Tuesday, September 16, 2008

मीठी बँगला भाषा

अभी हिन्दी ब्लॉग-जगत में पहचान बताने-छुपाने पर जो आरोप-प्रत्यारोप चले उससे मुझे बंगाली दा-दा मोशाय याद आ गए। जैसे बंगला में जी होते हैं वैसे ही दा भी होते हैं। जैसे रंजन दा, बर्मन दा वगैरह। पिछले दिनों इस दा पर काफी हलचल रही। किन्हीं रक्षण दा और किन्हीं भूतमारकर दा में भी कुछ विवाद हो गया। एक ने दूसरे मर्द होने का खिताब दे दिया जिसका उन्होंने ज़ोरदार विरोध किया। अब इस नए ज़माने की कौन कहे? हमारे ज़माने में तो उलटा आरोप लगने पर लोग नाराज़ होते थे। अलबत्ता, आप भी यहीं हैं और हम भी यहीं हैं। कभी समय मिलेगा तो जाकर दा-दा लोगों से मिलेंगे। क्या पता कौन से दा राशोगुल्ला हाज़िर कर दें।

जितनी मीठी बंगाली मिठाई, उतनी ही मीठी बँगला भाषा। बँगला काव्य की मधुरता को तो कोई सानी नहीं। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि साहित्य का नोबल पुरस्कार पाने वाले भारत के अकेले कवीन्द्र रबिन्द्रनाथ ठाकुर बंगलाभाषी ही थे। कवीन्द्र के साथ तो एक और अनूठा सम्मान जुदा हुआ है। वे विश्व के ऐसे अकेले कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों का राष्ट्रीय गान बनने का सम्मान प्राप्त हुआ है।

गज़ब की भाषा है और गज़ब के लोग। मिठास तो है ही दूसरों के प्रति आदर भी घोल-घोलकर भरा है। हर किसी को जी कहकर पुकारते हैं। बनर्जी, चटर्जी, मुखर्जी आदि। महाराष्ट्र हो या पंजाब, बाहर से आने वाले गरीब मजदूर को बहुत ज्यादा इज्ज़त नहीं मिलती। मगर जब पाकिस्तानी तानाशाह बांग्लादेश में तीस लाख इंसानों का क़त्ल कर रहे थे तब जो लाखों लोग वहाँ से जान बचाकर भागे उन्हें भी हमारे बंगाल के भले भद्रजनों ने आदर से रिफ्यूजी कहा। जी लगाना नहीं भूले।

चलें मूल बात पर वापस आते हैं। अगर यह दा-दा लोग बाबू मोशाय न होकर रामपुर के दादा निकले तो? तब तो निकल लेने में ही भलाई है। रामपुरी से तो अच्छे-अच्छे डरते हैं।

26 comments:

  1. बहुत ही सुंदर तरीके से बात कह दी है। हिन्दी में ही बंगाली का रस मिल गया। बंगाली नहीं जानता लेकिन जानने की इच्छा है। पर यह गांधी जी की नाचने की इच्छा जैसी न रह जाए।

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  2. रामपुरी से तो डर लगता ही है।बहुत दिनो बाद सुनने मिला रामपुरी

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  3. हा हा हा खुब भालो दादा खुब भालो ! अमी ये खुब भालो लागे !

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  4. क्या परेशानी है दादा हुये दादाजी!

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  5. भाई कहाँ की बात कहाँ ले गए आप...बहुत घुमाऊ दार पोस्ट रही आप की. बंगला भाषा की मिठास के तो हम भी दीवाने हैं, लेकिन बंगाली बहुत ही तेज गुस्से वाले होते हैं और हाँ आलसी भी...अकेला बंगाली शांत रहता है लेकिन एक से अधिक होने पर इन्हें अशांति फैलाते देर नहीं लगती...दूसरे ये अपने आप को दूसरों से अधिक बुद्धिमान भी समझते हैं...और ये बात एक दम ग़लत भी नहीं है.
    नीरज

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  6. बंगाली भाषा सचमुच बहुत मीठी भाषा है...हांलाकि समझ नहीं पाते हैं फिर भी सुनने में भली लगती है!

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  7. आपने बहुत ही संतुलित भाषा में अपनी बात कह दी !
    बंगला भाषा की मिठास से लेकर कविन्द्र रविन्द्र की !
    और खासकर "जी " तहजीब की ! और अब बात दा-दा
    की ! सबसे पहले ब्लॉग जगत के दो दाओं की लड़ाई की
    ख़बर हमने भी सुनी और कोशीश भी की समझने की !
    लेकिन अपनी ताऊ बुद्धि म्ह किम्मै आया कोणी ! सो
    हम तो चुपचाप ही रह गए ! कहीं कमेन्ट भी नही किया !
    अपने को भी फटे में पाँव फ़साने की इच्छा तो बहुत हो
    रही थी ! पर लाख कोशीश करके भी हम दूर ही रह गए !
    इसका हमको मलाल है ! अब अंत में आपने रामपुर ,
    रामपुरी और रामपुरिया (शायद) की बात की है तो जब
    एक ही कश्ती के मुसाफिर हो तो क्या कहना ? इस लिए
    इस मसले पर भी हम चुप ही रहेंगे !

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  8. ताऊ रामपुरिया जी,
    बजा फरमाया ताऊ. Speech is silver, silence is gold.

    नीरज गोस्वामी जी,
    अब अपनी तो आदत ही ऐसी है क्या करें?असमान चीज़ों में भी समान तत्त्व ढूंढ लेते हैं. कोयला हो या हीरा, दोनों में बस कार्बन ही दिखता है. मेरे ही शब्दोंमें -
    प्रवृत्ति है अनुहार ढूँढने की
    तभी सदा ठगा जाता हूँ मैं

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  9. द्विवेदी जी,
    नयी भाषा (खासकर एक भारतीय के लिए दूसरी भारतीय भाषा) सीखना बहुत आसान है. पहले लपि के चक्कर में न पड़ें. चेन्नई के बालाजी पब्लिकेशन्स की "Learn bangla in 30 days" खरीद लें. लगभग हर बड़े शहर में मिलती है. दक्षिण भारत में बहुत आसान है. प्रकाशक का पता है -
    new # 235, old # 103, Pyeroffts Road,
    Royapettah, Chennai - 600014.
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  10. बांग्‍लाभाषि‍यों के बीच कई साल रहा हूँ। उनकी एक चीज़ से मैं हतप्रभ रह जाता था और वो है उनके बोलने की स्‍पीड,
    दि‍ल्‍ली के बाजारों में इतनी ही स्‍पीड से हि‍न्‍दी बोलनेवाले लोग मि‍ल जाएँगे। ऐसी हि‍न्‍दी कई बार समझ में भी नहीं आती।
    अब तो बंग्‍ला के कुछ ही शब्‍द जहन में याद आते है- ताड़पोड़े.., कैमौन आछी? भालो?, ऐईखाने आसोन.. की कोरबे?... कोथाई जाइश्‍च्‍छे? आदि‍।

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  11. कित्ता घुमा दिए हो भाई.....सीधे बंगाल ले जा पटके हो......फ़िर रसगुल्ले की चाशनी भी छोड़ दी है आख़िर.में

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  12. भालो दादा ! खूब भालो ..

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  13. बहुत ही सुन्दर विवरण दिया आप ने ,धन्यवाद

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  14. अनुरागजी कुछ ज्यादा ही याद आ गया।
    ब्लोग पर लौटता हूं। आप आरहें हैं क्या?

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  15. .

    ऎई दादा , आमि किच्छू बूझते पारलि ना ।
    बाँग्ला तो निसंदेह मिष्टी.. किंतु एक्खनोई स्त्री-पुरुषेर
    राग् मोध्ये बाँग्लाभाषारेर कोनो कथाप्रसंगो पाय नीं आमि ?

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  16. badi meethi bhashaa hai..rehtey/suntey asaani se samjhi jaa sakti hai

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  17. बांग्ला मेरी मातृ भाषा है। शादी से पहले मुखर्जी थी, अब चटर्जी। एक और बोली है, छत्तीसगढ़ी, बहुत कुछ बांग्ला से मिलती जुलती, ऐर बहुत ही मीठी।

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  18. निःसंदेह आप हो लिए पूरे व्यंगकार......कहाँ की बात घुमाकर कहाँ पहुँचा दिया रसगुल्ले की चाशनी लगाकर.पर मीठा स्वादिष्ट लगा यह " दा दा " प्रकरण. बहुत बढ़िया,लाजवाब..
    वैसे रस से भरी भाषा और रस भरे रसगुल्ले के सचमुच कोई जवाब नही,बशर्ते कि हिसाब से ही खाया जाए,वरना डाइबिटीज का खतरा रहता है.

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  19. निःसंदेह आप हो लिए पूरे व्यंगकार......कहाँ की बात घुमाकर कहाँ पहुँचा दिया रसगुल्ले की चाशनी लगाकर.पर मीठा स्वादिष्ट लगा यह " दा दा " प्रकरण. बहुत बढ़िया,लाजवाब..
    वैसे रस से भरी भाषा और रस भरे रसगुल्ले के सचमुच कोई जवाब नही,बशर्ते कि हिसाब से ही खाया जाए,वरना डाइबिटीज का खतरा रहता है.

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  20. निःसंदेह आप हो लिए पूरे व्यंगकार......कहाँ की बात घुमाकर कहाँ पहुँचा दिया रसगुल्ले की चाशनी लगाकर.पर मीठा स्वादिष्ट लगा यह " दा दा " प्रकरण. बहुत बढ़िया,लाजवाब..
    वैसे रस से भरी भाषा और रस भरे रसगुल्ले के सचमुच कोई जवाब नही,बशर्ते कि हिसाब से ही खाया जाए,वरना डाइबिटीज का खतरा रहता है.

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  21. ऎई दादा , आमि किच्छू बूझते पारलि ना ।
    किंतु आमि बूझेगाछी , आपनि केनु आमार गुरु ..:)

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  22. गजब का साटायर है!! जम कर आस्वादन हुआ!!


    -- शास्त्री

    -- ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने अपने विकास के लिये अन्य लोगों की मदद न पाई हो, अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  23. आमी किछु बोलबो न..आपनार कोथा टा किंतु भिशोन भालो

    :-)

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