निष्ठुर ठंडी काली रातें रिसते घाव रुलाती रातें। फूल पात सब बीती बातें सूने दिन और रीती रातें। मुरझाया कुम्हलाया तन-मन उजड़ी सेज कंटीली रातें। मिलन बिछोहा सब झूठा था सत्य भयानक हैैं ये रातें। फटी पुरानी यादें लाकर पैबन्दों को बिछाती रातें। सूखे पत्ते सूनी शाखें पतझड़ में सताती रातें।। |
(रेखाचित्र: अनुराग शर्मा)
फटी पुरानी यादें लाकर
ReplyDeleteपैबन्दों को बिछाती रातें।
सूखे पत्ते नंगी शाखें
पतझड़ में सताती रातें।।
बहुत सुंदर ..एक कविता कभी इसी तरह की मैंने भी लिखी थी ..भाव बहुत अच्छे हैं आपक इस कविता के
निष्ठुर ठंडी काली रातें
ReplyDeleteरिसते घाव रुलाती रातें।
" bhut bhavnatmek kaveeta, bhut acche lgee"
"jeevan mey kya khoya or kya paya humne,
ab ek ek pal ka humse tkaja kertee rateyn"
Regards
मिलन बिछोहा सब झूठा था
ReplyDeleteसच्चाई हैं डराती रातें।
कविता के लिहाज से उत्कृष्ट भाव हैं ! नायक
की मनोदशा बयान करने में ये रचना सौ प्रतिशत
सफल रही है ! शुभकामनाएं !
अच्छी रचना,
ReplyDeleteसूखे पत्ते नंगी शाखें
ReplyDeleteपतझड़ में सताती रातें।।
रचना के लिए शत शत प्रणाम !
पतझड़ के बाद बसंत भी है दोस्त !
शुभकामनाएं !
कटु यथार्थवादी रचना ! अनंत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबढ़िया है.
ReplyDeleteसुंदर.......भाव
ReplyDeleteमुरझाया कुम्हलाया तन-मन
ReplyDeleteउजड़ी सेज कंटीली रातें।
मिलन बिछोहा सब झूठा था
सच्चाई हैं डराती रातें।
फटी पुरानी यादें लाकर
पैबन्दों को बिछाती रातें।
बहुत सुंदर सस्नेह.
निष्ठुर ठंडी काली रातें
ReplyDeleteरिसते घाव रुलाती रातें।
फटी पुरानी यादें लाकर
पैबन्दों को बिछाती रातें।
सुन्दर पंक्तियाँ, सार्थक विचार। बधाई।
आपकी कविता पाठक को अपने साथ, चीखते सन्नाटे में लिए जाती है । अच्छे भाव । अच्छी पंक्तियां ।
ReplyDeleteआपका यह ब्लाग मुझे मेरे ई-मेल पर उपलब्ध कराने में मेरी सहायता कीजिए ।
sundar tam
ReplyDeletesundar vishleshan hai raat ki tanhai ka
ReplyDeleteसुँदर कविता है ..और मौसम के अनुरुप भी !
ReplyDeleteसुँदर कविता है ..और मौसम के अनुरुप भी !
ReplyDeletebahut bhavpurn dil ko chhu jane wali kavita.
ReplyDeleteसुन्दर कविता। और मैने घर में खिड़की से झांका - रमबगिया में सामने एक ठूंठ ही दिखा। लगा कि पतझड़ आ गया।
ReplyDeleteसहज वैराग-
ReplyDeleteमिलन बिछोहा सब झूठा था
सच्चाई हैं डराती रातें।
शीत ऋतु की शर्वरी है हिंस्र पशुओं से भरी !
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़ कर याद हो आयी यह कविता
नए वसंत के आने का
ReplyDeleteधीमा संगीत सुनाती रातें।
मुरझाया कुम्हलाया तन-मन
ReplyDeleteउजड़ी सेज कंटीली रातें।
बहुत ही बढ़िया...शब्दों का अद्भुत प्रयोग किया है आपने, भाई मेरी दिली दाद कबूल फरमाएं और अपनी ऐसी कमाल की रचनाएँ बार बार सुनाएँ ...बधाई...बार बार बधाई ...
नीरज
सूखे पत्ते नंगी शाखें
ReplyDeleteपतझड़ में सताती रातें।।
KYA BAAT HAI. BADHIYA
DEEPAK BHARATDEP
जीवन का सही चित्रण किया हे आप ने इस कविता मे,
ReplyDeleteधन्यवाद
अच्छी लगी भावों से भरी यह कविता। आभार।
ReplyDeleteअनुराग जी यह कविता जब मेने हिंद युग्म के पॉडकास्ट पर सूनी थी तभी से मन था इसको पढने का और आज पढ़ पाया सच बहुत माम्र्मिक कविता है .. मेरी नई रचना हैण्ड वाश डे पढने आप आमंत्रित हैं
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