Sunday, December 14, 2008

काश - कविता

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एकाकीपन के निर्मम मरु में
मैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता

दुःख के सागर में डूबा
मैं ज्यों ही ऊपर उतराता
कोई आता

घोर व्यथा अवसाद में डूबे
पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता

आँसू की अविरल धारा
बहने से रोक नही पाता*
कोई आता

मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।

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26 comments:

  1. घोर व्यथा अवसाद में डूबे
    पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
    कोई आता

    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !

    राम राम !

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  2. एकाकीपन के निर्मम मरू में
    मैं असहाय खड़ा पछताता
    कोई आता
    "आंसू की अविरल धारा को जब ,
    बहने से रोक नही मै पाता,
    कोई आता"
    " असहाय पीडा की अनुभूति ,"

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  3. बहुत कमाल के शब्द चयन से गुथीं रचना है ये...वाह...
    नीरज

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  4. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !

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  5. मुक्त छंद की अद्भुत अनुभूतियां...

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  6. मार्मिक रचना। कम शब्दों बहुत कुछ कह गए आप।

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  7. घोर व्यथा अवसाद में डूबे
    पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
    कोई आता

    सुंदर अभिव्यक्ति, कुछ ही शब्दों मैं कही गहरी बात
    सारगर्भित रचना

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  8. कम लफ्जों में अधिक बात कही आपने ..सुंदर

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  9. शब्द चयन कविता का सौंदर्य है!

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  10. काश........., सुन्दर अद्भुत.

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  11. मुक्‍त छन्‍‍द में 'नव-गीत' के शिल्‍प वाली ऐसा रचना बहुत दिनों बाद पढने को मिली ।
    भावनाएं और शब्‍द चयन तो सदैव की तरह सुन्‍दर है ही ।

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  12. घोर व्यथा अवसाद में डूबे
    पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
    कोई आता

    मेरा जीवन रक्षक बन जाता
    कोई आता।

    सच उम्मीद साथ हो तो इंसान बड़े से बड़ा पहाड़ चढ़ जाता है, मुसीबत पर जीत हासिल कर लेता है। बढ़िया कविता।

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  13. अरे बन्धु, न जाने क्यों सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" की याद हो आई।

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  14. अच्छी रचना, 'आता' शब्द से निराला की भिक्षुक याद आ गई.

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  15. --मेरा जीवन रक्षक बन जाता
    कोई आता।'
    ati sundar!
    Anuraag ji aap ne kam shbdon mein sundar rachna likhi hai.

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  16. ज्ञानदत्त जी की बातों से सहमत हूँ!
    अनुराग भाई, सचमुच आपने निराला जी की याद दिला दी.
    मार्मिक होते हुए भी सुंदर रचना!

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  17. तुम ही हो खुद के रक्षक भी, तुम ही खुद के भक्षक भी।

    आंखें खोलो आगे देखो, संसार खडा है स्‍वागत में।

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  18. एकाकीपन के निर्मम मरू में,
    मैं असहाय खड़ा पछताता.............कोई आता......

    बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति.बहुत ही सुंदर कविता है मन को छू जाती है.

    सहसा उस गीत का स्मरण हो आया...
    कोई आता मैं सो जाता.......

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  19. वाह वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति बधाई आपको

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  20. युँ तो घने अंधेरे ए परछाई भी साथ छोड देती है ....

    आप कविता बहुत अच्छी लिखते है पिछले पोस्ट की भी कविता काबीले तारीफ़ थी !!

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  21. मंदी की मार से मरते
    बाजार में जब कोई हल नजर नही आता है
    तब अच्छा से पैकेज लेकर
    कोई आता है

    अच्छी कविता की लिये बधाई.

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  22. मार्मिक अभिव्यक्ति !!!!!

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  23. एकाकीपन के निर्मम मरू में
    मैं असहाय खड़ा पछताता
    कोई आता

    मेरा जीवन रक्षक बन जाता
    कोई आता।

    बेहतर अभिव्यक्ति |

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  24. रश्मि प्रभा जी ब्लॉग बुलेटिन के माध्यम से अक्सर पुरानी यादें ताज़ा करवाती रहती हैं ... आज की बुलेटिन में भी ऐसी ही कुछ ब्लॉग पोस्टों को लिंक किया गया है|

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वो जब याद आए, बहुत याद आए – 2 “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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