(अनुराग शर्मा)
एक टीस सी
उठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
मन की अंगुलियाँ
बार-बार
खत लिखती हैं
तुम्हें
दीवानी नज़रें
हर आहट पे
दौड़ती हैं
दरवाजे की तरफ़
शायद
ये तुम होगे
फिर लगता है
नहीं
तुम तो
अपनी दुनिया मे
मगन हो
अपने ही
रंग मे रंगे
अपने
सुख दुख मे खोए
अपनों से घिरे
मेरे अस्तित्व से
बेखबर
मैं समझ नहीं पाता
कि
सिर्फ मेरे नसीब में
अकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है।
एक टीस सी
उठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
मन की अंगुलियाँ
बार-बार
खत लिखती हैं
तुम्हें
दीवानी नज़रें
हर आहट पे
दौड़ती हैं
दरवाजे की तरफ़
शायद
ये तुम होगे
फिर लगता है
नहीं
तुम तो
अपनी दुनिया मे
मगन हो
अपने ही
रंग मे रंगे
अपने
सुख दुख मे खोए
अपनों से घिरे
मेरे अस्तित्व से
बेखबर
मैं समझ नहीं पाता
कि
सिर्फ मेरे नसीब में
अकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है।
bahut dard bhari, dil ko choo dene wali,bahut khoob Anurag ji.
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब!!
ReplyDeleteविरह की ,अकेलेपन की टीस .सुंदर लफ्जों में बुनी है आपने ..
ReplyDeleteसिर्फ मेरे नसीब में
ReplyDeleteअकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है।
लक्षण दुनियादारी के हिसाब से ठीक नही दिखते !
पर ऐसे भाव गहन मौन में उठते हैं ! मुझे तो आइडिया
बेहतरीन लगा ! शुभकामनाएं !
हमको आपकी यह रचना बेहद पसंद आई !
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं एवं धन्यवाद !
एक टीस सी
ReplyDeleteउठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
क्या करे बंधू ? हमारी पन्डताइन जबसे मायके गई है !
नींद ने भी आँख मिचोली करना बंद कर दिया है ! बहुत
गहरा गई है ! कोई राय नही दूंगा ! वरना .... से पिट
सकता हूँ ! :)
फिर लगता ह़ै
ReplyDeleteनहीं
तुम तो
अपनी दुनिया मे
मगन हो
गजब का संयोजन है शब्दों में ! धन्यवाद !
wah,shaandar,badhai
ReplyDeleteसिर्फ मेरे नसीब में
ReplyDeleteअकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है।
बेहतरीन लगा . शुभकामनाएं .
ये अकलेपन वाला अंदाज भी अच्छा रहा !
ReplyDeleteअरे मालिक इजाजत किस बात की. आज्ञा दिया करें ! जरूर लिखिए.
ReplyDeleteBeautiful composition, full of emotions and feelings, liked reading it.
ReplyDeletefew of my words :
लम्हा-लम्हा तेरे साये को सीने से लगाया मैंने,
दिल मे उठी टीस को आज फिर समझाया मैंने.
ख्याब बन कर मेरी आँखों में समाने वाले,
तेरे यादों की टीस से महफिल को सजाया मैंने.
Regards
सुंदर शब्द संयोजन अनुराग जी.
ReplyDelete------------------------------------------
एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
मन की अंगुलियाँ
ReplyDeleteबार-बार
खत लिखती हैं
तुम्हें
दीवानी नज़रें
हर आहट पे
दौड़ती हैं
दरवाजे की तरफ़
शायद
ये तुम होगे
wah wah
मन की अंगुलियाँ
ReplyDeleteबार-बार
खत लिखती हैं
ye bahut acchha hai...
अति सुंदर....भावपूर्ण रचना...वाह.
ReplyDeleteनीरज
अति सुंदर....भावपूर्ण रचना...वाह.
ReplyDeleteनीरज
मैरे पास भी ऐसी ही फीलिंग्स हैं पर ऐसे शब्द नहीं हैं।
ReplyDeleteकिसी का साथ देने की कोशिश करें,
ReplyDeleteअकेले नहीं रहेंगै।
khoobsurat....
ReplyDeletebahut khoobsurat..
dil khush ho gaya padh kar itni madhur rachna....
एक टीस सी
ReplyDeleteउठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
बहुत ही सुन्दर लिखा है। बधाई
निरवता के ताप से ही आख से आंसु ढलका करते "
ReplyDeleteइसी टीस के छोटे बादल शब्दो से फ़िर झलका करते "
सिर्फ मेरे नसीब में
ReplyDeleteअकेलापन
वाह क्या शब्द हे. बहुत सुन्दर यह कविता..
धन्यवाद
अनुराग जी,बहुत ही सुंदर रचना है!!!!!!!!!!! शुभकामनाएं !!!!!!!!!!!!!!
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