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Saturday, January 28, 2012

अंतर्मन - कविता

(अनुराग शर्मा)

ॐ सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ...
पर्वत के पीछे
बरगद के नीचे

अपनों के देस में
निपट परदेस में

दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों  में

गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में

मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में

तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप

किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥

Saturday, March 19, 2011

अक्षर अक्षर - एक कविता

[अनुराग शर्मा]

कागज़ी खानापूरी से
दिमागी हिसाब-किताब से
या वाक्चातुर्य से
परिवर्तन नहीं आता
क्योंकि
क्रांति का खाजा है
त्याग, साहस
इच्छा-शक्ति, पसीना
और मानव रक्त

कफन बांधकर
निकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकांक्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोड़ते हैं
ठलुआ शायर

जान जाती है
बयार आती है
क्रांति हो जाती है
युग परिवर्तन होता है
खेत रहते हैं वीर
बिसर जाते हैं
वीर, त्यागी और हुतात्मा
कर्म विस्मृत हो जाते हैं
लिखा अमिट रहता है
अलंकरण पाते हैं
डरपोक कवि
क्योंकि
अक्षर अक्षर है।
.

Thursday, July 31, 2008

इसका अब क्या मतलब?

संस्कृत और फारसी पर हुई पिछली दो वार्ताएं "हज़ार साल छोटी बहन" और "पढ़े लिखे को फारसी क्या?" बहुत सार्थक रही हैं। उन्हें आगे जारी रखेंगे। इस बीच में एक सत्रह साल पुराने मित्र की तरफ़ से एक पुरानी कविता सुनने का आग्रह ईमेल से आया था। उनके सम्मान में यह कविता यहाँ रख रहा हूँ। अच्छा कवि तो नहीं हूँ। पर ज़िंदगी से सीख रहा हूँ - अच्छी, बुरी जैसी भी लगे, कृपया बताएं ज़रूर। सुधार की जो भी गुंजाइश हो बेबाक लिखें। धन्यवाद!

मैं कौन था मैं कहाँ था, इसका अब क्या मतलब
चला कहाँ कहाँ पहुँचा, इसका अब क्या मतलब

ठिकाना दूर बनाया कि उनसे बच के रहें
कपाट तोड़ घुस आयें, इसका अब क्या मतलब

ज़हर भरा है तुम्हारे दिलो-दिमाग में गर
बस दिखावे की मुलाक़ात का अब क्या मतलब

किया क्यों खून से तर, मेरा क़त्ल किसने किया
गुज़र गया हूँ, सवालात का अब क्या मतलब

मुझे सताया मेरी लाश को तो सोने दो
गुज़र गया हूँ खुराफात का अब क्या मतलब।





Note: रामपुरिया जी, संस्कृत प्रसारण के बारे में मैं भूला नहीं हूँ। अगली पोस्ट में ज़रूर बात करेंगे। आपके प्यार के लिए आभारी हूँ।