(अनुराग शर्मा)
बंदूकों से
उगलते हैं मौत
और जहर
रचनाओं से
जैसे कि जहर और
गोली में बुद्धि होती हो
अपने-पराये का
अंतर समझने की
खुशी से उछल रहे हैं कि
दुश्मनों के खात्मे के बाद
समेट लेंगे उनकी
सारी पूंजी
और दुनिया उनकी
मेहनत से बनी
गिराकर सारे बुत
बताएंगे खुद को खुदा
और बैठकर पिएंगे चुरुट
चलाएँगे हुक्म
समझते नहीं कि जहर
अपने फिरके आप बनाता है
बंदूक की नाल
खुद पर तन जाती है
जब सामने दुश्मन का
कोई चिह्न नहीं बचता
क्यूबा के कम्युनिस्ट राजवंश का प्रथम तानाशाह |
उगलते हैं मौत
और जहर
रचनाओं से
जैसे कि जहर और
गोली में बुद्धि होती हो
अपने-पराये का
अंतर समझने की
खुशी से उछल रहे हैं कि
दुश्मनों के खात्मे के बाद
समेट लेंगे उनकी
सारी पूंजी
और दुनिया उनकी
मेहनत से बनी
गिराकर सारे बुत
बताएंगे खुद को खुदा
और बैठकर पिएंगे चुरुट
चलाएँगे हुक्म
समझते नहीं कि जहर
अपने फिरके आप बनाता है
बंदूक की नाल
खुद पर तन जाती है
जब सामने दुश्मन का
कोई चिह्न नहीं बचता
समाचार: अहिंसा का प्रवर्तक भारत झेलता है सर्वाधिक विस्फ़ोट, जेहाद, माओवाद के निशाने पर
कुंद हो जाती है समझ
ReplyDeleteदेख कर आज के
समझदार और
उनकी समझदारी
बहुत सुन्दर ।
बंदूक की नाल
ReplyDeleteखुद पर तन जाती है
जब सामने दुश्मन का
कोई चिह्न नहीं बचता>.>
बहुत खूब अनुराग जी ---
व्यतिगत सन्देश
ReplyDeleteअनुराग जी मै आपका एक परिचित मित्र हूँ
बहुत पहले आपने एक बार मेरी काउंसलिंग की थी :-) मेरा पूरा नाम है अभयसिंह सोलंकी
कृप्प्या एक बार काल करे आभारी रहूँगा -- 08458844770 par
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2600 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद!
Deleteबंदूक की नाल जब दूसरों पर तनी हो तब भी अपनी ही आत्मा का हनन होता है, हिंसा से आज तक कहीं भी कोई स्थायी बदलाव नहीं आया. प्रभावशाली रचना..
ReplyDeleteसत्य की अभिव्यक्ति है ... बहुत स्पष्टता के साथ बात रखती हुयी ...
ReplyDeleteगोली जब चलती है सर नहीं देखती ... कभी न कभी तो अपना सर भी बीच में आ जाता है ...
धन्यवाद!
ReplyDeleteलेकिन ये बात उन्हें कौन समझा सकता है -जड़मति के आगे ब्रह्मा भी विवश हैं.जहाँ विचार वर्जित हों वहाँ अक्ल नहीं चलती .
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक और बेहतरीन लेख ..... ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteBhavpurna rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सृजन का हुनर न सीखा न सिखाया किसी ने,
ReplyDeleteविध्वंस की ख़ुशी के अतिरिक्त और क्या बचता है इनके जिंदगी में !
साथॆक प्रस्तुतिकरण......
ReplyDeleteमेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....
बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....