टेसू के रंग यारों के संग इतराते बच्चे फूलों के गुच्छे रक्ताभ गाल और बिखरे बाल अद्भुत बिम्ब...अद्भुत...अनुराग जी को ढेरों बधाई....शुक्रिया आप का ऐसी नायाब रचना पढ़वाने के लिए... नीरज
रचना बहुत सुंदर है, मगर अभी सर्दी का आनंद शुरू ही हुआ है। रोज सुबह शाम देसी गुड़, तिल्ली की गजक, हरी सब्जियाँ, देसी बैंगन, तरह तरह के पराठे, कचौड़ियाँ, गरम जलेबियाँ, गरम लिहाफ, सूट, स्वेटर, जर्सियाँ रंग बिरंगे कपड़े और बहुत कुछ। सेहत बनाने का मौसम, डाक्टरों की छुट्टी। दो महिने इन का बजा ले लेने दीजिए। फिर वसंत याद करेंगे जो सपने की तरह आता है,फरवरी में धूल के छोटे छोटे चक्रवात (बरबूळिए) उसे उड़ा ले जाते हैं।
लगता है आज बसंत आ ही गया है ! बधाई ! ये लगता है आपने भी सबसे छोटी बहार की गजल लिखने का कीर्तीमान बनाया है ! क्या ये सही है ? मुझे कविता या गजल की समझ नही है ! अंदाजे से कह रहा हूँ ! ये कविता है या गजल है ! बस लाजवाब है ! मन प्रशन्न हो गया !
अरे बाबा अगर सर्दी का मजा लेना है तो आजो हमारे यहां , अगर फ़िर से सर्दी का नाम ले लिया तो मान जाउगां, बाप रे अभी तो -९ ही हुयी है, साथ मे तेज हवा, लेकिन इतनी सर्दी मै आप की कविता की गर्माहट ने थॊडी सर्दी दुर कर दी. धन्यवाद
एक बार किसी विदेशी कवियित्री के बारे में पढ़ा था कि "मैं चिड़िके पर जैसा सा हल्का, मुलायम लिखना चाहती हूं"। ये पढ़कर कुछ-कुछ वैसा ही लगा। वैसे अभी तो कुछ सर्दी पर भी होना चाहिए।
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टेसू के रंग
ReplyDeleteयारों के संग
इतराते बच्चे
फूलों के गुच्छे
रक्ताभ गाल
और बिखरे बाल
अद्भुत बिम्ब...अद्भुत...अनुराग जी को ढेरों बधाई....शुक्रिया आप का ऐसी नायाब रचना पढ़वाने के लिए...
नीरज
रचना बहुत सुंदर है, मगर अभी सर्दी का आनंद शुरू ही हुआ है। रोज सुबह शाम देसी गुड़, तिल्ली की गजक, हरी सब्जियाँ, देसी बैंगन, तरह तरह के पराठे, कचौड़ियाँ, गरम जलेबियाँ, गरम लिहाफ, सूट, स्वेटर, जर्सियाँ रंग बिरंगे कपड़े और बहुत कुछ। सेहत बनाने का मौसम, डाक्टरों की छुट्टी। दो महिने इन का बजा ले लेने दीजिए। फिर वसंत याद करेंगे जो सपने की तरह आता है,फरवरी में धूल के छोटे छोटे चक्रवात (बरबूळिए) उसे उड़ा ले जाते हैं।
ReplyDeleteअनुराग जी,बहुत बढिया रचना है।बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबालू पे शंख
ReplyDeleteतितली के पंख
इतराते बच्चे
फूलों के गुच्छे
बादल के लच्छे
फल अधकच्चे
बढ़िया प्रतीकों से लैस कविता। इतनी शीघ्र वसंत ले आने के लिए धन्यवाद। धमाकों से जलते देश में शायद कुछ ठंडक हो पाए।
बालू पे शंख
ReplyDeleteतितली के पंख
इतराते बच्चे
फूलों के गुच्छे
बादल के लच्छे
फल अधकच्चे
बढ़िया प्रतीकों से लैस कविता। इतनी शीघ्र वसंत ले आने के लिए धन्यवाद। धमाकों से जलते देश में शायद कुछ ठंडक हो पाए।
बालू पे शंख
ReplyDeleteतितली के पंख
इतराते बच्चे
फूलों के गुच्छे
बादल के लच्छे
फल अधकच्चे
बढ़िया प्रतीकों से लैस कविता। इतनी शीघ्र वसंत ले आने के लिए धन्यवाद। धमाकों से जलते देश में शायद कुछ ठंडक हो पाए।
बहुत बढिया रचना। बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteaapne to badi achchhi-achchhi cheejen dikha di.
ReplyDeleteअच्छा है। यहां सर्दी अभी यौवन पर नहीं आई। पर अन्तत: वसन्त आना ही है।
ReplyDeleteरक्ताभ गाल
ReplyDeleteऔर बिखरे बाल
सर्दी का अंत
मधुरिम वसंत।
लगता है आज बसंत आ ही गया है ! बधाई !
ये लगता है आपने भी सबसे छोटी बहार की गजल लिखने का कीर्तीमान बनाया है !
क्या ये सही है ? मुझे कविता या गजल की समझ नही है ! अंदाजे से कह रहा हूँ !
ये कविता है या गजल है ! बस लाजवाब है ! मन प्रशन्न हो गया !
रामराम !
वाह.
ReplyDeleteरचना बहुत सुंदर है.लाजवाब है.
ReplyDeleteBahut sundar, badai!
ReplyDeleteसुंदर कविता!
ReplyDeleteकोयल की तान
ReplyDeleteदैवी रसपान
सुन्दर उपमा है ।
अच्छा है भाई .. बहुत अच्छा है.
ReplyDeleteसर्दियोँ मेँ बसँत को याद कर रहेँ हैँ आप ? :)
ReplyDeleteअरे बाबा अगर सर्दी का मजा लेना है तो आजो हमारे यहां , अगर फ़िर से सर्दी का नाम ले लिया तो मान जाउगां, बाप रे अभी तो -९ ही हुयी है, साथ मे तेज हवा,
ReplyDeleteलेकिन इतनी सर्दी मै आप की कविता की गर्माहट ने थॊडी सर्दी दुर कर दी.
धन्यवाद
जीवंत बिम्बों वाली सुंदर रचना पढाने के लिए आभार।
ReplyDeleteमन की उमंग
ReplyDeleteज्यों जल तरंग
कोयल की तान
दैवी रसपान
टेसू के रंग
यारों के संग
" एक नाज़ुक सी प्यारी सी कविता शायद सभी को इस बसंत का इन्तजार है"
एक बार किसी विदेशी कवियित्री के बारे में पढ़ा था कि "मैं चिड़िके पर जैसा सा हल्का, मुलायम लिखना चाहती हूं"। ये पढ़कर कुछ-कुछ वैसा ही लगा। वैसे अभी तो कुछ सर्दी पर भी होना चाहिए।
ReplyDeleteमन की उमंग
ReplyDeleteज्यों जल तरंग
कोयल की तान
दैवी रसपान
टेसू के रंग
यारों के संग
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteआपकी लिखी धारावाहिक कहानी के बाद आज यह रचना पढ़ पाया हूँ, अब क्या मुझसे भी तारीफ़ करवायेंगे ?
बहुत अच्छा शब्दांकन है, यह तो !
टेसू के रंग
ReplyDeleteयारों के संग
बालू पे शंख
तितली के पंख
इतराते बच्चे
फूलों के गुच्छे
मन को छू लेने वाले छंद
आस पास बिखरे हुवे शब्दों से पिरोई कविता कविता
अति उत्तम
बसंत को खुबसूरत शब्दों में व्यक्त किया है आपने |
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