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एकाकीपन के निर्मम मरु में
मैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता
दुःख के सागर में डूबा
मैं ज्यों ही ऊपर उतराता
कोई आता
घोर व्यथा अवसाद में डूबे
पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता
आँसू की अविरल धारा
बहने से रोक नही पाता*
कोई आता
मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।
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*आभार: सीमा गुप्ता
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घोर व्यथा अवसाद में डूबे
ReplyDeleteपीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !
राम राम !
एकाकीपन के निर्मम मरू में
ReplyDeleteमैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता
"आंसू की अविरल धारा को जब ,
बहने से रोक नही मै पाता,
कोई आता"
" असहाय पीडा की अनुभूति ,"
बहुत कमाल के शब्द चयन से गुथीं रचना है ये...वाह...
ReplyDeleteनीरज
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteमुक्त छंद की अद्भुत अनुभूतियां...
ReplyDeleteमार्मिक रचना। कम शब्दों बहुत कुछ कह गए आप।
ReplyDeleteघोर व्यथा अवसाद में डूबे
ReplyDeleteपीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता
सुंदर अभिव्यक्ति, कुछ ही शब्दों मैं कही गहरी बात
सारगर्भित रचना
कम लफ्जों में अधिक बात कही आपने ..सुंदर
ReplyDeleteशब्द चयन कविता का सौंदर्य है!
ReplyDeleteकाश........., सुन्दर अद्भुत.
ReplyDeleteमुक्त छन्द में 'नव-गीत' के शिल्प वाली ऐसा रचना बहुत दिनों बाद पढने को मिली ।
ReplyDeleteभावनाएं और शब्द चयन तो सदैव की तरह सुन्दर है ही ।
घोर व्यथा अवसाद में डूबे
ReplyDeleteपीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता
मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।
सच उम्मीद साथ हो तो इंसान बड़े से बड़ा पहाड़ चढ़ जाता है, मुसीबत पर जीत हासिल कर लेता है। बढ़िया कविता।
अरे बन्धु, न जाने क्यों सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" की याद हो आई।
ReplyDeleteअच्छी रचना, 'आता' शब्द से निराला की भिक्षुक याद आ गई.
ReplyDelete--मेरा जीवन रक्षक बन जाता
ReplyDeleteकोई आता।'
ati sundar!
Anuraag ji aap ne kam shbdon mein sundar rachna likhi hai.
सुँदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी की बातों से सहमत हूँ!
ReplyDeleteअनुराग भाई, सचमुच आपने निराला जी की याद दिला दी.
मार्मिक होते हुए भी सुंदर रचना!
तुम ही हो खुद के रक्षक भी, तुम ही खुद के भक्षक भी।
ReplyDeleteआंखें खोलो आगे देखो, संसार खडा है स्वागत में।
एकाकीपन के निर्मम मरू में,
ReplyDeleteमैं असहाय खड़ा पछताता.............कोई आता......
बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति.बहुत ही सुंदर कविता है मन को छू जाती है.
सहसा उस गीत का स्मरण हो आया...
कोई आता मैं सो जाता.......
वाह वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति बधाई आपको
ReplyDeleteयुँ तो घने अंधेरे ए परछाई भी साथ छोड देती है ....
ReplyDeleteआप कविता बहुत अच्छी लिखते है पिछले पोस्ट की भी कविता काबीले तारीफ़ थी !!
मंदी की मार से मरते
ReplyDeleteबाजार में जब कोई हल नजर नही आता है
तब अच्छा से पैकेज लेकर
कोई आता है
अच्छी कविता की लिये बधाई.
मार्मिक अभिव्यक्ति !!!!!
ReplyDeleteएकाकीपन के निर्मम मरू में
ReplyDeleteमैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता
मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।
बेहतर अभिव्यक्ति |
रश्मि प्रभा जी ब्लॉग बुलेटिन के माध्यम से अक्सर पुरानी यादें ताज़ा करवाती रहती हैं ... आज की बुलेटिन में भी ऐसी ही कुछ ब्लॉग पोस्टों को लिंक किया गया है|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वो जब याद आए, बहुत याद आए – 2 “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !