Friday, December 12, 2008

तुम्हारे बगैर - कविता

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ज़िंदा रहे हैं हम
तुम्हारे बगैर भी
गर जिंदगी इक आग के
दरिया का नाम है

ख़्वाबों में मिला करते हैं
तुमसे हमेशा हम
इसके सिवा न हमको तो
कुछ और काम है

तेरी है न मेरी है
दुनिया है यह फानी
हम तो हैं उस जहाँ के
जहाँ तेरा धाम है

पीने की आरजू क्या
हम ख़ाक करेंगे
तेरा जो साथ न हो तो
जीना हराम है।

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21 comments:

  1. कोई चार-पांच दिनों बाद आपके ब्‍लाग पर आ सका । आज आपकी कविता पढी । निम्‍नांकित पंक्तियां सुन्‍दर लगीं -

    तेरी है न मेरी है
    दुनिया है यह फानी
    ---
    पीने की आरजू क्या
    हम ख़ाक करेंगे
    तेरा जो साथ न हो तो
    जीना हराम है।

    आपकी कशिश को सलाम ।

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  2. बहुत अच्छी कविता। बधाई

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  3. ख़्वाबों में मिला करते हैं
    तुमसे हमेशा हम
    इसके सिवा न हमको तो
    कुछ और काम है..acchhi kavitaa

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  4. सही है जी, जी तो रहे ही हैं! पर यह जीना भी क्या?

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  5. पीने की आरजू क्या
    हम ख़ाक करेंगे
    तेरा जो साथ न हो तो
    जीना हराम है।

    बेहद लाजवाब !

    राम राम !

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  6. यथार्थ के करीब, सुंदर रचना

    तेरी है न मेरी है
    दुनिया है यह फानी
    हम तो हैं उस जहाँ के
    जहाँ तेरा धाम है

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  7. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  8. िजंदगी की सच्चाई को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  9. आप कहानियाँ बहुत अच्छी लिखते हैं, कविता से ज़्यादा...

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  10. बहुत सुंदर हर बार की तरह .. बधाई

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  11. तेरा जो साथ न हो तो
    जीना हराम है।
    "" साथ और चाहत की सुंदर अभिव्यक्ति "
    regards

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  12. तेरी है न मेरी है
    दुनिया है यह फानी

    वाह बहुत खूब।

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  13. तेरी है न मेरी है
    दुनिया है यह फानी
    हम तो हैं उस जहाँ के
    जहाँ तेरा धाम है
    क्या शब्द है...वाह....कमाल की रचना...
    नीरज

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  14. तेरा जो साथ न हो तो
    जीना हराम है !

    बढ़िया !

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  15. अरे वाह ,तीन दिन बहार क्या रही ,वापसी में एकसाथ तीन कवितायें पढने को मिल गयीं.......

    भावपूर्ण सुंदर पंक्तियाँ हैं कविता में..

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