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साथ तुम्हारा होता तो
यह बोझिल रस्ता हँसत़े हँसते
कट ही जाता
हार तुम्हारी बाँहों का
मेरी ग्रीवा में पड़ता तो
दुख थोड़ा तो घट ही जाता
हँसता रहता कभी न रोता
साहस सहज न खोता
पास तुम्हें हरदम जो पाता
कभी जिसे अपना सरबस सौंपा था तुमने
आज वही मैं पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता
यह बोझिल रस्ता हँसते हँसते
कट ही जाता।
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