ईश्वर को साधारण प्रिय है(अनुराग शर्मा)
बार बार रचता क्यों वरना
खास बनूँ यह चाह नहीं है
मुझको भी साधारण रहना
न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
मिल जाऊँ सबमें वह गहना
साधारण जन विश्व चलाते
नायक प्रभु कृपा का खाते
साधारण ही नायक होते
अति साधारण आते जाते
Sunday, October 3, 2010
आम लोग - कविता
औसत व्यक्ति को दोयम दर्ज़े का कहकर दुत्कारने वालों को अक्सर मीडियोक्रिटी का रोना रोते सुना है। बहुत बार सुनने पर एक विचार मन में आया, प्रस्तुत है:
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सरल होना इतना सरल कहाँ भला।
ReplyDeleteयही है अधिकांश लोगों की कविता.
ReplyDeleteसादर वन्दे !
ReplyDeleteसार्थक रचना |
जो यह बात समझ हम जाते !
सारे पाप यहीं धुल जाते |
रत्नेश त्रिपाठी
मानस में उल्लिखित है -
ReplyDelete’छिद्र कपट छल मोहे न भावा,
नि्र्मल मन जन सो मोहे पावा।’
हम ये राग, द्वेष छोड़ भर पायें तो ईश्वर कहाँ दूर है?
कविता शायद पहली बार दिखी आपके ब्लॉग पर, लिखी साधारण लोगों पर है लेकिन असाधारण है।
आभार।
औसत दर्जे का अपना महत्व होता है। हम तो जीवन भर औसत दर्जे के ही रहे..न कभी आगे न कभी पीछे...आगे गए तो धकिया के पीछे कर दिए गए, पीछे गए तो आगे बढ़ने का प्रयास किया।
ReplyDelete..आपकी कविता के भाव ने कई तार झनझना दिए ..इसी भाव पर एक कविता मैने भी लिखी है..थोड़ा उपदेशात्मक है ..लेकिन अब ब्लॉग में डालने का मूड बना रहा हूँ..आभार।
बहुत अच्छा कथ्य ।
ReplyDelete@कविता शायद पहली बार दिखी आपके ब्लॉग पर ...
ReplyDeleteअनुराग शर्मा की हिंदी कवितायें
खास बनूं यह चाह नहीं है
ReplyDeleteमुझको भी साधारण रहना
बहुत ही लाजवाब बात कह दी, शुभकामनाएं.
रामराम
साधारण!
ReplyDeleteकौन न फिदा हो जाय इस अदा पर!
हम भी सोचता हूँ कि ऐसा साधारण बन जाऊँ लेकिन हो ही नहीं पाता :)
@ ईश्वर को साधारण प्रिय है
बार बार रचता क्यों वरना
साधारण ही नायक होते
अति साधारण आते जाते
शेखर एक जीवनी की समीक्षा में किसी ने कहा था - विलक्षण जीवन परिधि के ऊपर टैनजेंट की तरह स्पर्श करते हैं, उसे मथते हैं और चल देते हैं लेकिन जीवन का गढ़न और चलन तो साधारणों, आम लोगों से ही होता है।
साधारण बन कर रह पाना अपने आप में असाधारण है। साधारण होना जितनी अच्छी बात है उतना ही कठिन है, साधारण होना।
ReplyDeleteतब भी हम खुशहाल थे, अब भी हम खुशहाल।
तब भी छोटलाल थे, अब भी
साधारण-प्रिय की सहज अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteखूबसूरत |
ईश्वर को साधारण भोले भाले लगते हैं प्यारे
ReplyDeleteज्ञान मार्ग से अधिक भक्ति मार्ग के वारे न्यारे
अपने साधारण होने पर अभिमान हो रहा है ...:):)
ReplyDeleteसाधारण सी कविता साधारण होते हुए भी असाधारण हो गयी है ...
आपकी कहानी कहाँ अटकी पड़ी है ....?
वाणी जी,
ReplyDeleteकहानी के कर्बुरेटर में थोड़ा कचरा फंस गया है, अभी गैराज में खड़ी है. मरम्मत पूरी होते ही यहाँ ला रहा हूँ
साधारण तो हम आज भी हैं ....असाधारण होने की आस है ...प्यास है !
ReplyDeleteअगर साधारण को साधारण प्रिय हो जायें तो दुनिया का कायाकल्प हो जायेगा ! आपका आज का विचार बेहद पसंद आया !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति .. आपके इस पोस्ट की चर्चा ब्लॉग 4 वार्ता में की गयी है !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteसाधारण पर असाधारण रचना ...
साधारण बने रहना ही सबसे मुश्किल है...
ReplyDeleteसुन्दर कविता
आदरणीय अनुराग जी,
ReplyDeleteचरण स्पर्श...
आपका ब्लॉग अभी अभी फोलो करना शुरू किया है और काफी पसंद आ रहा है| शुरुआत आपकी कविता " आम लोग" से की है,बहुत ही अमदा है|
पढ़कर हर कोई साधारण इंसान बनना चाहेगा|
ब्लॉग जगत में अभी कदम ही रखा है,कोई भी गलती हो तो छोटा समझकर माफ़ कर दीजियेगा |
अंकित...
प्रिय अंकित,
ReplyDeleteसदैव प्रसन्न रहो। तुम्हारी टिप्पणी पाकर प्रसन्नता हुई। तुम जैसे संस्कारवान और विनम्र युवओं को देखकर यह विश्वास दृढ रहता है कि भारत की शान कभी कम नहीं होगी।
शुभाशीष,
अनुराग.
न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
ReplyDeleteमिल जाऊँ सबमें वह गहना
bahut sundar ...
साधारण होने के सुख असाधारण होने के साथ गुम हो जाते हैं। जाने क्यों मन इस सुख का अस्वाद नहीं उठाता।
ReplyDeleteसुंदर रचना