Friday, January 11, 2019

दोस्त - द्विपदी

- अनुराग शर्मा


अपने नसीब में नहीं क्यों दोस्ती का नूर।
मिलते नहीं क्यों रहते हो इतने दूर-दूर॥

समझा था मुझे कोई न पहचान सकेगा।
यह होता कैसे दोस्त मेरे हैं बड़े मशहूर

सोचा था मुलाक़ात होगी दोस्तों के साथ।
मसरूफ़ रहे वर्ना मिलने आते वे ज़रूर॥

हम चाहते थे चार पल दोस्तों के साथ।
वह भी न हुआ दोस्त मेरे हो गये मगरूर॥

सोचा था बचपने के फिर साथी मिलेंगे।
ये हो न सका दोस्त मेरे हैं खट्टे अंगूर॥

दो पल न बिताये न जिलायी पुरानी याद।
तिनका था मैं,  दोस्त मेरे थे सभी खजूर॥

5 comments:

  1. दोस्त भी कहते हैं और इतनी शिकायते भी करते हैं...
    उन्होंने दोस्ती ही तो की थी
    और भला क्या था उनका कसूर !
    सुंदर प्रस्तुति !

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  2. ब्लॉगिंग से मिले नए दोस्त, हैं बड़े मशहूर.
    अनुराग शर्मा नाम है, कभी मिलेंगे ज़रूर.

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  3. दोस्ती के अलग अलग रूप ... बहुत मस्त काफिये जोड़े हैं ...

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