Disclaimer[नोट] : इस लेख का उद्देश्य पोषक आहार के मानव मन और प्रवृत्ति पर प्रभाव की संक्षिप्त समीक्षा करना है। लेख में वर्णित अध्ययन अपराध घटाने के उद्देश्य से इंग्लॅण्ड की जेलों में किए गए थे। आशा है आप अन्यथा न लेंगे।
सन २००२ में इंग्लॅण्ड में सज़ा भुगत रहे २३० अपराधियों पर एक अनोखा प्रयोग किया गया। प्रशासन ने उनके भोजन को पौष्टिक बनाने के प्रयास किए। ऐलेस्बरी युवा अपराधी संस्थान (Aylesbury young offenders' institution, Buckinghamshire ) में कैद १८ से २१ वर्ष की आयु के इन अपराधियों को भोजन में नियमित रूप से आवश्यक विटामिन व खनिज की गोलियाँ दी जाने लगीं। भोजन और अपराध का वैज्ञानिक सम्बन्ध ढूँढने के उद्देश्य से किए गए अपनी तरह के पहले इस प्रयोग में अपराधियों में से कुछ को झूठी गोलियाँ भी दी गयीं। प्रयोगों से पता लगा कि पौष्टिक भोजन पाने वाले कैदियों की अपराधी मनोवृत्ति में सुधार आया और जेल के अन्दर हिंसक घटनाओं में काफी कमी आयी। अध्ययन के प्रमुख कर्ता-धर्ता श्री बर्नार्ड गेश्च (Bernard Gesch) का कहना है कि देश के नौनिहालों को गोभी, गाज़र और ताज़ी सब्जियाँ खिलाने से अपराधों की संख्या में भारी कमी लाई जा सकती है। इस अध्ययन में अपराधों में ३७% कमी अंकित की गयी थी।
हौलैंड व अमेरिका की जेलों में हुए समान प्रकृति के अध्ययनों से भी मिलते-जुलते नतीजे ही सामने आए। फल-सब्जी-विटामिन की गोली आदि दिए जाने पर अपराधियों की मनोवृत्ति सहज होने लगी और उनकी खुराक में हॉट-डॉग व मुर्गा वापस लाने पर हिंसा ने दुबारा छलाँग लगाई। अधिक मीठे व मैदा का प्रयोग भी हानिप्रद ही था। खनिज और अम्लीय-वसा की आपूर्ति ने कैदियों की सोच को काफी सुधारा।
सन २००५ में आठ से १७ साल तक के अमेरिकन बच्चों के मनोविज्ञान के बारे में किए गए अध्ययनों से भी लगभग यही बात सामने आयी। वहाँ भी खनिज व अम्लीय-वसा की कमी और मीठे व मैदा की अधिकता को हानिप्रद पाया गया। इस अध्ययन में एक चौंकाने वाली बात सामने आयी और वह थी कि बहुत से बच्चों के व्यवहार में विकार का कारण यह था कि उन्हें उच्च श्रेणी का प्रोटीन नहीं मिल पाता था। इन बच्चों के परिवार जन इस भ्रम में थे कि उनके द्वारा खाए जाने वाले मांस से उन्हें पर्याप्त प्रोटीन मिल रहा है। जबकि सच्चाई यह थी कि यह बच्चे सोया, चावल, स्पिरुलिना आदि शाकाहारी स्रोतों में पाये जाने वाले उच्च श्रेणी के प्रोटीन से वंचित थे। उच्च श्रेणी के शाकाहारी प्रोटीन की कमी के अलावा जस्ते की कमी भी अपराध की ओर प्रवृत्त होने का एक कारण समझी गयी।
सन्दर्भ: http://www.naturalnews.com/006194.html
सन्दर्भ: http://www.telegraph.co.uk/news/1398340/Cabbages-make-prisoners-go-straight.html
बहुत ही जानकारी प्रद आलेख.शाकाहारी की जय हो!
ReplyDeleteशाकाहार की जय हो
आपके तर्क बहुत ही सुचिंतित और संग्रहणीय होते हैं.
सिर्फ क्लोरोफिल ही भोजन निर्माण में सक्षम है जो सिर्फ पौधों में होता है जन्तुओं में नहीं। जन्तुओं से प्राप्त भोजन करना तो खाया हुआ भोजन दुबारा खाना है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है .....जानकारी भी है ...
ReplyDeleteरोचक है यह ."'जैसा खायेंगे अन्न वैसा होगा मन यह सही कहावत बनी है इस लिए :)
ReplyDeleteअत्यन्त सटीक और उपयोगी जानकारी ! अगर मैं सही समझा हु तो
ReplyDeleteशाकाहार द्वारा प्राप्त प्रोटीन और खनिज इस दिशा में ज्यादा उपयोगी
और कारगर है बनिस्पत मांसाहार के ! इस विवेचनात्मक लेख के लिए
आपको बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
रोचक समीक्षा.आभार ।
ReplyDeleteAnuragji, lagatar shakahar par bahut achhi aur upyogi jaankari de rahe hain aap. aaj ka lekh bhi bahut badhia hai.
ReplyDeleteपी सी रामपुरिया जी,
ReplyDeleteआप बिल्कुल ठीक समझे हैं. इस अध्ययन में यह बात सामने आयी कि एक आम अमरीकी को प्रोटीन के लिए मांस व दूध के अलावा ज़्यादा कुछ नहीं पता है और इस वजह से बच्चों के शारीरिक व मानसिक पोषण में विकार थे. मेरा अनुभव भी यही है कि सिर्फ़ गिने-चुने उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को ही दाल एवं फलियों आदि के प्रोटीन की विविधता और श्रेष्ठता के बारे में जानकारी है. मुझे याद है कि भारत में स्पिरुलिना डाबर द्वारा गोली के रूप में बेचा जाता था. उस तरह के शाकाहारी सुपर-फ़ूड की जानकारी तो बिल्कुल न के बराबर ही है.
rochhak aur gyanwardhak jaankari ke liye aabhar
ReplyDeleteअच्छा, मैं पूर्ण शाकाहारी; पर जो क्रोध आता है, उसे किस खूंटी पर टांगूं! :-)
ReplyDeleteशाकाहार मेरे सत्व-रजस-तमस का अनुपात तय करता है?
***
(आपके ब्लॉग का छोटा फॉण्ट पढ़ने में सरल नहीं रहता।)
इस प्रयोग में दम है। वैसे भी अगर आप गहराई से देखें, जो ज्यादातर अपराधी वहाँ से आते हैं, जहाँ लोगों को जीवन जीने के लिए आवश्यक न्यूनतम सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
ReplyDelete-जाकिर अली रजनीश
Thanks for visiting my blog how r you sir
ReplyDeleteआंकडों का क्या भरोसा मैं तो बचपन से शाकाहारी हूँ फ़िर भी हद गुस्सा आता है ..वैसे किसी का ज्यादा नुकसान नही किया यह बात नोट करने वाली है ..आगे लिखें पुरी बात पढ़कर टिप्पणी करुँगी
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है. आभार.
ReplyDeleteप्रभावी एवं जानकारीप्रद आलेख!! आभार!
ReplyDelete---------
आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
शाकाहार के जरूर अपने फायदे है ...इसमे कोई शक नही है ..पर इसको मनुष्य के व्यवहार से जोड़ने के ये आंकडे कम से कम मेडिकल साइंस इन्हे बहुत ज्यदा संगान में नही लेती ..भारत में अधिकतर स्त्रिया शाकाहारी होती है....लेकिन बहू को सताने में..दहेज़ के लिए जलाने में ...शायद आंकडे कही ज्यादा है....यहाँ केवल स्त्रियों की बात नही है....मैंने अपने मेडिकल जीवन में कई अपराधियों को देखा है.....खास तौर से ऐड्स से जुड़े एक एक गोरमेंट प्रोग्राम के तहत हर बुधवार मुझे सूरत की जिला जेल में जाना पड़ता था ...हैरानी की बात ये थी वहां ९० प्रतिशत लोग शाकाहारी थे .....इस आंकडे का मुझे इसलिए पता चला की की मेरे साथ एक साहेब psm विभाग के जाते थे जो उन दिनों जेल के खानों पर कुछ शोध कर रहे थे.....
ReplyDeleteशाकाहार सही हे, लोगो मे दया भाव दुसरो से ज्यादा होता हे,मांसा हारी कभी किसी जानवर जिसे उन्होने खाना हे उस की आंखॊ मे झंक कर देखे, उस की आंखे आप से क्या कहती हे,या फ़िर जल्लद के हाथो जाते हुये बकरे या मुर्गे को देखे....
ReplyDeleteएक अच्छे शोध की अच्छी जानकारी .
ReplyDeleteअनुराग जी,
ReplyDeleteआपकी बात अनुभवजन्य है और सत्य भी. यह प्रयोग और लेख दोनों ही संतुलित और पौष्टिक आहार के बारे में थे. शाकाहार भी अधूरा और अस्वस्थ हो सकता है. इसमें कोई शक नहीं है कि सिर्फ़ मांसाहार का त्याग ही किसी को स्वस्थ और भला नहीं बना देगा. हाँ इतना ज़रूर है कि आजकल दुनिया भर में संतुलित आहार की बात चलते ही शाकाहार की तरफ़ झुकाव स्वतः ही आ जाता है. मगर इस लेख का आग्रह सिर्फ़ आहार और मानसिकता का सम्बन्ध दर्शाने वाले कुछ आधुनिक प्रयोगों पर था. इन प्रयोगों के प्रबंधक शाकाहारी हों ऐसा असंभव सा ही है - मगर कथन, अवलोकन और निष्कर्ष उनके ही हैं, मेरे नहीं.
ज्ञानदत्त जी और लवली जी,
ReplyDeleteगुस्सा भी तो प्यार की तरह ही एक मानवीय भावना ही है. जिसे आप गुस्सा कहते हैं वह तो ग़लत बातों पर, अन्याय और असत्य के ख़िलाफ़ आना ही चाहिए मगर जोश में होश नहीं खोना है. गुस्सा अपने-आप में शायद बुरा न भी हो मगर वह किन बातों पर आता है और आने पर आपको कहाँ ले जाता है यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है. भले लोगों के गुस्से से इस दुनिया का बहुत भला हुआ है. कभी विस्तार से बात करेंगे इस बारे में.
ज्ञानदत्त जी,
फॉण्ट के आकार के बारे में ध्यान दिलाने का धन्यवाद!
मित्र पित्स्बर्गिया , मैं तो यहाँ तक कुछ नया देखने आया था ! असल में आपको जिनसे रोज मिलने की आदत हो जाए उनका रोज इंतजार रहता है ! मैं इधर नया कुछ लिख नही पा रहा हूँ ! तो मैं ही मिलने चला आया ! यहाँ एक बार फ़िर से आपका लेख पढ़ कर टिपणीया पढ़ रहा था ! इसमे कुछ टिपनीया शाकाहार और गुस्से से सम्बंधित हैं ! मैंने इस पर काफी मनन किया और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की शायद शाकाहार से प्राप्त प्रोटीन
ReplyDeleteका असर हमारे शरीर और मष्तिषक पर ज्यादा अच्छी तरह होता है ! और हमारी कार्य क्षमता में सुधार होता है ! अब आदमी जो भी करेगा वो बड़ी शिद्दत से करेगा , चाहे प्यार करे या गुस्सा करे ! :) शायद हीर रांझा, शोहनी महीवाल भी शाकाहारी रहे होंगे ? शोध का विषय है ! खैर मजाक बंद करते हैं ! नही तो इस विषय पर भी मर्यादावादी मेरे पीछे पड़ जायेंगे ! :)
ये तो पक्का है की हमारे जो तानाशाह हुए हैं उनमे से कोई भी शराब नही पीता था ! मांसाहार का पता नही ? और यहाँ हम उनकी अच्छाइयो या बुराइयों को नही गिन रहे हैं ! उनकी कार्य क्षमता की बात कर रहे हैं ! और इसमे कोई भी संदेह किसी को
भी नही होना चाहिए ! इसकी ताजा कडी अभी २ रिटायर हुए मुश् साहब हैं ! और मैंने बहुत पहले यह विश्लेषण पढा था ! मुझे ऐसा लगता है की मांसाहार का भी इस प्रकिर्या से कुछ सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए ! आपका क्या कहना है ?
ताऊ जी,
ReplyDeleteशुभ प्रभात,
अच्छा विषय उठाया है आपने. तानाशाहों पर भी अनुसंधान की ज़रूरत है. हमारे आसपास के तानाशाहों को छोड़ दें तो तानाशाह तो यूरोप में भी हुए हैं और चीन और रूस में भी. मुझे लगता है कि वहाँ के तानाशाह तो छक कर पीते होंगे. कोई बात नहीं - पूर्वाग्रहों के बिना सत्यान्वेषण चलता रहे - असतो मा सद् गमय.
धन्यवाद.
show details 10:57 am (11 minutes ago)
ReplyDeleteमित्र , मैं जल्दी जल्दी में आपको यह लिखना भूल गया की मैं इन्ही तानाशाओ की बात कर रहा था !
जिनमे हिटलर, मुसोलिनी, स्टालिन और माओत्से तुंग के बारे में ही यह विश्लेषण था ! अभी मुझे इसका
रिफरेन्स याद नही पड़ रहा है ! और हाँ हिटलर महाराज ने तो आखिरी दम तक शादी भी इसीलिए नही की थी की कहीं पत्नी ही उनको नही निपटा दे ! और मैंने ये भी पढा था की आखिरी समय ही बंकर में शादी की थी !अगर ये पत्नी से ही इतना डरते थे तो शराब क्या पीते होंगे ? क्योंकि इनको तो डर के मारे नींद भी नही आती होगी ? ये तो २४ घंटे होश में ही रहना चाहते थे ! खैर .. रिफरेन्स याद आया तो जरुर ख़बर दूंगा !
shaakaar aur krodh ka koi lena dena nahi,mera apna anubhav hai.merey humsafar bachpan se nonvegi the aur mai vegi/ve bahut hi shaant svabhaav ke hain aur mai bahut krodhi/ halanki ab hum dono shaakaari hain per nature jas ka tas dono kaa....aapki posts lagaataar padhti huun...aabhaar
ReplyDeleteबहुत सही ..अच्छा लिखा है आपने यह आज के लिए भी उतना ही सही है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा और सही लिखा है आपने.आभार.
ReplyDeleteसबका अपना अपना व्यक्तिगत अनुभव होता है,परन्तु इतना तो है कि खान पान का सोच विचार पर बड़ा ही गहरा और व्यापक असर पड़ता है.सात्विक आहार मन मस्तिष्क को उर्जावान बनाने के साथ साथ सकारात्मक कार्यों के लिए भी प्रेरित करता है.
जहाँ तक क्रोध का सवाल है,अपने पर आए किसी भी प्रकार के संकट के लिए क्रोधित होना और किसी अन्य पर हो रहे अत्याचार या विसंगतियों के लिए क्रोधित होना ,दोनों दो बात है.वंशानुगत रूप से स्वभाव में आए अन्य गुणों की तरह क्रोध भी एक गुण है,जो यदि जन्मजात किसी के स्वभाव में निहित है तो वह रह ही जाता है.लेकिन जिन्हें छोटी छोटी बातों पर क्रोध आ जाता हो,स्वभाव में ही उग्रता समाहित हो, वे अपनी तसल्ली के लिए प्रयोग कर देख सकते हैं कि कुछ दिनों तक निरंतर मांसाहार करने पर उनके स्वभाव की उग्रता और बढ़ती है या नही.