Wednesday, December 28, 2011

सनातन धर्म खतरे में कभी नहीं था - धंधा खतरे में रहा होगा

इस्कॉन की "भग्वद्गीता यथारूप"
साइबेरिया (रूस) के तोमस्क के नगर न्यायालय ने इस्कॉन के संस्थापक एसी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद कृत भगवद्गीता की व्याख्या "भगवद्गीता जस की तस" (भग्वदगीता ऐज़ इट इज़) के रूसी अनुवाद को अतिवादी भावनाएँ भड़काने वाला ग्रंथ मानने के स्थानीय अभियोजक के अनुरोध को निरस्त कर दिया।

स्वामी प्रभुपाद की पुस्तक पर पाबंदी लगाने का यह मामला विगत जून 2011 से साइबेरिया के तोमस्क की अदालत में लम्बित था जिसमें तोमस्क नगर के अभियोजन विभाग ने स्थानीय अदालत से तोम्स्क स्थित ISKCON (इस्कॉन = अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज) की धार्मिक गतिविधियों की जाँच कराने का अनुरोध किया था। इस्कॉन स्वामी प्रभुपाद द्वारा की गयी भगवद्गीता की टीका में बताई गई वैष्णव शिक्षाओं का प्रचार करता है।

रूस के बहुत से नागरिकों ने खुलकर इस मुक़दमे को रूस में रहने वाले हिन्दुओं के अधिकारों का उल्लंघन माना। रूस के हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायियों ने भी इस मुक़दमे के बारे में अपनी नाराज़गी और रोष प्रकट किया था।
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः। मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।18।।
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्। क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।19।।
(श्रीमद्भग्वद्गीता, अध्याय 16)

अहंकार, बल, घमण्ड, कामना और क्रोध के परायण और दूसरों की निन्दा करने वाले व्यक्ति अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ अन्तर्यामी से द्वेष करने वाले हैं। ऐसे द्वेषी, पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में डालता हूँ। (योगेश्वर कृष्ण)
जहाँ मैं इस फैसले से बहुत प्रसन्न हूँ, वहीं इस मामले ने भारत में हो रहे एक परिवर्तन को उजागर किया है जिस पर हर जागरूक भारतीय, विशेषकर हिन्दू को ध्यान देने की आवश्यकता है। इस्कॉन व कृष्णभक्तों की प्रशंसा करनी चाहिये क्योंकि उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम में असीमित संयम का परिचय दिया। उनके विपरीत इस मुकदमे की खबर मिलते ही कुछ तथाकथित हिन्दुओं ने इस घटनाक्रम को इंटरनैट पर ऐसे प्रस्तुत किया मानो रूस में गीता पर प्रतिबन्ध लग गया है जो कि सरासर झूठ था। मज़े की बात यह है कि ऐसा प्रचार करने वाले बहुत से लोगों ने ज़िन्दगी में कभी गीता की न तो एक प्रति खरीदी होगी न कभी गीता उठाकर पढी होगी। क्योंकि गीता को पढने, समझने वाला बात को जाने बिना असंतोष भड़काने का माध्यम नहीं बनेगा। धार्मिक मामलों को समझे बिना ऐसे अधार्मिक लोगों की बेचैनी मैं बिल्कुल नहीं समझ पाता हूँ।

भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक परम्परा वीरता के साथ-साथ ज्ञान, संयम और सहिष्णुता की भी है। याद रहे कि हिंदुत्व के पालन और रक्षा के लिए उग्र, सांप्रदायिक, या हिंसक होना किसी भी रूप में आवश्यक नहीं है। धैर्य और उदारता पर आधारित जो सभ्यता अनंत काल से अनवरत आक्रमणों और आघातों के बावजूद सनातन चलती रही है उसे अपनी रक्षा के लिए अधैर्य की कोई आवश्यकता भी नहीं है। खतरे में होंगे कोई और धर्म, पंथ, मज़हब या राजनीतिक विचारधाराएँ; मेरा निर्भय धर्म कभी खतरे में नहीं था, न कभी होगा। गीता के नाम पर चला मुकदमा तो अपनी परिणति को प्राप्त हुआ, अब इस पर असंतोष भड़काने वाले वाक्य या आलेख लिखने वाले हर व्यक्ति का इतना फर्ज़ बनता है कि वह भगवान कृष्ण की गीता की या कम से कम स्वामी प्रभुपाद की "भगवद्गीता जस की तस" की एक प्रति अपने पैसे से खरीदकर पढ़ें, समझें और धर्म के कार्य में अपनी निष्ठा दृढ करे। जो लोग पहले से ही गीता एवम अन्य सद्ग्रंथ पढकर उन्हें अपने जीवन में यथासम्भव अपनाकर अपने को बेहतर व्यक्ति बनाने का सतत प्रयत्न करते रहे हैं, वे सात्विक व्यक्ति वाकई आदर के पात्र हैं।


शुभ समाचार का विडियो
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* रूस में भगवदगीता पर पाबंदी की अर्जी खारिज
* ग्रंथों की महानता याद दिला दी रशिया ने

39 comments:

  1. धर्म को धंधा बनाना सबसे आसान है !

    कोई भी सच्चा और मानवीय धर्म इस तरह की घटनाओं से अप्रभावित रहता है !

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  2. लेकिन भारत में शरई अदालतों की स्थापना की मांग?

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  3. @लेकिन भारत में शरई अदालतों की स्थापना की मांग?
    मैं उसके विपक्ष में हूँ। भारत एक गणतंत्र है और उसमें एक स्थापित और सक्षम न्याय व्यवस्था है जो अपने नागरिकों की सेवा कर रही है। हाँ लम्बित मुकदमों और न्याय-व्यवस्था में विशेषज्ञों की कमी यथाशीघ्र दूर की जानी चाहिये ताकि नागरिकों को त्वरित न्याय मिले।

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  4. आपकी पोस्ट से अक्षरश: सहमत।

    वैसे स्वामी प्रभुपाद की टीकायें मुझे नहीं रुचतीं, उनमें द्वैत वाद कूट कूट कर भरा होता है! :-)

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  5. पांडेय जी,

    मेरे लिये अच्छा है कि मैं द्वैत-अद्वैत के अंतरों के बारे में निपट अज्ञानी रहना चाहता हूँ। वैसे गीता के बहुत से संस्करण केवल तुलनात्मक अध्ययन के लिये खरीदे, पाये, और पढे हैं।

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  6. अनुराग जी, एक बात तो है, मेरे ख्याल से ये हल्ला होना भी जरूरी था ... कुछ दबाव समूह तो बनना हे चाहिए न.

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  7. ho halla jaruri thaa ...???

    jai baba banaras...

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  8. मनुष्य विवेकशील प्राणी है....! गीता मानस की हितैषी है.
    धर्म: मतिव्य उद्धरिता:

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  9. आपसे पूर्णतः सहमत. वीडिओ के लिए आभार.

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  10. सहमत हूँ आपकी पोस्ट और आपकी टिपण्णी @भारतीय नागरिक की टिपण्णी पर ..
    नए साल की बहुत बहुत मुबारक ... २०१० इन्ही दिनों में हुयी आपसे मुलाक़ात याद आ गई ...

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  11. खूब खबर ली है देसी दिखावटी विद्वानों की ...
    नेक सलाह ....
    शुभ समाचार !

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  12. अफवाह के धंधेबाजों द्वारा बात को बढ़ाचढ़ा कर भावनाओं का दोहन किया जाता है,इसमें सावधान रहना तो आवश्यक है ही।

    आपने सही कहा, "सनातन धर्म खतरे में कभी नहीं था" खतरे में पडते है वे धंधे जो इसी आधार पर चलाए जाते है।

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  13. और वो धर्म ही क्या जो अपनी क्रिटिसिज्म न झेल सके !
    सुन्दर प्रस्तुति, आपको नव-वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाये !

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  14. अंत में सद्बुद्धि की ही जीत हुई ।

    विदेशों में इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं । धर्म के नाम पर धैर्य और सहिष्णुता की ज़रुरत हमेशा रहती है ।

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  15. दुनिया की किसी भी भाषा में लिखे गए सर्वश्रेषठ दर्शन ग्रंथों में से है,गीता और उपनिषद।
    जहाँ गीता मोक्ष के भक्ति मार्ग को दिखाती है,वहीं उपनिषद परम सत्य के ज्ञान मार्ग के प्रतिनिधि
    हैं।शुक्र है मुक़दमे का पटाक्षेप,सत्य की एक और जय का प्रतीक बना।

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  16. सनातन धर्म खतरे में कभी नहीं था इस कथन से सहमत !

    मुझे लगता है कि सारी दुनिया में पैर पसारने को व्याकुल चर्च / आतुर मिशनरी अपने ही घर में कृष्ण मार्गियों की घुसपैठ से बिलबिला उठे थे अन्यथा कोई कारण ना था कि वो गीता की व्याख्या के अनूदित संस्करण को अतिवाद भड़काने वाला ग्रंथ कहते !

    ...पर इस मसले में मुझे एक बड़ा ही सकारात्मक पक्ष दिखाई दिया , वह यह कि उभय पक्ष ( बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक ) समस्या को कानून से बाहर , बलपूर्वक हल करते हुए दिखाई नहीं दिए !

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  17. मैंने तो पहले भी कहा था और आज भी वही कह रहा हूँ कि भगवद्गीता का विरोध हिंसा के नाम पर वह राष्ट्र करे जिसकी विश्व को देन है, ऑटोमैटिक क्लाशनिकोव-47/56.
    वैसे मेरे कुछ कटु अनुभव (व्यक्तिगत- न कि सुने सुनाये) भी रहे हैं जिनका उल्लेख यहाँ उचित न होगा!!

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  18. सनातन धर्म तो सनातन है ही, इसको कौन मिटा सकेगा... दुनिया के अन्य धर्मों की आंधी इसे क्या मिटा सकेगी... हां, हमें अंधविश्वास और ढ्कोसलों से बचे रहना होगा॥

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  19. "धैर्य और उदारता पर आधारित जो सभ्यता अनंत काल से अनवरत आक्रमणों और आघातों के बावजूद सनातन चलती रही है उसे अपनी रक्षा के लिए अधैर्य की कोई आवश्यकता भी नहीं है। खतरे में होंगे कोई और धर्म, मेरा निर्भय धर्म कभी खतरे में नहीं था, न कभी होगा।" - पुर्णतः सहमत.

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  20. भारत में एक तबके को लेकर जो राजनीति की जा रही है वह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. देखिये कब तक संस्थाएं बची रहती हैं.

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  21. सचमुच यह कोढ़ मगजता की हद थी -गीता में प्रतिबंधित होने लायक कुछ है ही नहीं ...कुछ लोग ऐसे ही ईशनिंदा की बातों को भड़काते हैं -जबकि गीता तो कोई ईश -आख्यान/वाणी भी नहीं है -कुरान की तरह!

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  22. बिलकुल सही बात है!

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  23. @इस मुकदमे की खबर मिलते ही कुछ तथाकथित हिन्दुओं ने इस घटनाक्रम को इंटरनैट पर ऐसे प्रस्तुत किया मानो रूस में गीता पर प्रतिबन्ध लग गया है जो कि सरासर झूठ था। मज़े की बात यह है कि ऐसा प्रचार करने वाले बहुत से लोगों ने ज़िन्दगी में कभी गीता की न तो एक प्रति खरीदी होगी न कभी गीता उठाकर पढी होगी।

    अक्षरशः सही कहते हैं आप, अंग्रेजी में जैसे कहते हैं, "you nailed it."
    रोज सुन रहा हूँ ऑफिस कैंटीन में लोगों को, ऐसे लोगों को जिन्हें संभवतः ये भी नहीं पता कि गीता है क्या? किसने कहीं, किससे कही। पढने जानने की तो बात ही नहीं करते हैं।

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  24. बहुत ही सही लिखा आप ने ..सनातन धर्म खतरे में कभी नहीं था,न ही होगा,अच्छी जानकारी दी शुक्रिया..पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ,काफी कुछ ऐसा है जो पढने का मन है आना जाना लगा रहेगा,नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ......:) :)

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  25. श्रीमद्भगवद्गीता हमारे देश के अधिकाँश महापुरुषों जैसे बाल गंगाधर तिलक,महात्मा गंदी,महाऋषि अरविंदो,डॉ.राधाकृष्णनन आदि आदि की आधार ग्रन्थ रही है.

    श्रीमद्भगवद्गीता को समझने की हम सभी को ईमानदारी से कोशिश करनी चाहिये.यह ग्रन्थ
    मनोविज्ञान और अध्यात्म का सुन्दर विश्लेषण
    करता है.

    आपके कथन से मैं सहमत हूँ कि सनातन धर्म कभी भी खतरे में नही हो सकता.

    नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  26. अवंति सिंह जी, आप के आने से इस ब्लॉग के शुभाकांक्षिओं की संख्या 300 हो गयी है, आभार।

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  27. धर्म तो कभी भी खतरे में नहीं रहा, न रहता है और न ही कभी रहेगा। बस, केवल धन्‍धा ही खतरे में था, खतरे में है और सदैव खतरे में रहेगा।

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  28. गीता ही एकमात्र ऐसा धर्मग्रन्थ है जिसे पूरे विश्व में विभिन्न मतों के लोग भी अपना चश्मा लगाकर पढ़कर , अपने लिए उपयोगी ज्ञान ले लेते हैं . और जितनी टीका गीता पर लिखी गयी है उतनी किसी भी ग्रन्थ पर नहीं . फिर भी बबाल क्यूँ..?

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  29. @ अमृता तन्मय जी:
    इसीलिये तो बवाल है। फ़लदार वृक्षों पर ही पत्थर बरसाये जाते हैं।

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  30. गंदी को 'गाँधी' पढियेगा,प्लीज

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  31. बिलकुल सही लिखा आपने . धन्धा करने वालो ने धर्म का नुकसान ज्यादा किया है

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  32. chachu......is bhavon se jure hone ke karan, suni-sunai baton se dukh-
    akrosh ho raha tha.......lekin, apke
    is post ne bahut 'shanti'pradan ki
    hai.......

    @फ़लदार वृक्षों पर ही पत्थर बरसाये जाते हैं।......
    bawal tip hai hamnamji.........

    pranam.

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  33. गीता पढ़ने वाले इस तथ्य से अधिक विचलित नहीं होंगे, गीता के उपदेश सब पर लागू होते हैं, सब पर।

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  34. गीता मनुष्य का सार्वकालिक मनोविज्ञान है।

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  35. नव-वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएं!!!

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  36. सत्य वचन! स्वामी अनुराग जी ! सार्वभौमिक सत्य के लिए मनुष्य को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं......हाँ ! लौकिक सत्य की रक्षा करना अवश्य ही हमारा उत्तरदायित्व है.
    अनुराग जी ! इस प्रकरण से हमें एक सीख यह भी मिली कि संवेदनशील मुद्दों पर न्यायालयों को भी संवेदनशील होना चाहिए.
    काश ! अयोध्या प्रकरण भी रूसी अदालत गया होता तो अब तक निपटारा हो गया होता.
    जहाँ तक शरीयत क़ानून की बात है.....धीरज रखिये..... वह भी लागू होगा ...अवश्य होगा, भारत में उसकी सख्त ज़रुरत है .....सिर्फ लोकपाल बिल लागू नहीं होगा ...उसकी ज़रुरत ही नहीं है.

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  37. बहुत ही सही लिखा आप ने

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  38. धर्म तो कभी खतरे में नहीं था , और जो था - वो था लोगों की श्रद्धा - भावना के सहारे लोगों को लूटने वाले व्यापारियों का धंधा, और सच तो ये भी है की इसका भी राजनीतिकरण हो चुका है ?

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