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Saturday, January 28, 2012

अंतर्मन - कविता

(अनुराग शर्मा)

ॐ सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ...
पर्वत के पीछे
बरगद के नीचे

अपनों के देस में
निपट परदेस में

दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों  में

गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में

मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में

तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप

किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥