Tuesday, September 8, 2009
लित्तू भाई - कहानी [भाग ३]
लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये: भाग १ एवं भाग २ और अब, आगे की कहानी:
एक एक करके दिन बीते और युवा शिविर का समय नज़दीक आया। सब कुछ कार्यक्रम भली-भांति निबट गए। लित्तू भाई का गतका कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय रहा। अलबत्ता आयोजकों ने विजेताओं को पुरस्कार के रूप में एक भारी गदा के बजाय हनुमान जी की छोटी-छोटी मूर्तियाँ देने की बात तय की। शिविर पूरा होने पर बचे सामानों के साथ लित्तू भाई की भारी भरकम गदा भी हमारे साथ पिट्सबर्ग वापस आ गयी और मेरे अपार्टमेन्ट के एक कोने की शोभा बढाती रही। न तो लित्तू भाई ने उसके बारे में पूछा और न ही मैंने उसका कोई ज़िक्र किया।
समय के साथ मैं भी काम में व्यस्त हो गया और लित्तू भाई से मिलने की आवृत्ति काफी कम हो गयी। उसके बाद तो जैसे समय को पंख लग गए। जब मुझे न्यू यार्क में नौकरी मिली तो मेरा भी पिट्सबर्ग छोड़ने का समय आया। जाने से पहले मैंने सभी परिचितों से मिलना शुरू किया। इसी क्रम में एक दिन लित्तू भाई को भी खाने पर अपने घर बुलाया। एकाध और दोस्त भी मौजूद थे। खाने के बाद लित्तू भाई थोडा भावुक हो गए। उन्होंने अपनी दो चार रोंदू कवितायें सुना डालीं जो कि मेरे मित्रों को बहुत पसंद आयीं। कविता से हुई तारीफ़ सुनकर उन्होंने मेरे सम्मान में एक छोटा सा विदाई भाषण ही दे डाला।
दस मिनट के भाषण में उन्होंने मुझमें ऐसी-ऐसी खूबियाँ गिना डाली जिनके बारे में मैं अब तक ख़ुद ही अनजान था। लित्तू भाई की तारीफ़ की सूची में से कुछ बातें तो बहुत मामूली थीं और उनमें से भी बहुत सी तो सिर्फ़ संयोगवश ही हो गयी थीं। प्रशंसा की शर्मिंदगी तो थी मगर छोटी-छोटी सी बातों को भी ध्यान से देखने के उनके अंदाज़ ने एक बार फिर मुझे कायल कर दिया।
चलने से पहले मुझे ध्यान आया कि कोने की मेज़ पर सजी हुई लित्तू भाई की गदा उनको लौटा दूँ। उन्होंने थोड़ी नानुकर के बाद उसे ले लिया। हाथ में उठाकर इधर-उधर घुमाया, और बोले, "आप ही रख लो।"
"अरे, आपने इतनी मेहनत से बनाई है, ले जाइए।"
"मेरे ख्याल से इसे फैंक देना चाहिए, इसके रंग में ज़रूर सीसा मिला होगा... स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।"
चीन से आए रंग तो क्या, खाद्य पदार्थों में भी सीसा और अन्य ज़हरीले पदार्थ होते हैं, यह तथ्य तब तक जग-ज़ाहिर हो चुका था। बहुत सी दुकानों ने चीनी खिलौने, टूथ पेस्ट, कपडे आदि तक बेचना बंद कर दिया था। मुझे यह समझ में नहीं आया कि लित्तू भाई कब से स्वास्थ्य के प्रति इतने सचेत हो गए। मगर मैंने कोई प्रतिवाद किए बिना कहा, "आपकी अमानत आपको मुबारक, अब चाहे ड्राइंग रूम में सजाएँ, चाहे डंपस्टर में फेंके।"
लित्तू भाई ने कहा, "चलो मैं फेंक ही देता हूँ।"
उन्होंने अपनी जेब से रुमाल निकाला और बड़ी नजाकत से गदा की धूल साफ़ करने लगे। मुझे समझ नहीं आया कि जब फेंकना ही है तो उसे इतना साफ़ करने की क्या ज़रूरत है। मैंने देखा कि गदा चमकाते समय उनके चेहरे पर एक बड़ी अजीब सी मुस्कान तैरने लगी थी।
[क्रमशः]
[गदा का चित्र अनुराग शर्मा द्वारा: Photo by Anurag Sharma]
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अपने अपनी अन्य कहानियों के लिंक देकर
ReplyDeleteअच्छा किया है
और हम
लित्तू भाई की
रहस्यमयी मुस्कराहट पे अटके हैं :)
रोचक ....आगे क्या हुआ ?
- लावण्या
आज फ़िर अटक गये. मगर रोचकता बरकरार है, जब तक अगला मंज़र सामने नहीं आता तब तक करार नहीं....
ReplyDeleteधन्यवाद!!!
आपकी फ़रमाईश का कोई गीत?
कहानी बेहद रोचक है!!! अब तो इसके आगामी भाग की प्रतिक्षा रहेगी!!!!!!
ReplyDeleteलित्तू भाई के व्यक्ति शब्द चित्र से पहले अंक से ही जुडा मगर फिर व्यतिक्रम हो गया ! आज फिर छूटा छोर पकड़ रहा हूँ !
ReplyDeleteलित्तू भाई अच्छे लगे आगे की कहानी का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteलितू भाई के अगले कदम का इंतजार है.
ReplyDeleteरामराम.
"उन्होंने अपनी जेब से रुमाल निकाला और बड़ी नजाकत से गदा की धूल साफ़ करने लगे। मुझे समझ नहीं आया कि जब फेंकना ही है तो उसे इतना साफ़ करने की क्या ज़रूरत है। मैंने देखा कि गदा चमकाते समय उनके चेहरे पर एक बड़ी अजीब सी मुस्कान तैरने लगी थी।"
ReplyDeleteकथा अच्छी चल रही है।
अगली कड़ी का इन्तजार है।
बधाई!
रोचक चर्चा चल रही है। इसे जारी रखें।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छी कहानी कहूं या अच्छा संस्मरण ? जो भी हो... अच्छा है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी यह कहानी,लेकिन लितू भाई फ़ेंको मत, हमे दे दो, पोस्ट का खर्च भी हम दे गे, अरे ऎसी चीजो मे अपना पन मिलता है भाई, मेने तो मसाला पीसने का सिलबट्टा भी घर मै रखा है कभी कभी उस पर चटनी पीसते है
ReplyDeleteचलिये अगली कडी की इंतजार है जी
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteरोचक ....आगे ?
ReplyDeleteबहुत रोचक कहानी है। अब तो और किसी के इन्तज़ार की गुंजाईश ही नहीम रही बस लितू का ही इन्तज़ार है आभार्
ReplyDeleteआपका संस्मरण बहुत रोचक है......पाठक बंध गए हैं जी....अब आगे क्या ?
ReplyDeleteइतनी रोचक कहानी अबतक मै ऑनलाइन पे नही पढ़ा था। काफी रोचक बनाया है आपने इस कहानी को, इसके लिए धन्यबाद।
ReplyDeleteअनुराग जी बहुत सुन्दर और रोचक कहानी चल रही है |
ReplyDeleteलित्तू भाई की रहस्यमयी मुस्कराहट का राज ... तो अभी राज ही रह गया...........
अगले भाग का इन्तजार है |
Agli post ka intzaar hai.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
बहुत ही रोचक कथा आपकी शैली ने बँधकर रखा है अक साथ तीनो भाग पढ़ने मे ज़्यादा आनन्द आया
ReplyDeleteबेसब्री से अगले अंक का इंतजार है .आपने खियो का लिंक देकर अच्छा किया है .धन्यवाद