(अनुराग शर्मा)
पर्वत के पीछे
बरगद के नीचे
अपनों के देस में
निपट परदेस में
दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों में
गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में
मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में
तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप
किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥
ॐ सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ... |
बरगद के नीचे
अपनों के देस में
निपट परदेस में
दुश्मन के गाँवों में
बदले के भावों में
गन्दी सी नाली में
भद्दी सी गाली में
मन की दरारों में
कुत्सित विचारों में
तम के अनेक रूप
लेकिन बस एक धूप
किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥
वाह आप तो प्रभावी कविता भी खूब लिखते हैं
ReplyDeleteकिरण की दिशा हमने देख ली, बढ़ते वहाँ हर पल..
ReplyDeleteकिरण -ये कोई नया नाम लगता है ....ब्लाग जगत में अभी तक सुना नहीं!
ReplyDeleteजी, वाकई, एक ही किरण बहुत से तम को दूर कर देती है..
ReplyDeletesarthak vicharon ki manovritti ko poshit karati kavi achhi lagi .sadhuvad ji /
ReplyDeleteविदेश में रहना, कभी कभार अपन गांव-घर जाना और वहां से दर्द की इतनी बड़ी गठरी लाद लाना! आह! यह गीत, आपकी पीड़ा का एहसास हमको भी कराती है अनुराग जी। बस एक 'धूप' के सहारे ही तो काटनी है जिंदगी।
ReplyDeleteतम के अनेक रूपों में एक किरण ही काफी है ख़ुशी का अहसास दिलाने के लिए ।
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल ।
अंतर्मन के इतने रूप!! कहाँ कहाँ भटकता है यह!!
ReplyDeleteअद्भुत भाव है, अंधेरे कैसे भी हो, कहीं भी हो, कितने भी घने हो ज्ञान रूपी एक प्रकाश किरण जीवन को उज्जवल कर देती है।
ReplyDeleteतम का यह रूप सहेज कर रखें।
ReplyDeleteकितना सुंदर शब्द संयोजन..... सुंदर रची पंक्तियाँ
ReplyDeleteतम के अनेक रूप
ReplyDeleteलेकिन बस एक धूप
किरण जहाँ जाती है
हृदय जगमगाती है॥
aapki kavita padh kar man prsnn ho gaya hai.
kai din se laptop aur net men samsya thi.
doosre laptop se tippani kar raha hun,jisme Hindi
type nahi kar paa raha hun.
aapko basant panchami ki shubhkamanayen.
smay milne par mere blog par aaiiyega.
बहुत सुन्दर, श्रेष्ठ हमेशा श्रेष्ठ ही रहता है, उसे साबित करने के लिए पापड नहीं बेलने पड़ते !
ReplyDeleteवाह!!!!खूबसूरत!!!!!! :):)
ReplyDeleteथोडे में, खासकर छोटी-छोटी पंक्तियों में, अपनी बात कह देना अपने आप में सुन्दरता है। उस पर कविता की सुन्दरता। अद्भुत।
ReplyDelete"किरण जहां जाती है " ...
ReplyDeleteजहां नहीं जाती ?
ज़रूर उम्मीद कायम रहे ,रहना भी चाहिये पर...
ReplyDeleteतम के अनेक रूपों में से एक ( अंतर्मन के ) ब्लैक होल्स भी हुआ करते हैं जहां किरण से भी कोई उम्मीद नहीं :(
कोई भी रूप हो तम का ,रोशनी की किरण अबाध पहुँच जाती है - जितना गहन अँधेरा, उतना उजला प्रकाश का फेरा !
ReplyDeleteगंदी नाली हो या भद्दी गाली... अपना देस ही प्यारा लगता है :)
ReplyDeleteअद्भुत भाव है, अंधेरे कैसे भी हो, कहीं भी हो, कितने भी घने हो ज्ञान रूपी एक प्रकाश किरण जीवन को उज्जवल कर देती है।
ReplyDeleteमन को लुभाती है
ReplyDeleteकविता बतियाती है
किरण जहाँ जाती है
ReplyDeleteहृदय जगमगाती है॥
sir speechless lines .
PRANAM
अपनों के देस में
ReplyDeleteनिपट परदेस में
किरण सबकी साझा है
ज्ञान की ही भाषा है
बिना नस्ल भेद के
बिना किसी खेद के
खुले रखते दिल द्वार है
वहां होती आर पार है
"किरण जहाँ जाती है..."
ReplyDeleteएकदम सच है और यही ग्रहण योग्य सत्य है।
किरण जहाँ भी जाती है , जगमगाती है !
ReplyDeleteसचमुच !
तम के अनेक रूप
ReplyDeleteलेकिन बस एक धूप
बिलकुल सच...जिसके हिस्से धूप आया...उसका जीवन जगमगाया
जी हां, धूप है, मानो आस है!
ReplyDeletebahut hi bdhiya rachna hai .....
ReplyDeleteज्ञान की एक किरण ही पर्याप्त है मन की दरारों में प्रवेश करने के लिए .......
ReplyDeleteउत्तम रचना .......
किरण जहाँ जाती है
ReplyDeleteहृदय जगमगाती है॥...
सकारात्मक उर्जा का संचार करती कविता...
छोटी सी मनमोहक कविता!
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
किरण जहाँ जाती है
ReplyDeleteहृदय जगमगाती है॥
सार्थक, आभार
तम के अनेक रूप पर ज्योति एकही है...बहुत सुंदर भाव!
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDeleteछोटी मगर गहरा असर छोडती रचना ....
ReplyDeleteआभार आपका !
एक धुप ही बहुत है जगमगाने के लिए..तम को भगाने के लिए..
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
वाह!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत...
शुक्रिया..
सदा जी की हलचल पर आपकी सुन्दर प्रस्तुति देखकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा है यह प्रस्तुति.
सुंदर !!
ReplyDeleteपरिभाषा तो असत्य की ही हो सकती है ! रूप,गुण ,स्वभाव में भले ही असत्य के कितने ही रूप क्यों न हो लेकिन सबको जोड़ने वाली भीतर सजीव ज्योति किरण एक समान है जिसकी कोई परिभाषा शब्दों में नहीं हो सकती, काफी है एक किरण स्त्रोत तक पहुंचा देती है, सुन्दर रचना !
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