बीता हर पल ही अपना था
विरह-वेदना में तपना था
क्या रिश्ता है समझ न पाया
आज पराया कल अपना था
हुई उषा तो टूटा पल में
भोर का मीठा सा सपना था
रुसवाई की हुई इंतहा
नाम हमारा ही छपना था
सजी चिता तपती प्रेमाग्नि
जीवन अपना यूँ खपना था
बैरागी हों या अनुरागी
नाम तुम्हारा ही जपना था
(अनुराग शर्मा)
विरह-वेदना में तपना था
क्या रिश्ता है समझ न पाया
आज पराया कल अपना था
हुई उषा तो टूटा पल में
भोर का मीठा सा सपना था
रुसवाई की हुई इंतहा
नाम हमारा ही छपना था
सजी चिता तपती प्रेमाग्नि
जीवन अपना यूँ खपना था
बैरागी हों या अनुरागी
नाम तुम्हारा ही जपना था
(अनुराग शर्मा)