शाम का धुंधलका छा रहा था। हम लोग डैक पर बैठकर खाना खा रहे थे। बेटी अपने स्कूल के किस्से सुना रही थी। वह इन किस्सों को डी एंड डी टाक्स (डैड एंड डाटर टाक्स = पिता-पुत्री वार्ता) कहती है। आजकल हमारी पिता-पुत्री वार्ता पहले से काफी कम होती है। पिछले साल तक मैं सुबह दफ्तर जाने से पहले उसे कार से स्कूल छोड़ता था और लंच में जाकर उसे स्कूल से ले आता था। तब हमारी वार्ता खूब होती थी। वह अपने किस्से सुनाती थी और मेरे किस्से सुनने का आग्रह करती थी। यही वह समय होता था जब मुझे उसकी नयी कवितायें सुनने को मिलती थीं। उसने अपनी अंग्रेजी कहानी "मेरे जीवन का एक दिन" भी ऐसी ही एक वार्ता के दौरान सुनाई थी। जब से मेरा दफ्तर दूर चला गया है मैं रोज़ सुबह बस लेकर ऑफिस जाता हूँ। वह भी बस से स्कूल जाती है। हमारी वार्ता की आवृत्ति काफी कम हो गयी है। या कहें कि पहले रोज़ सुबह शाम होने वाली वार्ता सिर्फ़ सप्ताहांत की शामों तक ही सीमित रह गयी है।
उसने अपने क्लास के एक लड़के के बारे में बताया जो सब बच्चों के पेन-पेन्सिल आदि ले लेता है। जब उसने बताया कि एक दिन उस लड़के ने बेटी का कैलकुलेटर भी ले लिया तो मैंने पूछा, "बेटा, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पास यह सब ज़रूरी समान खरीदने के लिए पैसे न हों?" बेटी ने नकारते हुए कहा कि उस लड़के के कपड़े तो बेशकीमती होते हैं।
आजकल अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल है। बैंक डूब रहे हैं, नौकरियाँ छूट रही हैं। भोजन, आवागमन, बिजली, गैस आदि सभी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. अक्सर ऐसी खबरें पढने में आती हैं जब इस बुरी आर्थिक स्थिति के कारण लोग बेकार या बेघर हो गए। कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले आज पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। बच्ची तो बाहर की दुनिया की सच्चाई से बेखबर है। मेरे दिमाग में आया कि उस लड़के का परिवार कहीं ऐसी किसी स्थिति से न गुज़र रहा हो। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की और बात पूरी होने से पहले ही पाया कि वह कुछ असहज थी। मैंने पूछना चाहा, "आप ठीक तो हो बेटा?" मगर उसने पहले ही रूआंसी आवाज़ में पूछा, "आप ठीक तो हैं न पापा?"
"हाँ बेटा! मुझे क्या हुआ?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे। मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मनोदशा जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की और कहा कि अगर मेरे साथ कभी ऐसा होता तो मैं उसे अपनी बेटी से, अपने परिवार से कभी छुपाता नहीं। मेरे इस वाक्य से उसकी भोली मुस्कान वापस आ गयी। यह जानकर खुशी हुई कि उसे अभी भी अपने पिता के सच बोलने पर पूरा भरोसा है।
उसने अपने क्लास के एक लड़के के बारे में बताया जो सब बच्चों के पेन-पेन्सिल आदि ले लेता है। जब उसने बताया कि एक दिन उस लड़के ने बेटी का कैलकुलेटर भी ले लिया तो मैंने पूछा, "बेटा, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पास यह सब ज़रूरी समान खरीदने के लिए पैसे न हों?" बेटी ने नकारते हुए कहा कि उस लड़के के कपड़े तो बेशकीमती होते हैं।
आजकल अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल है। बैंक डूब रहे हैं, नौकरियाँ छूट रही हैं। भोजन, आवागमन, बिजली, गैस आदि सभी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. अक्सर ऐसी खबरें पढने में आती हैं जब इस बुरी आर्थिक स्थिति के कारण लोग बेकार या बेघर हो गए। कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले आज पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। बच्ची तो बाहर की दुनिया की सच्चाई से बेखबर है। मेरे दिमाग में आया कि उस लड़के का परिवार कहीं ऐसी किसी स्थिति से न गुज़र रहा हो। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की और बात पूरी होने से पहले ही पाया कि वह कुछ असहज थी। मैंने पूछना चाहा, "आप ठीक तो हो बेटा?" मगर उसने पहले ही रूआंसी आवाज़ में पूछा, "आप ठीक तो हैं न पापा?"
"हाँ बेटा! मुझे क्या हुआ?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे। मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मनोदशा जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की और कहा कि अगर मेरे साथ कभी ऐसा होता तो मैं उसे अपनी बेटी से, अपने परिवार से कभी छुपाता नहीं। मेरे इस वाक्य से उसकी भोली मुस्कान वापस आ गयी। यह जानकर खुशी हुई कि उसे अभी भी अपने पिता के सच बोलने पर पूरा भरोसा है।
Fantastic
ReplyDeleteभावपूर्ण वार्तालाप -मेरी बेटी भी भी अब दूर है और उससे वार्ता की आवृत्ति कम हो चली है ! डी एंड ई डी टाक्स का सन्दर्भ और फुल फार्म अभी अभी उसे फोन पर बताया तो आनंद ले रही थी -क्योंकि हमने मिलकर ऐसे ही एक जुमले का ईजाद उसकी मम्मी का दरवाजे पर खडे रहकर पडोसन से लम्बी वार्ता के लिए किया था -डी डी एंड टी -मतलब delayed door talking !
ReplyDeleteमार्मिक और ह्रदयस्पर्शी।
ReplyDeleteयह जानकर खुशी हुई कि उसे अपने पापा के सच बोलने पर अभी भी पूरा भरोसा है।
ReplyDelete"beautiful story with emotional touch"
Regards
Bhavnatmak bhi aur ek achha sandesh dene wali excellent story. Dusari khaas baat, real story hai.
ReplyDeleteओह, यह पता नहीं था - अर्थव्यवस्था का मानव सम्बन्धों और संवेदनाओं पर बहुत असर हो रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट से अन्दाज हुआ।
बेहद दिल को छू लेने वाली पोस्ट लगी यह ..शुक्रिया
ReplyDeleteइसलिए तो रोज के दिन के कुछ हिस्से ...बच्चो के नाम
ReplyDeletehridyagrahi baat
ReplyDeleteदिल को छू गई बाप बेटी के बीच हुए संवाद की यह प्रस्तुति..किस किस तरह से संवेदित करती है बिगड़ती अर्थव्यवस्था या डगमगाई कोई सी भी व्यवस्था. एक बेहतरीन पोस्ट.
ReplyDeleteबेटियाँ जितना समझ लेती हैं माँ-बाप को शायद और कोई नहीं।
ReplyDelete"एक शाम बेटी के नाम" पढ़ कर ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपनी बेटी के साथ बिताया समय याद कर रहा होवुं !
ReplyDeleteअसंख्य यादे जेहन में आ गई ! आप बहुत सुंदर ढंग से मानवीय संबंधो को जैसे का तैसा उतार कर रख देते हैं !
प्रणाम मित्र आपको ! और बेटी को बहुत प्यार और आशीष !
अनुराग जी
ReplyDeleteऐसी ही होती हैं बेटियाँ. माता -पिता का दर्द बहुत जल्दी समझ जाती हैं. उनको संवेदन शीलता भगवान की तरफ़ से ही मिलती है. बेटी के पिता हैं इस्वर का धन्यवाद करिए की उसने आपको इतनी प्यारी बेटी दी है.
बहुत संवेदन शील यादें हैं ! बच्चो का बचपन हमको भी बच्चा बना देता है !
ReplyDeleteबेटियों को कितनी फिकर रहती है अपने पापा की !
"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे।
इसीलिए तो बेटियाँ इतनी लाडली होती हैं अपने पापा की ! बहुत शुभकामनाएं !
दिल को छूती हुई है यह पोस्ट। भावुक कर गई।
ReplyDeleteदिल को छु गयी आपकी बात!!
ReplyDeleteयह हाल युरोप का भी हो रहा हे,यहां भी बेरोजगारी बढती जा रही हे, लेकिन एक बात मुझे आप की समझ नही आई**कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। ** अरे भाई यहां तो मजदुर भी मर्सिडीज़ चलाते हे, हां यहां कुछ लोगो को बिमारी हे चोरी करने की वह चाहे कितने भी अमीर क्यो ना हो.... मेरे गार्डन से कोई फ़ुल चोरी करता था, जब मेने पकडा तो हेरान रह गया..
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुद सुँदर -
ReplyDeleteबिटिया अपराजिता का आलेख भी पढा
और बहुत अच्छा लगा :)
- लावण्या
बस दिल को छू गया। बेटियॉं जितना घर परिवार से लगाव रखती हैं, वह बेटों में कम ही मिलती हैं। आप खुशनसीब हैं जो आपकी इतनी प्यारी बेटी है।
ReplyDeleteवाह...भावनात्मक प्रेम हम भारतीयों की पहचान है...मैंने देखा है अमेरिका में रिश्तों के खोखले पन को...बहुत से बड़े बूढे और युवक हलके से कुरेदने पर अपने रिसते घाव छुपा नहीं पाते थे...बहुत अच्छा लिखा है आपने और आप की बिटिया, इश्वर उसे हमेशा खुश रखे, जैसे बिटिया इश्वर हर किसी को दे.
ReplyDeleteनीरज
Aapki beti ko dher sara pyaar aur aashirwaad.Kismatwale ko hi bhagwaan putri sukh dete hain.
ReplyDeleteaapki beti ka panna padha.Nischal baaten vibhor kar gayin.Usme aapke sanskaar koot koot kar bhare hain.Ishwar use sada sukhi rakhen.Betiyan yun bhi ishwariya kripa ka saakshat roop hai.
ReplyDeletemujhe bhi ek wakaya yaad aa gaya.mera beta lagbhag paanch varshon tak mera doodh peeta raha tha.Iske alawe wah aur koi bahri doodh nahi peeta tha.Jo koi bhi use gaay ka doodh peene ko kahte to ekdam se lad jata ki main Jaanvar ka doodh kyon peeun ? Jaanwar ka doodh uske bachche ke liye hai.Main aadmi ka bachcha hun aadmi/apni maa ka doodh hi punga.....Yah baat use kisine nahi batayi thi,yah wah apne man se hi kahta tha.Mujhe bhi kahin na kahin yah baat bahut sahi lagti hai.
सचमुच बेटियां ऐसी ही होती हैं। मन को छू गयी यह पोस्ट। बिटिया को सस्नेह आशीष।
ReplyDeleteसचमुच बेटियां ऐसी ही होती हैं..मन को छू गयी यह पोस्ट। बिटिया को सस्नेह आशीष।
ReplyDeleteबहुत खूब। दिल को छू गयी यह घटना। सचमुच बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।
ReplyDeletebetiyan swbhav se hi komal hoti hain. apne janak ke liye uske bhav aise hi hoten hai. use sneh den
ReplyDeleteबेटियां इतनी संवेदनशील,प्यारी और मोहनी होती हैं। क्यों? यह सवाल आज तक समझ में नहीं आया। खैर। हमारी ही तरह आपको भगवान ने दोनों दिए हैं। इसके लिए उनको शुक्रिया।
ReplyDeleteआप जितनी सुंदर कविता लिखते उतना ही सुंदर आलेख सच ही है प्रतिभा प्रतिभा होती है बधाई
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट कांग्रेसी दोहे पढने हेतु आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं
मुख्तसर सी बात है, दिल को छू गई.
ReplyDeleteइन बच्चों के आंसू अनमोल है.
beautiful - and touching ...
ReplyDeleteबच्ची में गहराई से चिंतन का सामर्थ्य गज़ब है।
ReplyDelete