Tuesday, September 23, 2008

गरजपाल की चिट्ठी [गतांक से आगे]

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समय बीतता गया। अहसान अली और शीशपाल का जोश भी काफी हद तक ठंडा पड़ गया। हाँ, गरजपाल बिल्कुल भी नहीं बदले। न तो उन्होंने किसी सहकर्मी से दोस्ती की और न ही चिट्ठी लिखने का राज़ किसी से बांटा। ज़्यादातर लोग गरजपाल के बिना ही खाना खाने के आदी हो गए। इसी बीच सुनने में आया कि गरजपाल का तबादला उनके गाँव के नज़दीक के दफ्तर में हो गया है। किसी को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा। पड़ता भी कैसे? गरजपाल की कभी किसी से नज़दीकी ही नहीं रही। पता ही न चला कब उनके जाने का दिन भी आ गया। दफ्तर में सभी जाने वालों के लिए एक अनौपचारिक सा विदाई समारोह करने का रिवाज़ था। सो तैयारियां हुईं। उपहार भी लाये गए और भाषण भी लिखे गए। नत्थूलाल एंड कंपनी तो कभी भी साथ बैठकर खाना न खाने की वजह से गरजपाल को विदाई पार्टी देने के पक्ष में ही नहीं थे। मगर हमारे प्रबंधक महोदय जी अड़ गए कि पार्टी नहीं होगी और उपहार नहीं आयेंगे तो "मन्नै के मिलेगा?"

आखिरकार प्रबंधक महोदय की बात ही चली। विदाई समारोह भी हुआ और उसमें गरजपाल किसी शर्माती दुल्हन की तरह ही शरीक हुए। काफी भाषण और झूठी तारीफें झेलनी पड़ीं। जहां कुछ लोगों ने उनकी शान में कसीदे पढ़े, वहीं कुछेक ने दबी जुबान से उनके खाना साथ में न खाने की आदत पर शिकवा भी किया। ज़्यादातर लोगों ने दबी-ढँकी आवाज़ में गरजपाल की चिट्ठी का ज़िक्र भी कर डाला। इधर किसी की जुबान पर चिट्ठी का नाम आता और उधर गरजपाल जी का चेहरा सुर्ख हो जाता। एहसान अली ने एक "लिखे जो ख़त तुझे" गाया तो सखाराम ने खतो-किताबत पर मुम्बईया अंदाज़ में एक टूटा-फूटा शेर पढा। समारोह की शोभा तो गयाराम जी बने जिन्होंने एक पंजाबी गीत गाया जिसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होता:


मीठे प्रिय परदेस चले
दूजा मीत बनाना नहीं
याद हमारी जब भी आए
ख़त लिखते शर्माना नहीं
चिट्ठी लिखें, डाक में डालें
गैर के हाथ थमाना नहीं
जीते रहे तो फिर मिलेंगे
मरे तो दिल से भुलाना नहीं।

तुर्रा यह कि हर भाषण, शेर, ग़ज़ल या गीत में गरजपाल की चिट्ठी ज़रूर छिपी बैठी थी। मानो यह गरजपाल की विदाई न होकर उनकी चिट्ठियों का मर्सिया पढा जा रहा हो। सबके बाद में गरजपाल जी ने भी दो शब्द कहे। आश्चर्य हुआ जब उन्होंने हमें बहुत अच्छा मित्र बताया और आशा प्रकट की कि उनकी मैत्री हमसे यूँ ही बनी रहेगी। अंत में प्रबंधक महोदय ने उन्हें सारे कर्मचारियों की ओर से (अपना कमीशन काटकर) एक बेशकीमती पेन, कुछ खूबसूरत पत्र पैड और बहुत से रंग-बिरंगे लिफाफे उपहार में दिए। यूँ समझिये कि पूरा डाकखाना ही दे दिया सिवाय एक डाकिये और डाक टिकटों के।

अगले दिन के लंच में कोई मज़ा ही न था। शीशपाल तो दफ्तर ही न आया था। एहसान अली को बड़ा अफ़सोस था कि गरजपाल की जासूसी में कुछ बड़ी कमी रह ही गयी। वरना तो इतने दिनों में वासंती की असलियत खुल ही जाती। दो-चार दिनों में सब कुछ सामान्य होने लगा। गरजपाल तो हमारे दिमाग से लगभग उतर ही चुके थे कि दफ्तर की डाक में कई रंग-बिरंगे लिफाफे दिखाई पड़े। एहसान अली की आँखे मारे खुशी के उल्लू की तरह गोल हो गयीं। वे चिट्ठियों को उठा पाते उससे पहले ही शीशपाल ने उन्हें लपक लिया। हमें लगा कि अब तो गरजपाल की चिट्ठी का भेद खुला ही समझो। मगर ऐसा हुआ नहीं। लिफाफों पर लिखी इबारत को पढा तो पता लगा कि दफ्तर के हर आदमी के नाम से एक-एक चिट्ठी थी। भेजने वाले कोई और नहीं गरजपाल जी ही थे। उन्होंने हमारी दोस्ती का धन्यवाद भेजा था और लिखा था कि नयी जगह बहुत बोर है और वे हम सब के साथ को बहुत मिस करते हैं। वह दिन और आज का दिन, हर रोज़ गरजपाल की एक न एक चिट्ठी किसी न किसी कर्मचारी के नाम एक रंगीन लिफाफे में आयी हुई होती है। शायद लंच का आधा घंटा वह खाना खाने के बजाय हमारे लिए पत्र-लेखन में ही बिताते हैं।

27 comments:

  1. "great climax, last tk itna suspense bnaa hua tha kee shayad basantee kaa raaj ab khula tb khula, ab jake suspense ktm hua interesting to read, great story..."

    Regards

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  2. हा ये सच है भाग दौड की दुनिया मे खत लिखना तो लगता है भुल ही गये है। ज्यादा हुआ तो एस एम एस कर दिया या कभी काल करके हेल्लो कह दीया। खत मे जो बात है वो नये तरिको मे कहा।बहुत अच्छी बात लिखी आपने

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  3. अनुराग जी कहानी का क्लाइमेक्स बड़ा ही अच्छा लगा !!ऐसे लोग बहुत कम हैं जो दूसरों के लिए समय निकलते हों !!!!!!!

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  4. हे भगवान, तो ये राज था गरजपाल की चि‍ट्ठि‍यों का। शुक्रि‍या अच्‍छी कहानी के लि‍ए।

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  5. भाई गरजपाल जी को हमारी हार्दिक शुभकामनाएं और उनको बहुत धन्यवाद !
    आज के जमाने में हर किसी को निजी पत्र लिखना एक न्यामत से कम नही है !
    बिना कागज़ कलम के एक इ-मेल करने में आलस आते है तो वो कागज़ कलम
    की खतो-किताबत तो सपने ही रह गए ! पर आपका लेखन इतना प्रभावी रहा की
    आपने पिछली पोस्ट से अभी तक और इस पोस्ट के आखिरी पैरा तक इंतजार बड़े
    शांतिपूर्वक ढंग से करवा दिया ! बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं आपको |

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  6. हमको भी कुछ२ याद आ रहा वो लिफाफे में इत्र लगा हवा प्रेम पत्र भेजना !
    भूतनाथ को आपका यह गरजपाल जी का किस्सा बहुत पसंद आया !
    आपको बहुत शुभकामनाएं !

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  7. सही कहा, खत लिखने और पढने का आनन्‍द ही कुछ और है।

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  8. शानदार कहानी का शानदार अंत. बहुत रोचक रहा.

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  9. चिट्ठे पर ऐसी कोई सूचना तो नहीं है पर क्या कमेन्ट मोडरेशन चालू है? हमारा कमेन्ट क्यों नहीं दिख रहा है?

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  10. अच्छी कहानी है। गरजपाल ने ऑफिस के एक शख्स की याद दिला दी..जिनका तबादला तो नहीं हुआ, वो खुद ही तबादला लेकर निकल गए।

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  11. मुझे गजरपाल जी से बहुत अटैचमेण्ट लग रहा है।
    हिन्दी ब्लॉगिंग में कुछ गजरपाल आ जायें तो बहुत प्रगति हो!

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  12. तो जिन गरजपाल जी को हम चरित्र-कलाकार समझ रहे थे वे फिल्‍म के हीरो निकले :) बढि़या रहा।

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  13. बहुत अच्छा लगा पढकर !!खत का अपना आनंद है ! मित्रता की भी उचित परिभाषा खीची है !! मधुर !!

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  14. Ghostbuster जी, आपका अंदाज़ सही है. टिप्पणियों पर मोडरेशन चालू है पर उसकी वजह यह नहीं है की मैं किसी विचार के प्रवाह को रोकना चाहता हूँ. उसका कारण सिर्फ़ इतना है की यह ब्लॉग बच्चों-बड़ों सभी के लिए समान रूप से पढने लायक बना रहे और कोई सज्जन चुपके से कोई आपत्तिजनक सामग्री न सरका जाएँ.

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  15. बहुत पहले चिट्ठी को यूँ याद किया था...
    http://ojha-uwaach.blogspot.com/2007/05/blog-post.html

    आज आपकी पोस्ट पढ़ते-पढ़ते अनायास ही याद आ गई.

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  16. गरजपाल जी धन्य हैं..आज के जमाने में भी पत्र व्यवहार बनाये हैं, जो अब म्यूजिम की वस्तु हो चला है. मेरा नमन!!! एक चिट्ठी में लिखकर भेज दिजियेगा आज लंच टाईम में.

    कविता तो छा गइ, शोभा बनने लायक ही रचना है:

    मीठे प्रिय परदेस चले
    दूजा मीत बनाना नहीं
    याद हमारी जब भी आए
    ख़त लिखते शर्माना नहीं
    चिट्ठी लिखें, डाक में डालें
    दूजे हाथ थमाना नहीं
    जीते रहे तो फ़िर मिलेंगे
    मरे तो दिल से भुलाना नहीं।

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  17. मित्र पित्सबर्गिया , आपने आज यह अच्छी बात कही है ! एक बार शुरुआत में हमारे साथ ये कारनामा हो चुका है !
    और सभी ज्ञानी जनों को इस बात को संज्ञान में लाकर देखना चाहिए ! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं की यहाँ बच्चे
    भी आते हैं और ऐसे में किसी के दिमाग का कचरा यहाँ दिखे तो शायद अच्छी बात नही होगी ! इस बात को स्पष्ट
    करने के लिए धन्यवाद !

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  18. बहुत सुन्दर गरजपाल सच मे हीरो निकला, वेसे भी हम नयी जगह पर मुस्किल से सेट होते हे, ओर पुरानो को अच्छा समझते हे,
    धन्यवाद

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  19. Achi kahani hai,mubark

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  20. वाह जी अंत में आंखें खुलगई नहीं तो समझ रहे थे कि कुछ ब्रेकिंग न्यूज मिलेगी पर ये तो स्कूप मिल गया। बहुत अच्छा।

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  21. आपके गरजपाल जी ने तो मन मोह लिया. उन्हें शत-शत नमन.
    कभी हमें भी मित्रों को चिट्ठी लिखने का बड़ा शौक था और उन्हें हमारी चिट्ठियां पढने का.
    लेकिन अब दोनों को ही समय नहीं..........

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  22. ज़बरदस्त ! शानदार रहा पूरा किस्सा

    - लावण्या

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  23. अब उस ऑफिस में भी कोई अहसान अली , शीशपाल होगा जो गरजपाल जी के लंच टाइम में चिट्ठी लिखने पे कड़ी नज़र रख रहा होगा|

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