Tuesday, October 5, 2010

हाल बुरा है... कविता

(अनुराग शर्मा)

स्वर्णमयी है लंका अपनी, जनता रोती क्यूं रहती है
दीनों को धकियाकर देखो भाई भतीजे पास आ गये॥

दो रोटी को निकला बेटा घर लौटे तो रामकृपा है
प्रगतिवादी और जिहादी, बारूदी सुरंग लगा गये ॥

परदेसी बेदर्द पाशविक, मुश्किल से पीछा छूटा था
सपना देखा स्वराज्य का जाने कैसे लोक आ गये॥

वैसे तो आज़ाद सभी हैं, कोई ज़्यादा कोई कम है
दारू की बोतल बंटवाकर नेताजी सब वोट पा गये॥

टूटी सडकें बहते नाले, फूटी किस्मत, जेबें खाली
योजनायें कागज़ पर बनतीं, ठेके रिश्तेदार पा गये॥

गिद्ध चील नापैद हो गये, गायें कचरा खाकर मरतीं
गधे बेचारे भूखे रह गये, मुख्यमंत्री घास खा गये॥

गर्मी भर छलके जाते हैं, बरसातों में बान्ध टूटते
बूंदों को तरसा करते थे लहरों की गोदी समा गये॥

31 comments:

  1. धुरंधर अभिव्यक्ति!

    दो रोटी को निकला बेटा घर लौटे तो रामकृपा है
    प्रगतिवादी और जिहादी, बारूदी सुरंग लगा गये ॥

    क्या बात है!

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  2. हाल तो बुरा है आपकी कविता में ...
    कहानी अधूरी ही रह गयी ...अगली किश्त कब ..?

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  3. टूटी सडकें बहते नाले, फूटी किस्मत, जेबें खाली
    योजनायें कागज़ पर बनतीं, ठेके रिश्तेदार पा गये॥
    बस यही हाल है..... जो अफसोसजनक भी है और शर्मनाक भी आपने उम्दा ढंग से हकीकत कह डाली अच्छी लगी......

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  4. कैसे कैसे लोग रह गये। बने अगर,तो पथ का रोडा, कर के कोई एव न छोडा। असली चेहरा दीख न जाये। इस कारण हर दरपण तोडा । हमने देखा था स्वराज का सपना और उनके रिस्तेदार ठेके पाकर स्वराज भोग रहे है।टूटी सडके ’’ खास सडके बन्द है कब से मरम्मत के लिये/ ये हमारे देश की सबसे असल पहिचान हेै। बेटा रोटी कमाने निकला है सकुशल लौटता है या नहीं । हर शेर नोट करने लायक , हर शेर तारीफ करने लायक

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  5. दमदार झोंका, हिलाने वाला।

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  6. सरजी,
    गोपी फ़िल्म का गाना याद आ गया,
    ’रामचन्द्र कह गये सिया से, ऐसा कलयुग आयेगा’

    वैसी फ़िल्म आज बने तो हंस और कौऐ की जगह गधे और नेता का जिक्र होता।

    पैंडेंसी कब निबटायेंगे आप? बहुत इंतजार करवाते हैं लोग यहाँ। जफ़र के दो दिन कटे थे इंतज़ार में, यहाँ चारों इंतज़ार में जायेंगे।

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  7. दिल से लिखी गई कविता ... अपने आस-पास की त्रासदी को इससे बेहतर कोई कैसे अभिव्यक्त करेगा । साधुवाद...

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  8. दो रोटी को निकला बेटा घर लौटे तो रामकृपा है
    प्रगतिवादी और जिहादी, बारूदी सुरंग लगा गये ॥
    बहुत सुंदर जी सत्य लिखा आप ने आज के हालात पर, धन्यवाद

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  9. एक दम बढिया और सटीक . पिट्सबर्ग मे रह कर भी आप बरेली वाली व्यथा कह रहे हो

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  10. बल्ले बल्ले.
    कविताएं कम ही पढ़ने को मिलती हैं आपकी :)

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  11. राजनैतिक परिदृश्य और सामाजिक हालात पर चुटकी लेती कविता !

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  12. अनुराग जी नमस्कार
    आपने गिरिजेश राव जी के ब्लॉग पर जो लिखा ....

    न मानो तो देख लो अधिकांश चिट्ठाकारों की अपनी सूची ही घूमती-फिरती रहती है। जैसे मुल्ला की दौड मस्जिद तक और अन्धे की रेवडी अपने ही हाथ तक पहुंचती है वैसे ही ये चर्चायें भी कोल्हू के बैल की तरह अपने घेरे से शायद ही कभी बाहर आती हैं!

    तो आप एक बार ये लिंक देखे...http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/237.html जिसमे आपकी पोस्ट की चर्चा की गयी है...


    सम्बन्ध - लघुकथा
    http://pittpat.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

    लेकिन अफ़सोस की आप वहा हमें प्रोत्साहित करने भी नहीं आये..आप तो एक जाने माने ब्लोगर है...ये सब जानते हैं.
    जिन नए ब्लोगर्स का हम परिचय करवाते हैं उनमे से भी कुछ अनभिग्य होते है वहा तक पहुचने के रास्ते से जबकि उन्हें लिंक भी दिया जाता है और मेसेज भी. इसके बावजूद भी हम नए ब्लोग्गर्स को लेते आये हैं.
    संगीता जी ने सही कहा की नए चर्चाकारों के इस मिथक को तोड़ा है..तब आप जैसे आदरणीय ब्लोगर्स से ये बात सुन कर दुख होता है.

    सादर
    अनामिका

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  13. अच्छी दिल से निकली रचना ...

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  14. वैसे तो आज़ाद सभी हैं, कोई ज़्यादा कोई कम है
    दारू की बोतल बंटवाकर नेताजी सब वोट पा गये॥
    yahi such hai..

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  15. वैसे तो आज़ाद सभी हैं, कोई ज़्यादा कोई कम है
    दारू की बोतल बंटवाकर नेताजी सब वोट पा गये॥

    ताज़ा हालात पर सटीक व्यंग किया है ..... उम्दा लिखा है बहुत ही ...

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  16. ये दो पंक्तियाँ देश-समाज का मौजूदा हाल बयां करने के लिए पर्याप्त हैं......पूरी कविता अच्छी मगर ये शेर सटीक लगा...आभार !
    टूटी सडकें बहते नाले, फूटी किस्मत, जेबें खाली
    योजनायें कागज़ पर बनतीं, ठेके रिश्तेदार पा गये॥

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  17. 14 पंक्तियों में सब समेट दिए!
    'कविता क्या है?' इस पर सोचने को एक बिन्दु मिला है।

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  18. @अनामिका की सदायें ...... said...
    अनुराग जी नमस्कार

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया!

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  19. नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

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  20. दो रोटी को निकला बेटा घर लौटे तो रामकृपा है
    प्रगतिवादी और जिहादी, बारूदी सुरंग लगा गये ॥

    स्थिति का सटीक चित्रण...ऐसा ही हाल है कुछ, हर जगह..

    एक परिचर्चा आयोजित की है, उसमे आपके भी अनुभव शामिल करने की इच्छा है..अगर आप अपना इमेल-पता भेज दें तो आपको वो मेल भेज सकूंगी.
    मेरा इमेल-पता है
    www.rashmeeravija26@gmail.com

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  21. bahut hi khubsurat rachna..
    behtareen abhiwyakti..
    mere blog mein is baar...
    सुनहरी यादें ....

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  22. प्रत्येक पद कड़वा सच उजागर कर रहा है |

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  23. टूटी सडकें बहते नाले, फूटी किस्मत, जेबें खाली
    योजनायें कागज़ पर बनतीं, ठेके रिश्तेदार पा गये॥

    वैसे तो आज़ाद सभी हैं, कोई ज़्यादा कोई कम है
    दारू की बोतल बंटवाकर नेताजी सब वोट पा गये॥
    सटीक अभिवयक्ति। शुभकामनायें।

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  24. एकदम लाजवाब...सिम्पली ग्रेट !!!
    और क्या कहूँ....

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  25. वाह...बहुत खूब..
    वास्तविकता का एकदम सही चित्रण।

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  26. आदरनीय अनुराग जी ,
    चरण स्पर्श...
    आपकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर देखकर काफी प्रसन्ता हुई |
    "हाल बुरा है " कविता में आपने देश की वास्तविकता को क्या दर्शाया है ,यही ख़ास बात है आपमें ,काल्पनिक जगत को दूर ही रखते हैं | बहुत अच्छा लगता है आपकी पोस्ट्स पढ़कर|
    "दो रोटी को निकला बेटा घर लौटे तो रामकृपा है
    प्रगतिवादी और जिहादी, बारूदी सुरंग लगा गये ||"

    "गिद्ध चील नापैद हो गये, गायें कचरा खाकर मरतीं
    गधे बेचारे भूखे रह गये, मुख्यमंत्री घास खा गये||"

    हमारे नेता||
    "FOOL THE PEOPLE, LOOT THE PEOPLE, USE THE PEOPLE"
    जो काम हम अपने देश में रह कर नहीं कर पा रहे,वो आप विदेश में रहकर कर रहे है |
    धन्यवाद|

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