Tuesday, May 31, 2011

छोटे मियाँ - लघुकथा

रिसेप्शनिस्ट मानो सवालों की बौछार सी किये जा रही थी और राजा भैया शांति से हर प्रश्न का जवाब देते जा रहे थे। वह पूछती, वे बताते और वह अपने कम्प्यूटर में दर्ज़ कर लेती। उम्र पूछी तो राजा ने मेरी ओर देखा। मैंने जवाब दिया तो रिसेप्शनिस्ट मुस्कराई, "द यंगेस्ट मैन इन द कम्युनिटी।"

जवाब में राजा भैया मुस्करा दिये और मेरे होठों पर भी मुस्कान आ गयी। एक ऐसी मुस्कान जिसमें हज़ारों खुशियाँ छिपी थीं। चौथी कक्षा में था तब दशहरे-दिवाली की छुट्टियों से पहले एक बार कक्षा एक से लेकर 12 तक के सभी छात्रों की सम्मिलित सभा में प्राचार्य ने छात्रों को मंच पर आकर इन पर्वों के बारे में बोलने का आमंत्रण दिया था। जब कोई नहीं उठा तो मैं चल पडा। बोलना खत्म करने तक सबका दिल जीत चुका था। भीमकाय प्राचार्य ने नकद पुरस्कार तो दिया ही, गोद में उठाकर जब "छोटे मियाँ" कहा तो जैसे वह मेरी पदवी ही बन गयी। जब तक उस विद्यालय में रहा सभी "छोटे मियाँ" कहकर बुलाते रहे।

नगर बदला तो स्कूल भी बदला। कक्षा में सबसे छोटा था। छोटे मियाँ कहलाया जा सकता था मगर यहाँ की संस्कृति भिन्न थी सो यहाँ नाम पडा "कुंवर जी।" नाम का अंतर भले ही रहा हो रुतबा वही था। वैसी ही प्यार की बौछार और छोटा होने पर भी बडे सहपाठियों और सहृदय अध्यापकों से मिलने वाला वैसा ही सम्मान।

समय कैसे बीतता है पता ही नहीं लगता। काम पर गया तो भी सबसे युवा होने के कारण बडी मज़ेदार घटनायें घटीं। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि छात्र प्रशिक्षुओं ने अपने में से ही एक समझा। यहाँ पर मैं "बेबी ऑफ द टीम" कहलाया। होली पर सबके तो हास्यास्पद नामकरण हुए मगर अपने लिये मिला, "... यहाँ के हम हैं राजकुमार।"

वैसे तो मैं अकेला ही आराम से आ सकता था। मगर राजा भैया आजकल साथ में चिपके से रहते हैं। फार्म तक भरने नहीं दिया। खुद ही भरते जा रहे थे। औपचारिकतायें पूरी होने के बाद रिसेप्शनिस्ट उठी और राजा भैया को धन्यवाद देकर मुझसे उन्मुख होकर बोली, "आइये कैप्टेन, आपको टीम से मिला दूँ।"

"सर्वश्रेष्ठ जगह है यह" राजा भैया ने मेरे पाँव छूते हुए कहा। उनके साथ मेरी आँख भी नम हुईं जब वे बोले, "यहाँ आपको कोई परेशानी नहीं होगी। वृद्धाश्रम नहीं, फाइव स्टार होटल है ये, पापा।"

[समाप्त]

39 comments:

  1. हो सकता है कि संस्कारों को बांटने में कमी हम से ही रह गई हो...

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  2. रहस्य को अन्तिम पंक्ति तक बरकरार रखा!! एक अद्भूत प्रस्तुति!!

    कजल जी,

    संस्कार बांटे जा सकते है और शायद अगले के हृदय में उतारे भी जा सकते है। किन्तु उनके दिलों से निजि स्वार्थों को खींच कर बाहर नहीं निकाला जा सकता।

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  3. बड़ी अच्छी और वृहद लगी यह लघुकथा।

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  4. वर्तमान जीवन का कटु सत्‍य उजागर करती लघुकथा।

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  5. praveen jee ne sach kaha ....laghu katha ka briad rup behad pyara laga.........

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  6. राजा भैया ने अपनी एडवांस बुकिंग नहीं करवाई !

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  7. 'वृद्धाश्रम नहीं, फाइव स्टार.' अद्भुत.

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  8. .

    This is the irony !

    Very touching and appealing story.

    .

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  9. right captain ......


    jai baba banaras.............

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  10. अंतिम पंक्ति हथोड़े कि तरह लगी ....

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  11. फाइव स्टार ...... :( सटीक और प्रासंगिक भाव लिए कथा ...कम शब्दों में बहुत कुछ कहती कहानी.......

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  12. घाव करे गंभीर.... लघु कथा वर्तमान हालात को बयान करती है.

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  13. very touching and entwined with great message !!

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  14. आज की पीढ़ी शायद ऐसा ही सोचती है ,पर ऐसा क्यूँ सोचती है ,यह सोचना ज्यादा जरूरी है ,कुछ न कुछ कमी तो हम से ही रही है शायद .................

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  15. नामकरणों की एक श्रृखला बन गयी

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  16. लघु कथा बहुत लम्बी लगी

    एक तो बड़े दिनों. के बाद
    आपकी कोई पोस्ट नजर आई

    दूसरे,
    कथा के रसास्वादन के लिए 10 पेज पढने पढ़े
    आजकल आम का मौसम चल रहा है
    पेड़ से टपके हुए ताजे रसीले आम की गुठली
    को चूस-चूस कर सफ़ेद कर देने की आदत पड़ गई है
    छिलके भी उसी तन्मयता से चूस लेता हूँ

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  17. फाइव स्टार! कभी हमारी जिन्दगी भी पांच सितारा में सिमट जायेगी! :(

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  18. आधुनिक जीवन का सारांश ही लिख दिया आपने!
    अद्भुत...।

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  19. उफ़ ..अंत जैसे एक तमाचे सा लगा...

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  20. रहस्य को अन्तिम पंक्ति तक बरकरार रखा|
    एक अद्भूत प्रस्तुति|

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  21. लघु कथा सुन्दर रही !

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  22. राजा भैया तो बहुत अच्छे लगे जी, बहुत सुंदर

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  23. बहुत सुन्दर लघुकथा!
    मगर कुछ लम्बी सी हो गई है!

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  24. अनुराग भाई!
    स्टैंडिंग ओवेशन!!

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  25. जोरदार -छोटे मियाँ सुभान अल्लाह

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  26. आधुनिक जीवन का भयाभय चेहरा ! सुन्दर लघुकथा !

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  27. ईमेल से मिली एक आत्मीय की टिप्पणी को यहाँ रखने का लोभ सम्वरण नहीं कर पा रहा हूँ:

    जाने क्यों यह कहानी मुझे बहुत पसन्द आयी। लगा जैसे कि कहानी नई पीढ़ी को गरियाने की प्रथा से अलग हट कर उनके पक्ष को सहानुभूतिपूर्वक प्रस्तुत करने की कोशिश है। क्या करें वे परवरिश, परिवेश और जमाना तीनों बहुत बदल चुके हैं। फिर भी क्या यह कम है कि आँखें अभी भी नम होती हैं? पुत्र पिता को ऐसी जगह ले कर आया है जहाँ तनहाई नहीं, उनके स्वभाव के अनुरूप 'टीम' है और उसका कैप्टेन बनने की सम्भावनायें भी। वृद्धावस्था उसी खिलन्दड़ी से बीत जायेगी जैसे बचपन और यौवन।

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  28. छोटे मियां...सुभानअल्लाह...

    जय हिंद...

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  29. दिल को छु गयी...कटु सत्य है ये

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  30. यथार्थ के करीब लघुकथा...

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  31. बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....

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  32. यह वाक्‍य लिखने से पहले मैं जी भर रोया।

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  33. सलिल जी ने छीन लिया वो जो मैं कहता यदि उनकी टिप्पणी नहीं देखी होती, लेकिन फिर भी कहना वही है।

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  34. इस आधुनिक श्रवण को समझने में पता नहीं अभी कितना समय लगे,
    मुझे बहुत पसंद आयी यह लघुकथा !

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