(अनुराग शर्मा)
कभी उसको नहीं समझा
कभी खुदको न पहचाना
दिया है दर्जा दुश्मन का
कभी भी दोस्त न माना
जो मेरे हो नहीं सकते
उन्हें दिल चाहे अपनाना
अकेला हो गया कितना
गये जब वे तो पहचाना
कठिन है ये कि छूटे सब
या के सब छोड़ के जाना?
देखी ज़माने की यारी ... |
कभी उसको नहीं समझा
कभी खुदको न पहचाना
दिया है दर्जा दुश्मन का
कभी भी दोस्त न माना
जो मेरे हो नहीं सकते
उन्हें दिल चाहे अपनाना
अकेला हो गया कितना
गये जब वे तो पहचाना
कठिन है ये कि छूटे सब
या के सब छोड़ के जाना?
कभी उनने नहीं जाना,
ReplyDeleteकभी खुद ने न पहचाना ,
यही तो जिंदगी प्यारे,
यही सबका है अफसाना !
वाह!
Deleteकभी मुझको नहीं समझा
ReplyDeleteकभी मुझको न पहचाना
दिया दर्ज़ा जो दुश्मन का
कभी भी दोस्त न माना
जो मेरे हो नहीं सकते
उन्हें दिल चाहे अपनाना
अकेला हो गया कितना
गये जब वे तो पहचाना
कठिन है ये कि छूटे सब
या के सब छोड़ के जाना?
....लागी नाहीं छूटे रामा, चाहे जीया जाये। काहे घबड़ाये, काहे घबड़ाये।
सत्य वचन, महाराज!
Deleteअकेला हो गया कितना
ReplyDeleteगये जब वे तो पहचाना...
रिश्तों की गहराई दूरियां समझाती है!
रिश्तों की गहराई को समझती सुन्दर कविता। धन्यवाद।
ReplyDeleterishte ko darshati pyari si rachna...
ReplyDeleteबढ़िया है!
ReplyDeleteअकेले हैं तो क्या गम है..
ReplyDeleteकभी मुझको नहीं समझा
ReplyDeleteकभी मुझको न पहचाना
सरल सीधे शब्दों में बहुत कुछ कहती गज़ल ... रिश्तों को खंगालती गज़ल ...
एक शेर और जोड़ रहा हूँ इसमें ...
बहुत मुश्किल है बच्चों को
ज़रा सी बात समझाना ...
वाह!
Deleteसब छोड़ के जाना ,पर मन कहाँ माना ..?
ReplyDeleteकहाँ सम्भव है जीवन में, यूँ एकान्त हो जाना,
ReplyDeleteहम भी नहीं सुनते, न हमसे मन कभी माना,
आभार!
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता !
ReplyDeleteजो मेरे हो नहीं सकते
ReplyDeleteउन्हें दिल चाहे अपनाना
यही तो प्रॉब्लम है .
सादगी और अर्थों की गहराई एक साथ!! रिश्तों को डिफाइन करती सुन्दर रचना!!
ReplyDeleteमौत का एक दिन मुअइन है... रात भर फिर नींद क्यों नहीं आती?
ReplyDeleteदिया दर्जा जो दुश्मन का
ReplyDeleteसही था या गलत जाना
खुदा था वो रकीबों का
तभी काफ़िर मुझे जाना
मुहब्बत ऐब थी मुझमें
यही था उसका पैमाना
सुब्हान अल्लाह!
Deleteपढ़ी मासूम पंक्तियाँ मैने सुबह इस्पात नगरी में
ReplyDeleteसमझा गीत है यह तो! अभी देखा गज़ल निकला।
कली को लाख कोसे पर अलि रहता फिदा उसपर
करे गुनगुन मस्ती में समझो इक गज़ल निकला।
:)
ReplyDeleteरिश्तों में दूरियां...हमें बताती हैं कि वो हमारे लिए क्या हैं।
ReplyDeleteदूर होकर ही नजदीकी के महत्व का ज्ञान हो पता है.
ReplyDeleteजिंदगी का गीत है....
ReplyDeleteअकेला हो गया कितना
ReplyDeleteगये जब वे तो पहचाना...
अक्सर ऐसा होता है..... कम शब्दों में गहरी बात
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
@
ReplyDeleteजो मेरे हो नहीं सकते
उन्हें दिल चाहे अपनाना
प्यार की जीत भी , हर जगह संभव नहीं सकती ....कुछ कसक रह ही जाती हैं !
शुभकामनायें आपको !
ये कैसी बाते कर रहे हैं इन दिनों!
ReplyDeleteकविता बरसों पुरानी है जनाब!
Deleteछूटता तो नहीं है, छोड़ कर ही जाना है .... | हाँ कोई इक्के दुक्के गौतम या महावीर ऐसे भी होते हैं - जिनका छूट भी जाता है | बाकी हम सब साधारण लोगों को तो, छोड़ कर ही जाना है |
ReplyDelete"कभी मुझको नहीं समझा
कभी मुझको न पहचाना"
यही होता रहा है, हो रहा है, होगा |
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
Deleteयस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥
(श्रीमद्भग्वद्गीता 18-11)
सत्य वचन ....
Deleteअनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फ़लम् |
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित् ॥
हाँ ! बिलकुल यही बात मेरे भी मन में आयी ....चाहते नहीं हैं पर अंततः सब कुछ छूट ही जाता है .....
Deleteजो मेरे हो नहीं सकते
ReplyDeleteउन्हें दिल चाहे अपनाना
अकेला हो गया कितना
गये जब वे तो पहचाना
कठिन है ये कि छूटे सब
या के सब छोड़ के जाना?
शब्द,दिल को अन्दर तक छूं गए ! शानदार अनुराग जी !
जो मेरे हो नहीं सकते
Deleteउन्हें दिल चाहे अपनाना.very nice.
http://www.youtube.com/watch?v=kkuZY68_o2k
ReplyDeleteवह वीडियो तो डिलीट हो चुका है, एक प्रति इधर भी है: http://www.youtube.com/watch?v=W_H3jOcJOfQ
Deleteजो उपलब्ध है उसमें आसक्ति नहीं हो पाती ...जो अनुपलब्ध है मन उसके लिए ही तड़पता रहता है ...पर जब उपलब्ध वाला भी नहीं रहता तब उसके महत्त्व का पता चलता है बन्धु !
ReplyDeleteअकेला हो गया कितना
ReplyDeleteगये जब वे तो पहचाना\वाह बहुत सुन्दर कविय्ता बधाई आपको।
चकाचक बयानबाजी! :)
ReplyDeleteआज ब्लॉग पे आने से कम से कम ये तो हुआ न की दो खूबसूरत कविता पढ़ने को मिली..अंतर्मन और अकेला :)
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं का संग्रह है आपका ब्लॉग..
बधाई.
कठिन है ये कि छूटे सब
Deleteया के सब छोड़ के जाना?
सुन्दर....