वैसे तो बड़ा भरा-पूरा परिवार था। बहुत से चचेरे, ममेरे भाई बहिन। परन्तु अपने पिता की अकेली संतान थीं वह। शान्ति पाण्डेय। मेरे नानाजी की तहेरी बहिन। अपनी कोई संतान नहीं थी मगर अपने भाई बहनों, भतीजे-भतीजियों और बाद में उनके भी बच्चों और पोते-पोतियों के लिए वे सदा ही ममता की प्रतिमूर्ति थीं।
वैसे तो मेरी माँ की बुआ होने के नाते रिश्ते में मेरी नानी थीं मगर अपनी माँ और अपने अन्य भाई बहनों की तरह मैंने भी हमेशा उन्हें शान्ति बुआ कहकर ही पुकारा। उन्होंने सरकारी स्कूल में बच्चियों को संगीत पढ़ाया। उनका अधिकाँश कार्यकाल पहाड़ों पर ही बीता। गोपेश्वर, चमोली, पिथौरागढ़ और न जाने कहाँ-कहाँ। एक बार नैनीताल में किसी से मुलाक़ात हुई - पता लगा कि वे शान्ति बुआ की शिष्या थीं। एक शादी में दार्चुला के दुर्गम स्थल में जाना हुआ तो वहाँ उनकी एक रिटायर्ड सहकर्मिणी ने बहुत प्रेम से उन्हें याद किया।
मेरे नानाजी से उन्हें विशेष लगाव था इसलिए बरेली में नानाजी के घर पर हम लोगों की बहुत मुलाक़ात होती थी। उनके पिता (संझले बाबा) के अन्तिम क्षणों में मैं बरेली में ही था और मुझे अन्तिम समय तक उनकी सेवा करने का अवसर मिला था। संझले बाबा के जाने के बाद भी शान्ति बुआ हमेशा बरेली आती थीं। उनका अपना पैतृक घर भी था जिस पर उन्हीं की एक चचेरी बहन ने संझले बाबा से मनुहार करके रहना शुरू कर दिया था। फिर वे लोग उस घर पर काबिज़ हो गये।
मैं अपने बचपने में और सब लोगों के साथ उन पर भी बहुत बार गुस्सा हुआ हूँ और उसका बहुत अफ़सोस भी है। मगर उन्होंने कभी किसी बात का बुरा न मानकर हमेशा अपना बड़प्पन का आदर्श ही सामने रखा। रिटायर होकर बरेली आयीं तब तक नानाजी भी नहीं रहे थे। उनके अपने घर पर कब्ज़ा किए हुए बहन-बहनोई ने खाली करने से साफ़ इनकार कर दिया तो उन्होंने एक घर किराए पर लेकर उसमें रहना शुरू कर दिया। पिछले हफ्ते बरेली में पापा से बात हुई तो पता लगा कि बीमार थीं, अस्पताल में भर्ती रहीं और फिर घर भी आ गयीं। माँ ने बताया कि अपने अन्तिम समय में वे यह कहकर नानाजी के घर आ गयीं कि इसी घर में मेरे पिता का प्राणांत हुआ और किस्सू महाराज (मेरे नानाजी) ही उनके सगे भाई हैं इसलिये अपने अन्तिम क्षण वे वहीं बिताना चाहती हैं। और अब ख़बर मिली है कि वे इस नश्वर संसार को छोड़ गयी हैं। अपनी नानी को तो मैंने नहीं देखा था मगर शान्ति बुआ ही मेरी वो नानी थीं जिन्होंने सबसे ज़्यादा प्यार दिया।
चित्र में (बाएँ से) शान्ति बुआ, नानाजी और उनकी बहन।
वैसे तो मेरी माँ की बुआ होने के नाते रिश्ते में मेरी नानी थीं मगर अपनी माँ और अपने अन्य भाई बहनों की तरह मैंने भी हमेशा उन्हें शान्ति बुआ कहकर ही पुकारा। उन्होंने सरकारी स्कूल में बच्चियों को संगीत पढ़ाया। उनका अधिकाँश कार्यकाल पहाड़ों पर ही बीता। गोपेश्वर, चमोली, पिथौरागढ़ और न जाने कहाँ-कहाँ। एक बार नैनीताल में किसी से मुलाक़ात हुई - पता लगा कि वे शान्ति बुआ की शिष्या थीं। एक शादी में दार्चुला के दुर्गम स्थल में जाना हुआ तो वहाँ उनकी एक रिटायर्ड सहकर्मिणी ने बहुत प्रेम से उन्हें याद किया।
मेरे नानाजी से उन्हें विशेष लगाव था इसलिए बरेली में नानाजी के घर पर हम लोगों की बहुत मुलाक़ात होती थी। उनके पिता (संझले बाबा) के अन्तिम क्षणों में मैं बरेली में ही था और मुझे अन्तिम समय तक उनकी सेवा करने का अवसर मिला था। संझले बाबा के जाने के बाद भी शान्ति बुआ हमेशा बरेली आती थीं। उनका अपना पैतृक घर भी था जिस पर उन्हीं की एक चचेरी बहन ने संझले बाबा से मनुहार करके रहना शुरू कर दिया था। फिर वे लोग उस घर पर काबिज़ हो गये।
मैं अपने बचपने में और सब लोगों के साथ उन पर भी बहुत बार गुस्सा हुआ हूँ और उसका बहुत अफ़सोस भी है। मगर उन्होंने कभी किसी बात का बुरा न मानकर हमेशा अपना बड़प्पन का आदर्श ही सामने रखा। रिटायर होकर बरेली आयीं तब तक नानाजी भी नहीं रहे थे। उनके अपने घर पर कब्ज़ा किए हुए बहन-बहनोई ने खाली करने से साफ़ इनकार कर दिया तो उन्होंने एक घर किराए पर लेकर उसमें रहना शुरू कर दिया। पिछले हफ्ते बरेली में पापा से बात हुई तो पता लगा कि बीमार थीं, अस्पताल में भर्ती रहीं और फिर घर भी आ गयीं। माँ ने बताया कि अपने अन्तिम समय में वे यह कहकर नानाजी के घर आ गयीं कि इसी घर में मेरे पिता का प्राणांत हुआ और किस्सू महाराज (मेरे नानाजी) ही उनके सगे भाई हैं इसलिये अपने अन्तिम क्षण वे वहीं बिताना चाहती हैं। और अब ख़बर मिली है कि वे इस नश्वर संसार को छोड़ गयी हैं। अपनी नानी को तो मैंने नहीं देखा था मगर शान्ति बुआ ही मेरी वो नानी थीं जिन्होंने सबसे ज़्यादा प्यार दिया।
चित्र में (बाएँ से) शान्ति बुआ, नानाजी और उनकी बहन।
अच्छा लगा आपकी शान्ति बुआ नानी के बारे में पढ़कर.
ReplyDeleterishte aatmiyata wale bahut gahre hote hain. aapki shanti bua nani ke bare men padha,marmik sansmaran hai.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक संस्मरण है।
ReplyDeleteममतामयी मूर्ति को श्रद्धांजलि!
बुआ जी को प्रणाम..बढ़िया संस्मरण
ReplyDeleteआपकी बुआ नानी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteमाँ ने बताया कि अपने अन्तिम समय में वे यह कहकर नानाजी के घर आ गयीं कि इसी घर में मेरे पिता का प्राणांत हुआ और किस्सू महाराज (मेरे नानाजी) ही उनके सगे भाई हैं इसली अपने अन्तिम क्षण वे वहीं बिताना चाहती हैं। और अब ख़बर मिली है कि वे इस नश्वर संसार को छोड़ गयी हैं।
ReplyDelete" बेहद भावुक प्रस्तुती, इश्वर आपकी बुआ नानी की आत्मा को शांति प्रदान दे और आपके दिल में उनके प्रति सम्मान और प्यार देख कर कुछ पुरानी यादे ताजा हो गयी अपनी नानी माँ की ..."
regards
शान्ति बुआ को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteसमय चक्र अपनी गति से
ReplyDeleteनिर्बाध चला करता है।
समय चक्र में घूम दिवस
सप्ताह बना करता है।
सप्ताह बीत कर मास बनाते
मास वर्ष बन जाते हैं।
ऐसे ही प्रतिक्षण हम निकट
मृत्यु के आते हैं।
आत्मीय जनों का साथ मिले
इस नश्वर मानव जीवन में।
यही एक अभिलाषा रहती है
सबके अंतरमन में।
आप का लेख पढ कर अच्छा लगा, हमारी तरफ़ से शान्ति बुआ जी को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteमन से गहरे जुड़े सम्बन्ध ही सच्चे सम्बन्ध होते हैं,भले वे सम्बन्ध खून से जुड़े न भी हों..
ReplyDeleteबड़ा ही सुखद लगा पढना आपका मन से लिखा यह सुन्दर संस्मरण...
आपने एक कहानी अधूरी छोड़ी हुई है...bas yaad dilaye de rahi hun..
achha laga shanti buaa ke baare mein padh kar ....pranaam hai uko
ReplyDeleteआत्मीय लोग इस संसार से जाने लगते हैं, तो बहुत रिक्तता लगती है। मैं आपकी दशा महसूस कर सकता हूं।
ReplyDeleteशांति बूआ की आत्मा को ईश्वर शांति दे. अंतिम समय उनकी मुराद तो पूरी हुई ही. बाकी समय उन्होने लोगों को अपना प्यार बांटते हुये बिताया और अंत समय नानाजी के घर मे आगई. ऐसे लोगों के जाने से एक रिक्तता पैदा होती है जो बहुत मुश्किल से भर पाती है. बूआजी को नमन.
ReplyDeleteरामराम.
भगवन आपको संबल प्रदान करें ..शान्ति बुआ को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteशान्ति बुआ जी को श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा अपने दिल के करीब लोगों को याद करना कभी कभी मन को बहुत सकून देता है हमारी भी विनम्र श्रधाँजली । आभार और आपकी पुस्तक की समीक्षा और पोडचास्ट सुना बहुत ही सुन्दर लाजवाब रचनायें हैं बधाई
ReplyDeleteयही होता है सर ,जब कोई निरंतर किसी मकान में रहने लगे तो अपना सुखाधिकार समझने लगता है |ज़माने की रफ्तार के मुताबिक बहन बहनोई ने मकान खाली न करके बुआजी का निश्चित ही दिल दुखाया है | पुरानी बात्तें फुर्सत के क्षणों में याद आती ही है आप भी उन पर गुस्सा हुए पश्चाताप तो होता ही है किन्तु उस वक्त हो सकता है अनजान रहे हों या परिस्थितियां ऐसी हो की आपको उन पर स्वाभाविक गुस्सा आगया हो |ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे आप कम से कम याद तो करते है बुजुर्गों को वरना आज किसको फुर्सत है |
ReplyDeleteरिश्ते सहेज रखना आसान कुछ नहीं है
ReplyDeleteऔर नेह याद रखने में कम मुश्किलें नहीं
अच्छा लगा तुमसे मिल के
शाहरुख़ वाला पोस्ट भी शानदार है
लिखते रहिये
भगवन आपको संबल प्रदान करें ..शान्ति बुआ को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteशांति बुआ को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteश्रद्धांजली!
ReplyDeleteMarmik sanmaran.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
भगवन आपको संबल प्रदान करें ..शान्ति बुआ को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteनम हुई आंखों से शांति बुआ को भावभीनी श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteरिश्तों के इसी समुच्चय का नाम भारतीय परिवार है -शरद कोकास ,दुर्ग ,छ.ग.
ReplyDeleteमेरी तरफ से शान्ति बुआ को श्रद्धांजलि |
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