कभी-कभी यूँ भी होता है कि कहने को बहुत कुछ होता है मगर इतनी सारी बातों में यह समझ नहीं आता कि क्या कह दिया जाए और क्या रह दिया जाए. कुछ ऐसा ही आजकल मेरे आसपास हो रहा है. मौसम तेज़ी से बदल रहा है. कल तक तरह-तरह के रंगों से सुशोभित पेड़ ठूँठ से नज़र आने लगे हैं. सुबह घर से जल्दी निकलो तो बर्फ की चादर से ढँकी घास का रंग सफ़ेद दिखता है. आज रात में तीन इंच बर्फ जमने की संभावना है.
पिछले हफ्ते की बेरोजगारी की दर पिछले सोलह साल में सर्वाधिक थी. लोग मंदी की मार के मारे हुए हैं. शेयर बाज़ार तो कलाबाजियां खाता जा रहा है. सिटीबैंक का शेयर आज पाँच डॉलर से नीचे चला गया. बहुत पैसा डूब गया. मगर ऐसा भी नहीं कि सब कुछ ख़राब ही हो रहा हो. हर स्टोर में सेल लगी हुई है. सेल तो वैसे हर साल ही लगती है मगर इस साल तो हर कोई किसी तरह करके भी अपना माल बेचने का भरसक प्रयत्न कर रहा है. और उसके लिए वे ग्राहक को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. बहुत सी दुकानों को डर है कि अगर इस सीज़न में पैसा नहीं बना सके तो शायद अगले सीज़न तक धंधे से बाहर ही न हों. पेट्रोल की कीमतों में गिरावट भी जारी है. कुछ स्थानों में प्रति-गैलन पेट्रोल भी दो डॉलर से कम आ गया.
दफ्तर के बाहर के बड़े से सजावटी फव्वारे को जब लकडी के फट्टों से ढंका जाने लगा तो यही सोचा कि शायद बर्फ से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा हो. मगर जब उस पर बाकायदा सेट तैयार होने लगा तो ध्यान आया कि यहाँ भी त्योहारों का मौसम आ चुका है. बाज़ार में सड़क-किनारे लगे पेड़ों को बिजली की झालरों से सजाया जाने लगा है. जगह-जगह ईसा मसीह के जन्म के दृश्य की झाँकियाँ बननी शुरू हो गयी हैं. दफ्तर के बाहर के फव्वारे के ऊपर हर साल एक बहुत बड़ी झांकी लगती है.शुक्रवार को शहर की सालाना "लाईट अप नाईट" है जो कि आधिकारिक रूप से त्यौहार के मौसम का आरम्भ मानी जा सकती है.
ऐसा भी नहीं है कि सब लोग त्यौहार की खुशी में शरीक ही हों. कुछ लोग तो गिरती बर्फ में शून्य से नीचे के तापक्रम में खड़े होकर काम मांगते दिख जाते हैं ताकि अपने बच्चों के लिए क्रिसमस के उपहार खरीद सकें. मगर कुछ लोग अकारण भी नाखुश रहने की कला जानते हैं. पिछली बार कुछ दलों ने इस बात पर हल्ला मचाया था कि कुछ दुकानों ने "शुभ क्रिसमस" के चिह्न क्यों लगाए थे. यह दल चाहते थे कि दुकानें सिर्फ़ एक "सीजंस ग्रीटिंग" जैसा धर्म-निरपेक्ष नारा ही लिखें.
समाज सेवी संस्थायें भी काम पर निकल पडी हैं ताकि बालगृह और अनाथालय आदि में रह रहे बच्चों तक उपहार और बेघरबार लोगों तक ऊनी कपड़े आदि पहुँचाए जा सकें. कुल मिलाकर यह समय विरोधाभास का भी है और संतुष्टि का भी. कोई उपहार पाकर संतुष्ट है और कोई उपहार देकर!
पिछले हफ्ते की बेरोजगारी की दर पिछले सोलह साल में सर्वाधिक थी. लोग मंदी की मार के मारे हुए हैं. शेयर बाज़ार तो कलाबाजियां खाता जा रहा है. सिटीबैंक का शेयर आज पाँच डॉलर से नीचे चला गया. बहुत पैसा डूब गया. मगर ऐसा भी नहीं कि सब कुछ ख़राब ही हो रहा हो. हर स्टोर में सेल लगी हुई है. सेल तो वैसे हर साल ही लगती है मगर इस साल तो हर कोई किसी तरह करके भी अपना माल बेचने का भरसक प्रयत्न कर रहा है. और उसके लिए वे ग्राहक को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. बहुत सी दुकानों को डर है कि अगर इस सीज़न में पैसा नहीं बना सके तो शायद अगले सीज़न तक धंधे से बाहर ही न हों. पेट्रोल की कीमतों में गिरावट भी जारी है. कुछ स्थानों में प्रति-गैलन पेट्रोल भी दो डॉलर से कम आ गया.
दफ्तर के बाहर के बड़े से सजावटी फव्वारे को जब लकडी के फट्टों से ढंका जाने लगा तो यही सोचा कि शायद बर्फ से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा हो. मगर जब उस पर बाकायदा सेट तैयार होने लगा तो ध्यान आया कि यहाँ भी त्योहारों का मौसम आ चुका है. बाज़ार में सड़क-किनारे लगे पेड़ों को बिजली की झालरों से सजाया जाने लगा है. जगह-जगह ईसा मसीह के जन्म के दृश्य की झाँकियाँ बननी शुरू हो गयी हैं. दफ्तर के बाहर के फव्वारे के ऊपर हर साल एक बहुत बड़ी झांकी लगती है.शुक्रवार को शहर की सालाना "लाईट अप नाईट" है जो कि आधिकारिक रूप से त्यौहार के मौसम का आरम्भ मानी जा सकती है.
ऐसा भी नहीं है कि सब लोग त्यौहार की खुशी में शरीक ही हों. कुछ लोग तो गिरती बर्फ में शून्य से नीचे के तापक्रम में खड़े होकर काम मांगते दिख जाते हैं ताकि अपने बच्चों के लिए क्रिसमस के उपहार खरीद सकें. मगर कुछ लोग अकारण भी नाखुश रहने की कला जानते हैं. पिछली बार कुछ दलों ने इस बात पर हल्ला मचाया था कि कुछ दुकानों ने "शुभ क्रिसमस" के चिह्न क्यों लगाए थे. यह दल चाहते थे कि दुकानें सिर्फ़ एक "सीजंस ग्रीटिंग" जैसा धर्म-निरपेक्ष नारा ही लिखें.
समाज सेवी संस्थायें भी काम पर निकल पडी हैं ताकि बालगृह और अनाथालय आदि में रह रहे बच्चों तक उपहार और बेघरबार लोगों तक ऊनी कपड़े आदि पहुँचाए जा सकें. कुल मिलाकर यह समय विरोधाभास का भी है और संतुष्टि का भी. कोई उपहार पाकर संतुष्ट है और कोई उपहार देकर!
ओमनी विलियम पेन होटल में लाईट अप नाईट का दृश्य |
मेरे कार्यालय के बाहर यीशु के जन्म का दृश्य |
दोनों चित्र: अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma
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"बहुत सी दुकानों को दर है कि अगर इस सीज़न में पैसा नहीं बना सके तो शायद अगले सीज़न तक धंधे से बाहर ही न हों."
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ! सामयीक विषय को आपने मानवीय पहलु से देखा है ! एक तरफ़ मंदी, गिरता तापमान और उसके सामने क्रिसमस का त्योंहार ! कम शब्दों में गहरी बात कहने का हुनर आप भलीभांति जानते हैं ! बहुत शुभकामनाएं !
मंदी जीवन से बहुत से कुछ छीन लेती है, जीवन फिर भी चलता रहता है।
ReplyDeleteपिछले हफ्ते की बेरोजगारी की दर पिछले सोलह साल में सर्वाधिक थी. लोग मंदी की मार के मारे हुए हैं. ..." very well described the thoughts on various phases the life is going on......now a days inspite of such dratsic situation.... but life is so simple for many people,and it goes and goes on......"
ReplyDeleteRegards
'कुछ दुकानों ने "शुभ क्रिसमस" के चिन्ह क्यों लगाए थे. यह दल चाहते थे कि दुकानें सिर्फ़ एक "सीजंस ग्रीटिंग" जैसा धर्म-निरपेक्ष नारा ही लिखें.'aisa bhi hota hai!
ReplyDelete-यह समय विरोधाभास का भी है और संतुष्टि का भी--yahi aaj kal ke haalat hain --aarthik mandi ki maar se sabhi prabhavit hain.
बहुत सोचपरक लेख है ! जीवन इन सबसे होकर ही आगे बढ़ता है ! धन्यवाद !
ReplyDeleteज़िन्दगी तो चलती रहती है ..आपके लेख के माध्यम से वहां के बारे में जानना अच्छा लगा
ReplyDeleteमुझे तो लगता है मंदी कुछ मामलों में ठीक भी है, कम से कम महंगाई तो कुछ कम हो रही है। वैसे सीजंस ग्रीटिंग या धर्मनिरपेक्ष नारा लिखने का विचार बढ़िया है।
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा लगता है.. पर फिर वक़्त बदल जाता है.. ये तो पहिया है बस घूम रहा है..
ReplyDeleteआस पास की घटनाओं से खुद को अलग थलग कर लेना नामु्मकिन्…
ReplyDeleteबहुत बढिया आलेख है।
ReplyDeletepata nahi, badi virodhabhasi vichar kyon utpann hone lage hain, aapka lekh padhkar, mujhe tasveeren aur jyada khoobsoorat lagin.
ReplyDeleteदूसरा वाला चित्र ज्यादा सुंदर लगा..लेख तो था ही सुंदर और अलग सा भी
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से आपका मन और आपका माहौल - दोनो की झलक मिली। ब्लॉगिंग का यही तो मजा है। लगता है कि हम बसअ ड्डे पर मिले हों और पांच मिनट हाल-चाल लिया हो।
ReplyDeleteमंदी की मार तो हर जगह पड़ी है त्योहारों पर भी असर दिखाना स्वाभाविक है.
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया लिखा है।
ReplyDeletebadhiyan. samyik vishay uthaya hai.
ReplyDeletethanks Anuraag ji for the online link of LIC.
ReplyDelete-alpana
वक्त अपनी रफ़तार से चलता रहेगा, यह मंदी केसी भी हो, ओर गरीब ,ओर सहन शील को कोई फ़र्क नही पडने वाला.
ReplyDeleteधन्यवाद
मंदी हो तेजी जीवन चलता ही रहता है....बढ़िया चित्र और सुंदर वर्णन ....कार में पेट्रोल भरिये और शोपिंग पर निकल पड़िये ....शायद ऐसा मौका फ़िर ना मिले...
ReplyDeleteनीरज
This is what being politically correct is all about that is to say "Season's Greetings " but not
ReplyDeleteMerry Christmas - !! Well, जीझस क्राइस्ट तो पैदा हुए माता मेरी की कृपा दुनियाभर मेँ बाँटने के लिये
और लोग धर्म के नाम पर लडते रहेँगेँ
- लावण्या
Bahut sundar, aapki lekhni se shabd nahin phool barsate hain.
ReplyDeleteReally? Thanks!
Deleteअंकल सैम के घर का एक झरोका आपने बहुत सच्चाई से झँकवाया। शुक्रिया।
ReplyDeleteअंकल सैम (US)के घर का एक झरोखा आपने बहुत सच्चाई से झाँकने का मौका दिया। शुक्रिया।
ReplyDeleteमंदी हो तेजी जीवन चलता ही रहता है....
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुंदर अद्भुत
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