Saturday, September 5, 2009

कैसे कैसे शिक्षक?

भारतीय संस्कृति में माता और पिता के बाद "गुरुर्देवो भवः" कहकर गुरु का ही प्रमुख स्थान है। संत कबीर ने तो गुरु को माता-पिता बल्कि परमेश्वर से भी ऊपर स्थान दे दिया है। शिक्षक दिवस पर गुरुओं, अध्यापकों और शिक्षकों की याद आना लाजमी है। बहुत से लोग हैं जिनके बारे में लिखा जा सकता है। मगर अभी-अभी अपने बरेली के धीरू सिंह की पोस्ट पर (शायद) बरेली के ही एक गुरुजी का कथन "बिना धनोबल के मनोबल नही बढ़ता है" पढा तो वहीं के श्रीमान डी पी जौहरी की याद आ गयी।

डी पी जौहरी की कक्षा में पढने का सौभाग्य मुझे कभी नहीं प्राप्त हुआ। मगर पानी में रहकर मगर की अनदेखी भला कैसे हो सकती है। सो छिटपुट अनुभव अभी भी याद हैं। प्रधानाचार्य जी से उनकी कभी बनी नहीं, वैसे बनी तो अन्य अध्यापकों, छात्रों से भी नहीं। यहाँ तक कि पास पड़ोस के दुकानदारों से भी मुश्किल से ही कभी बनी हो मगर प्रधानाचार्य से खासकर ३६ का आंकडा रहा। उन दिनों दिल्ली में सस्ते और भड़कीले पंजाबी नाटकों का चलन था जिनके विज्ञापन स्थानीय अखबारों में आया करते थे। उन्हीं में से एक शीर्षक चुनकर वे हमारे प्रधानाचार्य को पीठ पीछे "चढी जवानी बुड्ढे नूँ" कहकर बुलाया करते थे।

एक दिन जब वे प्राधानाचार्य के कार्यालय से मुक्कालात करके बाहर आए तो इतने तैश में थे कि बाहर खड़े चपरासी को थप्पड़ मारकर उससे स्कूल का घंटा छीना और छुट्टी का घंटा बजा दिया। आप समझ सकते हैं कि छात्रों के एक वर्ग-विशेष में वे कितने लोकप्रिय हो गए होंगे। एक दफा जब वे सस्पेंड कर दिए गए थे तो स्कूल में आकर उन्होंने विशिष्ट सभा बुला डाली सिर्फ़ यह बताने के लिए कि सस्पेंशन में कितना सुख है। उन्होंने खुलासा किया कि बिल्कुल भी काम किए बिना उन्हें आधी तनख्वाह मिल जाती है और बाक़ी आधी तो समझो बचत है जो बाद में इकट्ठी मिल ही जायेगी। तब तलक वे अपनी भैंसों का दूध बेचने के धंधे पर बेहतर ध्यान दे पाएंगे।

बाद में पूरी तनख्वाह मिल जाने के बाद उन्होंने भैंस-सेवा का काम अपने गुर्गों को सौंपकर सरस्वती-सेवा में फ़िर से हाथ आज़माना शुरू किया। हाई-स्कूल की परीक्षा में ड्यूटी लगी तो एक छात्र ने उनसे शिकायत की, "सर वह कोने वाला लड़का पूरी किताबें रखकर नक़ल कर रहा है। "

डी पी ने शिकायत करने वाले लड़के से हिकारत से कहा, "उसने नामा खर्च किया है, इसलिए कर रहा है, तुम भी खर्चो तो तुम भी कर लेना।"

और उसी कक्ष में बैठे हुए हमने कहा, "गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु..."

15 comments:

  1. शिक्षक दिवस पर मैं अपने सभी शिक्षकों
    का पुण्य स्मरण करते हुए नमन करता हूँ |
    भगवान् उन सब को दीर्घजीवी बनाये | ताकि वह सब ज्ञान का
    प्रकाश दूर दूर तक पंहुचा सकें |

    ReplyDelete
  2. "गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु..."

    ReplyDelete
  3. वाह.....!
    क्या बात है...
    आये थे हरि-भजन को,
    ओटन लगे कपास।।
    बहुत बधाई!

    ReplyDelete
  4. काश हमें भी जौहरी सर मिले होते तो हम भी हीरा बन गये होते! :)

    ReplyDelete
  5. JAI HO GURUDEV JI KI ..... NAMAN HAI AISE GURUON KI .......

    ReplyDelete
  6. JAI HO GURUDEV JI KI ..... NAMAN HAI AISE GURUON KI .......

    ReplyDelete
  7. "गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु..." प्रणाम गुरुओं को.

    रामराम.

    ReplyDelete
  8. आपकी पोस्ट से हमें भी अपने कई (विचित्र) शिक्षक याद आये !

    ReplyDelete
  9. ाब तो सिर्फ अध्यापक रह गये हैं गुरू भी नहीं और शिश्य भी नहीं भगवान सब को सद्भुद्धी दे और क्या कह सकते हैं आभार्

    ReplyDelete
  10. इसके विपरीत मुझे अपने कस्बे के श्री पांडे याद आते हैं, जो अंगरेजी पढ़ाते थे. वे स्कूल-समय से एक घंटा पहले आ कर बोर्ड पर क्रिया के प्रजेंट, पास्ट और पास्ट पार्टसिपिल रूप लिखा करते थे ताकि विद्यार्थी नोट कर लें. उनसे कहीं भी कभी भी निःशुल्क कोचिंग ली जा सकती थी.

    ReplyDelete
  11. देखिये teacher और गुरु को एक समझने की भूल ना करें | एक गुरु का मुख्य उद्देश्य होता है अपने क्षात्रों का आध्यात्मिक विकास ... | आज के शिक्षकों का काम क्षत्रों का आध्यात्मिक विकास कराना है ही नहीं | क्योंकी ऐसा करना उनके syllabus मैं नहीं है | और कहीं गलती से teacher आध्यात्मिक विकास की बात करेगा तो उसको लेने के देने पड़ जायेंगे - सबसे पहले माता-पिता फिर शिक्षा के बड़े-बड़े विद्वान् पहले तो उसकी नौकरी खा जायेंगे फिर उनका जीना दूभर कर देंगे |

    इसलिए आपसे ये गुजारिश है की गुरु शब्द का प्रयोग शिक्षकों के लिए नहीं करें |

    ReplyDelete
  12. हमने भी एक से एक शिक्षक झेलें हैं.....आपका संस्मरण पढ़ उनकी याद आ गयी....वैसे जीवन में सद्गुरु भी मिले और उनके आचरण से यह समझ आया कि गुरु और शिक्षक(वेतनभोगी) में क्या भेद होता है..

    ReplyDelete
  13. गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
    गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।

    maafi chahti hun vyastata itni thi ki aahi nahi paayi..

    ReplyDelete
  14. असली गुरू तो वही हैं

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।