जा सकता है !
ReplyDeleteअब आप इसे निस्पृह हो कैसे लिख पाए बस ये सोच रहा हूं :)
वाह....
ReplyDeleteप्रतीक्षा रहेगी अगली कड़ी की...कृपया अधिक विलम्ब न कीजियेगा..
ReplyDeleteन मालूम क्या था उन कंटीले नयनों में, ऐसा लगता था मानो उनके हृदय को बीन्धे जा रहे हों।
ReplyDeleteसुन्दर कहानी पर टुकड़ों में क्यूँ, अधीरता बढाती है...........
चन्द्र मोहन गुप्त
मैं सिर्फ ये अर्ज करना चाहता हूँ कि आप अपनी कहानियों के लिए एक अलग ब्लॉग शुरू करें ताकि दुसरे विषयों कि वजह से कथा में व्यवधान ना पड़े.
ReplyDeleteये छटवी कड़ी भी रोचक रही ... आगे का इंतज़ार रहेगा ...
ReplyDeleteबहुत इन्तजार के बाद अगली कडी आई, यह तो ठीक है। किन्तु बात वहीं की वहीं है - अगली कडी कब आएगी?
ReplyDeleteकुछ दिन पहले ही आपके ब्लॉग से जुड़ी हूँ.... इसलिए आपने सभी कड़ियाँ पोस्ट में शामिल की
ReplyDeleteबहुत अच्छा रहा ....अच्छी लग रही है कहानी .... आगे भी इंतजार रहेगा
मैं अतुल जी से सहमत हूँ।
ReplyDeleteइस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त कदम ... ;)
@ अली जी
नाव में पानी आता रहता है लेकिन खेने वाले पानी उलीचते रहते हैं और नाव खेते रहते हैं।
रेखाचित्र में वीरसिंह का चेहरा आप से मिलता जुलता है। क्या संयोग है!
ReplyDeleteabhi bhi purani wali ek ek karake padh raha hoon ...detail comment thodi baad mein :)
ReplyDelete@ VICHAAR SHOONYA जी
ReplyDeleteआपकी सलाह बहुत मूल्यवान है।
@गिरिजेश राव,
ReplyDeleteवीर सिंह के साथ जहाँ इतने इत्तेफाक़ हुए हैं वहाँ एक और सही।
Vichar shoonya se mein bhi sahmat hoo.
ReplyDeletewaise aapka ye V Singh badaa majanoo hai ...pyaar mein naam kya shkl bhi ek jaisi dikhai deti hai !! khatiyaa par pada padaa veer singh badaa udaas tha ...jharana jo nahee aa rahi thi etani der se kamare se baahar :)
अली साहब के कमेंट को मैं सैकंड करता हूँ(अक्षरश:), आप पर क्या बीती होगी लिखते समय?
ReplyDeleteहम बोतल से पीने वाले, हमें घुंट घुंट पिला रहे हैं जी आप? इत्ता इंतज़ार और इत्ती सी पोस्ट, गल्त बात है जी।
इतनी देर बाद अगली कडी से रोचकता कम हो जाती है अगली कडी जल्दी लिखा करें। अच्छी रोचकता लिये चल रही है कहानी। बधाई।
ReplyDeleteरेडियो पर बजा गाना: मस्त.
ReplyDeleteअब आगे?
रोचकता बढ़ती जा रही है। छुट्टी के दिन फिर एक बार सभी किश्तें पढ़नी पड़ेंगी।
ReplyDeleteanurag bhai ,
ReplyDeletenamaste
kayee dino se, yehan aayee nahee - ab sare bhaag aram se panktibadhdh , padhoongi.
Rekha Chitr bhee badhiya hai
Sa sneh ashish,
- L
बेहद रोचक लगा अनुरागी मन - कहानी भाग ६ का ये अंश , पुरानी कड़ियों को पढ़ कर समझना पड़ेगा......
ReplyDeleteregards
मै इस बार बहुत देर से आई पर चलिए आपकी ६ वी कड़ी पढ़ ली !
ReplyDeleteज़रीना झरना
ReplyDeleteनाम कोइ भी हो
खुशबु ए गुलाब की
महकती रहेगी ...
स स्नेह
- लावण्या