.
साथ तुम्हारा होता तो
यह बोझिल रस्ता हँसत़े हँसते
कट ही जाता
हार तुम्हारी बाँहों का
मेरी ग्रीवा में पड़ता तो
दुख थोड़ा तो घट ही जाता
हँसता रहता कभी न रोता
साहस सहज न खोता
पास तुम्हें हरदम जो पाता
कभी जिसे अपना सरबस सौंपा था तुमने
आज वही मैं पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता
यह बोझिल रस्ता हँसते हँसते
कट ही जाता।
.
बधाई बंधुवर
ReplyDeleteइस खूबसूरत कविता के लिये
शुभकामनाएं
दूरियां ही सामीप्य का महत्व अनुभव कराती हैं । मिल जाने पर सुख अवश्य होता है किन्तु अप्राप्ति से उपजने वाली अकुलाहट जो सक्रियता प्रदान करती है, उसस वंचित हो जाना पडता है ।
ReplyDeleteक्या करें - साथ रहें या अलग-अलग ।
सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी ।
सच में, न जाने कैसे "चल अकेला" की बात कही जाती है। मेरे विचार से यह साथ तो चाहिये ही।
ReplyDeleteकभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
ReplyDeleteआज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता
bahot badhiya bhav bhara hai aapne bahot umda ..
जिन्दगी ऐसे ही कट जाती है, सर, पता भी नहीं चलता और आजकल तो सरकार ने आतंकवादियों और बांग्लादेशियों को जिन्दगी काटने की इजाजत दे दी है.
ReplyDeleteजिन्दगी ऐसे ही कट जाती है, सर, पता भी नहीं चलता और आजकल तो सरकार ने आतंकवादियों और बांग्लादेशियों को जिन्दगी काटने की इजाजत दे दी है.
ReplyDeleteअप्रूवल का झंझट हटाइये, सर.
ReplyDeleteकमेन्ट-मोडरेशन तब भी ज़रूरी था बंधु और उसकी ज़रुरत आज भी बनी हुई है
Deleteachcha likha hai..
ReplyDeleteकभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
ReplyDeleteआज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता
वाह वाह .. बेहतरीन और सुंदर भाव अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
सुंदर ! ये आइंस्टाइन और गाँधी वाली पोस्ट क्यों हटा दी? रीडर में बस एक लाइन दिखी !
ReplyDeleteदो नये शब्दों के साथ ये कविता अलग बन पडी है, स्वागत.
ReplyDeleteअलग से मतलब, जो अमूमन वापरे नहीं जाते..
ग्रीवा और सरबस.
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
badhai is sundar kavita ke liye smart kavita from smart indian
ReplyDeletebahot badhiyan, dhnyabad
ReplyDeleteकोई पास आकर इतना ही कह दे
ReplyDeleteअकेले जाने वाले अपने साथ मेरी दुआएँ लेता जा !!
उम्दा अभिव्यक्ती !!
दुर्लभ है ऐसा प्यार-
ReplyDeleteकभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
आज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता
जीवन के सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है ।
ReplyDeleteअच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Waah ! kya baat hai.......
ReplyDeletebahut bahut bhaavpoorn,sundar udgaar hain.Lajawaab.
बहुत ही उम्दा.. वाकई
ReplyDeleteबंधू आप की कविताओं मैं कुछ है जो खींचता है
ReplyDeleteसीधे शब्दों मैं आप बहुत गहरी बात कहते हो