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माँ कितना बतलाती हो तुम
क्यूँ इतना समझाती हो तुम
संतति की ममता में विह्वल
क्यों इतना घबराती हो तुम
लड्डू समझ निगल जायेंगे
कीड़ा समझ मसल जायेंगे
जैसे नन्हा बालक हूँ मैं
सिंहों में मृगशावक हूँ मैं
माना थोड़ा कच्चा हूँ मैं
पर भोला और सच्चा हूँ मैं
सच की राह नहीं है मेला
चल सकता मैं सदा अकेला
काँटे सभी हटा सकता हूँ
बंधन सभी छुड़ा सकता हूँ
उसके ऊपर तेरा आशिष
अमृत में बदले सारा विष
माँ कितना बतलाती हो तुम
बस ममता बरसाती हो तुम
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अनुराग भाई. बहुत पसंद आई ये कविता. अलग रंग लिए .... बहुत बढ़िया है.
ReplyDeleteपसंद आई ,सुंदर कविता.
ReplyDeleteअनुराग जी।
ReplyDeleteमाँ पर इतनी सरल, सहज और सुन्दर
कविता।
आपको बहुत-बहुत बधाई।
जीवन की सच्चाई के रंग
ReplyDeleteआपकी कविता के संग
बहुत बढ़िया...
लिखते रहिए..
बहुत सुंदर कविता. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सहज और सुंदर कविता!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सरल अभिव्यक्ति है मा के लिये जितनी भी भावनायें व्यक्त कर लें सदा कम जान पडती हैं ये कविता लाजवाब है मा के लिये कुछ पंह्तियां----
ReplyDeleteमाँ की ममता ब्रह्मण्ड से विशाल है
माँ की ममता की नहीं कोई मिसाल है
माँ की ममता गीता कुरान है
मे की ममता वेद पुराण है----- आभार
सच की राह नहीं है मेला
ReplyDeleteचलना सदा पड़ेगा अकेला
-बेहतरीन रचना...भा गई भाई!!
भाव प्रवण
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसुन्दर और सच्ची कविता।
बधाई।
उसके ऊपर तेरा आशिष
ReplyDeleteअमृत में बदले सारा विष
ऐसा ही होता है माँ का प्यार व आशीर्वाद !!
सुन्दर !!
मां तो मां है।इतना बडा होने के बाद आज भी जब वो हर मामले मे सीख देती है ओ ऐसा लगता है समय का पहिया उल्टा घूम गया है।हम उंगली पकड कर चलने वाले बच्चे ही होते है मां के लिये चाहे कितने भी बड़े हो जाये।बहुत सुन्दर अनुराग भाई।
ReplyDeleteसच में बहुत सुंदर कविता है . हर बच्चे को पढ़वानी चाहिए .
ReplyDeleteऐसी ही होती है मां.
ReplyDeleteDil ko chhu lene wali rachna.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
हों हम किसी भी उम्र में माँ की ज़रुरत होती ही है...
ReplyDeleteमेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में.
बहुत ही सुंदर कविता...सीधी-सरल भाषा में सीधी-सरल बात..
अच्छा लगा पढ़ कर ..
माँ कितना बतलाती हो तुम
ReplyDeleteक्यूं इतना समझाती हो तुम
माँ तो बतलायेगी ही; माँ तो समझाएगी ही
बहुत खूबसूरत
माँ - एक शब्द पूरा ब्रह्माण्ड समेटे हुए -- और सरल् मन से लिखी सहज सुन्दर कविता बहुत पसंद आयी अनुराग भाई
ReplyDeleteanuraag ji , aapki ye kavita man ko choo gayi ... maa par kitna bhi likha jaaye wo kam hai ... aapko itni acchi rachna ke liye main dil se badhai deta hoon ..
ReplyDeleteregards
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
ALAG RANG MEIN RANGI HAI AAPKI KAVITA.....DARASAL MAA TO HOTI HI AISI HAI....BAHOOT HI SUNDAR KAVITA HAI..
ReplyDelete'उसके ऊपर तेरा आशिष
ReplyDeleteअमृत में बदले सारा विष'
-माँ के इसी आशीष के बल पर बड़े बड़े संकट टल जाते हैं.
माँ तो शब्द् ही अपने आप में पूरी नज़्म है...
ReplyDeleteतमाम तारिफ़ों से परे अनुराग जी और ब्लौग का नया रंग-रूप खूब फ़ब रहा है..
सच की राह नहीं है मेला
ReplyDeleteचलना सदा पड़ेगा अकेला
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"चल अकेला चल अकेला" याद आ जाती है बरबस!
वाह ... बढिया कविता है | माँ की बात ही निराली है |
ReplyDeletebahut hi sundar bhav wali marmsparshi kavita .maa ko tassli deti hui, uski fikr ko hatati bhi .
ReplyDeleteमाँ का स्नेह बेटे के लिए और बेटे का माँ के लिए....दोनों को ही बड़े prabhavi dhang से ukera है आपने.......marmsparshi इस रचना से मन को baha ले जाने के लिए बहुत बहुत aabhar ..........
ReplyDeleteसुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता ..बधाई।
ReplyDeletebahhut khub
ReplyDeleteवाह! आनंद आ गया। लगा जैसे कभी मैने भी यही सब कहना चाहा था..
ReplyDeleteअभिवयक्ति मन को छू गयी आपकी.आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBeautiful!!
ReplyDeleteAti Sunder....
ReplyDeletema ki tarah hi saral aur sundar kavita ....
ReplyDeleteवाह :)
ReplyDeleteउसके ऊपर तेरा आशिष
ReplyDeleteअमृत में बदले सारा विष
bahut sundar ..
बहुत ही प्यारी और मासूम कविता माँ के लिये ।
ReplyDeleteसीधे सच्चे शब्दों से सजी ुत्तम कविता।
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