(अनुराग शर्मा)
पर्वत के पीछे
बरगद के नीचे
अपनों के देस में
निपट परदेस में
दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों में
गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में
मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में
तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप
किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥
ॐ सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ... |
बरगद के नीचे
अपनों के देस में
निपट परदेस में
दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों में
गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में
मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में
तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप
किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥