Thursday, September 4, 2008

टीस - एक कविता

(अनुराग शर्मा)

एक टीस सी
उठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
मन की अंगुलियाँ
बार-बार
खत लिखती हैं
तुम्हें
दीवानी नज़रें
हर आहट पे
दौड़ती हैं
दरवाजे की तरफ़
शायद
ये तुम होगे
फिर लगता है
नहीं
तुम तो
अपनी दुनिया मे
मगन हो
अपने ही
रंग मे रंगे
अपने
सुख दुख मे खोए
अपनों से घिरे
मेरे अस्तित्व से
बेखबर
मैं समझ नहीं पाता
कि
सिर्फ मेरे नसीब में
अकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है। 

24 comments:

  1. bahut dard bhari, dil ko choo dene wali,bahut khoob Anurag ji.

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  2. विरह की ,अकेलेपन की टीस .सुंदर लफ्जों में बुनी है आपने ..

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  3. सिर्फ मेरे नसीब में
    अकेलापन
    क्यों है
    अकसर
    एक टीस सी
    उठती है।

    लक्षण दुनियादारी के हिसाब से ठीक नही दिखते !
    पर ऐसे भाव गहन मौन में उठते हैं ! मुझे तो आइडिया
    बेहतरीन लगा ! शुभकामनाएं !

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  4. हमको आपकी यह रचना बेहद पसंद आई !
    बहुत शुभकामनाएं एवं धन्यवाद !

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  5. एक टीस सी
    उठती है
    रात भर
    नींद मुझसे
    आँख मिचौली करती है

    क्या करे बंधू ? हमारी पन्डताइन जबसे मायके गई है !
    नींद ने भी आँख मिचोली करना बंद कर दिया है ! बहुत
    गहरा गई है ! कोई राय नही दूंगा ! वरना .... से पिट
    सकता हूँ ! :)

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  6. फिर लगता ह़ै
    नहीं
    तुम तो
    अपनी दुनिया मे
    मगन हो

    गजब का संयोजन है शब्दों में ! धन्यवाद !

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  7. सिर्फ मेरे नसीब में
    अकेलापन
    क्यों है
    अकसर
    एक टीस सी
    उठती है।
    बेहतरीन लगा . शुभकामनाएं .

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  8. ये अकलेपन वाला अंदाज भी अच्छा रहा !

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  9. अरे मालिक इजाजत किस बात की. आज्ञा दिया करें ! जरूर लिखिए.

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  10. Beautiful composition, full of emotions and feelings, liked reading it.
    few of my words :
    लम्हा-लम्हा तेरे साये को सीने से लगाया मैंने,
    दिल मे उठी टीस को आज फिर समझाया मैंने.
    ख्याब बन कर मेरी आँखों में समाने वाले,
    तेरे यादों की टीस से महफिल को सजाया मैंने.

    Regards

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  11. सुंदर शब्द संयोजन अनुराग जी.




    ------------------------------------------
    एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.

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  12. मन की अंगुलियाँ
    बार-बार
    खत लिखती हैं
    तुम्हें
    दीवानी नज़रें
    हर आहट पे
    दौड़ती हैं
    दरवाजे की तरफ़
    शायद
    ये तुम होगे

    wah wah

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  13. मन की अंगुलियाँ
    बार-बार
    खत लिखती हैं
    ye bahut acchha hai...

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  14. अति सुंदर....भावपूर्ण रचना...वाह.
    नीरज

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  15. अति सुंदर....भावपूर्ण रचना...वाह.
    नीरज

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  16. मैरे पास भी ऐसी ही फीलिंग्स हैं पर ऐसे शब्द नहीं हैं।

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  17. किसी का साथ देने की कोशिश करें,
    अकेले नहीं रहेंगै।

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  18. khoobsurat....
    bahut khoobsurat..
    dil khush ho gaya padh kar itni madhur rachna....

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  19. एक टीस सी
    उठती है
    रात भर
    नींद मुझसे
    आँख मिचौली करती है
    बहुत ही सुन्दर लिखा है। बधाई

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  20. निरवता के ताप से ही आख से आंसु ढलका करते "
    इसी टीस के छोटे बादल शब्दो से फ़िर झलका करते "

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  21. सिर्फ मेरे नसीब में
    अकेलापन
    वाह क्या शब्द हे. बहुत सुन्दर यह कविता..
    धन्यवाद

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  22. अनुराग जी,बहुत ही सुंदर रचना है!!!!!!!!!!! शुभकामनाएं !!!!!!!!!!!!!!

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