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Thursday, March 17, 2011

नव शारदा - रंग ही रंग - शुभकामनायें!

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हर ओर उल्लास है। लकडियाँ इकट्ठी कर के आग लगायी गयी है। अबाल-वृद्ध सभी त्योहार के जोश में हैं। क्यों न हो। सन 2005 से वे अपना पर्व मनाने को स्वतंत्र हैं। तुर्की ने आखिर सन 2005 में कुर्द समुदाय को अपना परम्परागत उत्सव नव शारदा मनाने की छूट दे ही दी। भारत में पारसी, बहाई, शिया और कश्मीरी पण्डित (नवरेह के नाम से) तो यह त्योहार न जाने कब से मनाते आ रहे हैं। परंतु यह पर्व भारत के बाहर भी दूर-दूर तक मनाया जाता है। ईरान में अयातुल्लह खोमेनी की इस्लामी सरकार आने के बाद लेखकों कलाकारों की मौत के फतवे तो ज़ारी हुए ही थे, साथ ही ईरानियों के प्रमुख त्योहार नवरोज़ को भी काफिर बताकर प्रतिबन्धित कर दिया गया था। ठीक यही काम अफगानिस्तान में तालेबान ने किया। परंतु मानव की उत्सवप्रियता को क्या कभी रोका जा सका है? दोनों ही देशों की जनता हारी नहीं। पर्व उसी धूमधाम से मनता है।

जी हाँ, परम्परागत ईरानी नववर्ष नव शारदा का वर्तमान नाम नौरोज़, नवरोज़ और न्यूरोज़ है। पारसी परम्पराओं में इस नवरोज़ को जमशेदी नौरोज़ भी कहते हैं। क्योंकि यह उत्सव यमदेव/जमशेद के सम्मान में है। ईरानी जनता को मृत्यु की ठिठुरन से बचाने के बाद जब वे अपने रत्न-जटित सिंहासन समेत स्वर्गारूढ हो गये तब उनके लिये प्रसन्न होकर लोगों ने इस पर्व की शुरूआत की। इस साल यह पर्व 20 मार्च 2011 को पड रहा है।

20 मार्च को ही एक और त्योहार भी है "पूरिम" जिसमें नौरोज़ की तरह पक्वान्नों पर तो ज़ोर है ही साथ ही सुरापान की भी मान्यता है। यहूदियों के इस पर्व में खलनायक हमन के पुतले को सामूहिक रूप से आग लगाई जाती है, पोस्त की मिठाइयाँ बनती हैं और नाच गाना होता है।

22 मार्च को भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग "शक शालिवाहन" सम्वत का आरम्भ भी होता है। इस नाते यह भारत का राष्ट्रीय नववर्ष हुआ, शक संवत 1933 की शुभकामनायें!

और अपनी होली के बारे में क्या कहूँ? दीवाली का प्रकाश तो यहाँ भी वैसा ही लगता है मगर होली की मस्ती के रंग फीके ही लगते हैं।

आप सभी को होली की मंगलकामनायें!