स्थिति बहुत दुखद है। सारे देश का आक्रोश फूटा पड़ रहा है। जिन निर्दोषों की जान गयी उनके बारे में तो कहना ही क्या, मगर बाकी घरों में भी गम का माहौल है। सैनकों ने जल्दबाजी करने के बजाय जिस धैर्य और गंभीरता से अपना सारा ध्यान ज़्यादा-से-ज़्यादा जानें बचाने पर रखा वह ध्यान देने योग्य बात रही है। आश्चर्य नहीं कि पंजाब से आतंकवाद का निर्मूलन करने वाले सुपरकॉप के पी एस गिल ने भी बचाव और प्रत्याक्रमण के धीमे परन्तु सजग और दृढ़ तरीके की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
जहाँ सारा देश स्थिति के आँकलन और आगे इस तरह की परिस्थिति से बचने के उपायों के बारे में सोच रहा है वहीं शर्म की बात यह है कि देश के कुछ उर्दू अखबार बुरी तरह से लगकर इस घटना में भी हिन्दू-मुसलमान ही ढूंढ रहे हैं। बी बी सी की एक रिपोर्ट के मुताबिक उर्दू अखबारों की ख़बरों के कई नमूने साफ़-साफ़ बता रहे हैं कि उर्दू पत्रकारिता में किस तरह के लोग घुसे हुए हैं। एक अखबार सवाल करता है, "भला कोई मुसलमान हेमंत करकरे को क्यों मारेगा?" जबकि दूसरा शक करता है, "कहीं यह मालेगांव की जांच से ध्यान हटाने की साजिश तो नहीं?" एक और अखबार ज़्यादा लिखता नहीं है मगर एक आतंकवादी का चित्र छापकर उसकी कलाई में लाल बंद जैसी चीज़ पर घेरा लगाकर दिखाता है। शायद उन सम्पादक जी को बम और हथियार नहीं दिख रहे हैं इसलिए खुर्दबीन लगाकर आतंकी के हाथ में कलावा ढूंढ रहे हैं। लानत है ऐसे लोगों पर जो इस संकट की घड़ी में भी सिर्फ़ यही खोजने पर लगे हैं कि झूठ कैसे बोला जाए और बार बार झूठ बोलकर जनता का ध्यान असली मुद्दों से कैसे भटकाया जाए।
आम जनता में डर भले ही न हो मगर इस बात की चिंता तो है ही कि जम्मू-कश्मीर को शेष भारत जैसा सुरक्षित बनाने के बजाय कहीं बाकी देश भी कश्मीर जैसा न हो जाय। यह भी इत्तेफाक की बात है जिस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर में क़ानून-व्यवस्था हाथ से फिसली और वहाँ आतंकवाद पनपा, उसकी मृत्यु भी उसी आतंकवाद की वजह से कोई बड़ी ख़बर न बन सकी।
चिंता स्वाभाविक तो है मगर मेरी नज़र में किसी भी भय का कारण नहीं है। भारत के हजारों साल के इतिहास में हम इससे भी कहीं अधिक भयानक समय से गुज़रे हैं लेकिन भारत के वीरों ने हर कठिन समय का डटकर मुकाबला किया है। कितने देश, संस्कृतियाँ मिट गयीं, कितनी नयी महाशक्तियाँ बनीं-मिटीं मगर हम थे, हैं और रहेंगे - एक महान संस्कृति, एक महान राष्ट्र। हर बुरे वक़्त के बाद हम पहले से बेहतर ही हुए हैं। मुझे इकबाल की कही हुई पंक्तियाँ याद आ रही हैं,
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे ज़मां हमारा।।
यह सच है कि राष्ट्र इस घटना के लिए तैयार नहीं था। निश्चित ही कई चूकें हुई हैं जो कि आतंकवादी विस्फोटकों का इतना ज़खीरा इकठ्ठा कर सके और मिलकर दस ठिकानों पर आक्रमण कर पाये। निरीह-निर्दोष जानें भी गयीं। मगर हमें पूरा भरोसा रखना चाहिए कि हम इस घटना से भी कुछ नया ही सीखेंगे और यह देश दोबारा ऐसा नहीं होने देगा।
जान देने वाले सभी वीरों को नमन! ईश्वर उनके परिवारों को इस कठिन समय को सहने की शक्ति दे!
आवाज़ पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - नवम्बर २००८ |
समस्या तभी दूर होगी जब इस तरह की जहनियत के लोगों को उठाकर या तो जेल में ठूंस दिया जाये या किसी इस्लामी मुल्क को भेज दिया जाये.
ReplyDeleteसब तुष्टिकरण का ही तो नतीज़ा है जो गद्दार इतनी हिम्मत कर पा रहे हैं .
ReplyDeleteun jawanon ke prati shradha suman arpit karta hun.
ReplyDeletesmart indian sahab,hamesha aapki tippadiyon ko hindyugm par padhta raha,aaj aapki vastvik bhawnaaon se rubaru hone ka mauka mila.it was really heart touching.keep it up
ALOK SINGH "SAHIL"
देश के लिए सबसे अधिक बुरा वे कर रहे हैं जिन्होंने निहित स्वार्थ के लिए इस सांप्रदायिकता को सेकुलरवाद का दिखावटी आवरण पहना दिया है। वे जानते हैं कि यह आवरण झूठमूठ का है। लेकिन ऐसा करने में उनका स्वार्थ सधता है। उनके लिए स्वार्थ सधना ही परम साधना है। स्वार्थ के आगे देश और समाज उनके लिए कुछ भी नहीं।
ReplyDeleteआपने एकदम सही लिखा है। यह चिन्ता देश के हर नागरिक को होनी चाहिए।
ReplyDeleteकरना है इस्लाम का, भारतीयकरण आज.
ReplyDeleteअगर बचाना देश को, यही जरूरी आज.
यही जरूरी आज, भूमिका मुस्लिम की यह.
साबित करदे,कुरान से प्यारी भूमि उसे यह.
कह साधक इतनी सी बात से,क्या हो इस्लाम का.
भारतीयकरण आज, करना है इस्लाम का.
सब तरह के लोग हैं दुनिया में। हम अच्छे लोगों की तादाद बढ़ाएँ।
ReplyDelete"कुछ बात है कि हस्ती, मिट्टी नहीं हमारी।
ReplyDeleteसदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा।।"
भारत की अखण्डता अक्षुण है . इसके रक्षकों को नमन.
निरीह-निर्दोष जानें भी गयीं। मगर हमें पूरा भरोसा रखना चाहिए कि हम इस घटना से भी कुछ नया ही सीखेंगे और यह देश दोबारा ऐसा नहीं होने देगा।
ReplyDeleteयहाँ बार बार ऐसा ही होता है ! जो भुक्तभोगी हैं उनके अलावा कोई याद नही रखता ! यहाँ का राजनैतिक नेतृतव अक्षम हो चुका है ! शायद एक क्रांती की जरुरत है ! रामराम !
सच में दुखद है। और भय से तो मरण ही है, जीत नहीं। लिहाजा भय का तो कोई कारण नहीं।
ReplyDeletehum agar sikhne wale hi hote to kab ke sikh chuke hote..aur kya sikhne ko reh gaya hai?
ReplyDeleteक्षमा करना मेरे पूर्वजों, मैं हिजड़ा बन गया हूँ!
सिर्फ पत्रकारिता नहीं हर अहम हिस्से में ऐसी दीमकें डाल दी गयी हैं जो अंदर ही अंदर देश को खोखला किये दे रही हैं।
ReplyDeletePass it on:
ReplyDelete"Forgiving a Terrorist should be left to GOD...
But fixing their appointment with GOD is entirely our Responsibility"
- INDIAN ARMY
Regards,
जो अंधेरों से उठे तो फिर उजाला बन गये
ReplyDeleteक्या हुआ गर जुगनु थे कल, अब सितारा बन गये
जब उठा तूफ़ां तो हम सैलाब से बहने लगे
डूबना था वैसे हमको पर किनारा बन गये
--मानोशी
आपके पोस्टस में दिल से/ ईमानदारी से लिखे शब्दों का अहसास होता है हमेशा।
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।
ReplyDeleteऐसे लोगों को बिना पूछे गोली मार देनी चाहिए... इन धमाकों ने बाकियों का तो पता नहीं मुझे बहुत बदल दिया है !
ReplyDeletemajhab aur media dono hi dushman lagte hain ab to insaan ko insaan ki nazar se kyun nahi dekhte..... hindu,muslim sikh isaai ki nazar kyun nahi dekhte......
ReplyDeletewo sipahi jo ek sath jang ladte hain ek sath jite sath marte hain......
wo to majhab nahi dekhte wo to hath se hath milakar dushman ka saamna karte hain...
ab boliye kaun bada hai hum jo majhab ko har jagha le aate hain ya wo sipahi .....
aapne sahi mudda uthaya hai .
tahedil se aapka shukrguzaar huin..
एक दर्पण,दो पहलू और ना जाने कितने नजरिये /एक सिपाही और एक अमर शहीद का दर्पण और एक आवाज
अक्षय,अमर,अमिट है मेरा अस्तित्व वो शहीद मैं हूं
मेरा जीवित कोई अस्तित्व नही पर तेरा जीवन मैं हूं
पर तेरा जीवन मैं हूं
अक्षय-मन
जो भी इन लोगो की तरफ़ दारी करे उसे भी गोली मार देनी चाहिये, चाहे वो कोई भी हो
ReplyDeleteजान देने वाले सभी वीरों को नमन! ईश्वर उनके परिवारों को इस कठिन समय को सहने की शक्ति दे!
ReplyDeleteकुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
ReplyDeleteसदियों रहा है दुश्मन, दौरे ज़मां हमारा।।
--देश के लिए शहीद होने वालों को मेरा सादर नमन है.
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
ReplyDeleteसदियों रहा है दुश्मन, दौरे ज़मां हमारा।।
सारे जहां से अच्छा हिन्दूस्तां हमारा!
आप सच कह रहे है ,यह वक्त हिन्दु-मुस्लीम करने का नही आंसु बहाने ,अपना सर पटकने या शरम से पानी-पानी होने का है !!
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