[अगले अंक में समाप्य]
लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये: भाग १; भाग २ एवं भाग ३ और अब, आगे की कहानी:
एक-एक करके सभी आगंतुक रवाना हो गए। लित्तू भाई सबके बाद घर से निकले। जाते समय गदा उनके हाथ में थी और एक अनोखी चमक उनकी आँखों में। वह अनोखी चमक मुझे अभी भी आश्चर्यचकित कर रही थी। चलते समय मुझसे नज़रें मिलीं तो वे कुछ सफाई देने जैसे अंदाज़ में कहने लगे, "फेंक दूंगा मैं, इसे मैं बाहर जाते ही फेंक दूंगा।"
उनके इस अंदाज़ पर मुझे हंसी आ गयी। मुझे हंसता देखकर वे उखड गए और। बोले, "शर्म नहीं आती, बड़ों पर हंसते हुए, नवीन (दद्दू) के भाई हो इसका लिहाज़ है वरना मुझ पर हंसने का अंजाम अच्छा नहीं होता है..."
माहौल में अचानक आये इस परिवर्तन ने मुझे हतप्रभ कर दिया। न तो मैंने लित्तू भाई से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा थी और न ही मेरी हँसी में कोई बुराई या तिरस्कार था। मैं तो कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि लित्तू भाई एक सहज नैसर्गिक मुस्कान से इस तरह विचलित हो सकते हैं। उनकी आयु का मान रखते हुए मैंने हाथ जोड़कर क्षमा माँगी और वे दरवाज़े को तेजी से मेरे मुँह पर बंद करके बडबडाते हुए निकल गए। शायद उस दिन उन्होंने ज़्यादा पी ली थी। तारीफों के पुल बाँधने के उनके उस दिन के तरीके से मुझे तो लगता है कि वे पहले से ही टुन्न होकर आये थे और बाद में समय गुजरने के साथ उनकी टुन्नता बढ़ कर अपने पूरे शबाब पर आ गयी थी।
खैर, बात आयी गयी हो गयी। पिट्सबर्ग छूट गया और पुराने साथी भी अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हो गए। बातचीत के सिलसिले कम हुए और फिर धीरे-धीरे टूट भी गए। सिर्फ दद्दू से संपर्क बना रहा। दद्दू की बेटी की शादी में मैं पिट्सबर्ग गया तो सोचा कि सभी पुराने चेहरे मिलेंगे। और यह हुआ भी। दद्दू के अनेकों सम्बन्धियों के साथ ही मेरे बहुत से पूर्व-परिचित भी मौजूद थे। एक दुसरे के बारे में जानने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर तभी ख़त्म हुआ जब हमने एक-दुसरे की जिंदगी के अब तक टूटे हुए सूत्रों को फिर से पूरा बिन लिया।
दद्दू और भाभी दोनों ही बड़े प्रसन्न थे। लड़के वालों का अपना व्यवसाय था। लड़का भी उनकी बेटी जैसा ही उच्च-शिक्षित और विनम्र था। इतना सुन्दर कि शादी के मंत्रों के दौरान जब पंडितजी ने वर में विष्णु के रूप को देखने की बात कही तो शायद ही किसी को कठिनाई हुई हो। शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई। शादी के इस पूरे कार्यक्रम के दौरान लित्तू भाई की अनुपस्थिति मुझे बहुत विचित्र लगी। शादी के बाद जब सब महमान चले गए तो मुझसे रहा नहीं गया। हम सब मिलकर घर को पुनर्व्यवस्थित कर रहे थे तब मैंने दद्दू से पूछा, "लित्तू भाई नज़र नहीं आये, क्या भारत में हैं?"
"नाम मत लो उस नामुराद का, मुझे नहीं पता कि जहन्नुम में है या जेल में" यह कहते हुए दद्दू ने हाथ में पकड़े हुए चादर के सिरे को ऐसे झटका मानो लित्तू भाई का नाम सुनने भर से उन्हें बिजली का झटका लगा हो।
भाभी उसी समय हम दोनों के लिए चाय लाकर कमरे में घुसी ही थीं। उन्होंने दद्दू की बात सुनी तो धीरज से बोलीं, "मैं बताती हूँ क्या हुआ था।"
और उसके बाद भाभी ने जो कुछ बताया उस पर विश्वास करना मुश्किल था।
[क्रमशः]
इन्तजार है कि भाभी जी ने क्या बताया..जारी रहिये.
ReplyDeleteलित्तू भाई की फ़िक्र लग गई, क्यो हमे फ़िक्र मै डाल कर अगली कडी तक छोड देते है भाई, अब भगवान ही मालिक लित्तू भाई का.
ReplyDeleteलित्तू भाई का दूसरा रूप देखने को मिलेगा ! ऐसा क्या कर दिया उन्होंने ?
ReplyDeleteलीतू भाइ के बारे मे बडी उत्सुकता बन गई है.
ReplyDeleteरामराम.
कहानी तो बहुत रोचक लग रही है।
ReplyDeleteअगली कड़ी का इन्तजार है!
रोचकता बरकरार, मगर चिंता भी....
ReplyDeleteइन्ट्रैस्टिंग.... वाह.. आगे बढ़ें...
ReplyDeleteक्या बताया जी भाभीजी ने?
ReplyDeleteफिर वही......रसभंग का क्षोभ........कृपया शीघ्रातिशीघ्र बाकी कथा पोस्ट करें...
ReplyDeletekaI din baad aane se fir peeche jaanaa paDaa bahut rocak kahaanee hai agalee kadee kaa intazaar rahegaa aabhaar
ReplyDeleteकहानी रोचक मोड़ पर है.मुझे डर है कि अगली पोस्ट लित्तू भाई की जगह पिट्सबर्ग में पधारे हमारे प्रधानमंत्रीजी न ले लें.
ReplyDeleteभैया, लोग रसभंग(तकनीकी रूप में न लें, विराम से शिकायत है) की बात कर रहे हैं।
ReplyDeleteमैं तो नहीं कर सकता। खुद ही ऐसी हरकत करता रहता हूँ। लेकिन जल्दी से पूरी कीजिए न।
अब रहस्य की अंतिम कडी से पर्दा उठना ही चाहिए नहीं तो दर्शक बब्बन खां के अदरक के पंजे देखने चले जाएगें।
ReplyDeleteकाफी देर से आया हूँ, क्षमा चाहूँगा | पर अगले भाग का इन्तजार रहेगा ...
ReplyDeleteab to dipavli bhi aane vali hai littu bhai ko le hi aaiye .
ReplyDeleteabhar