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Monday, November 14, 2011

क्रोध कमज़ोरी है, मन्यु शक्ति है - सारांश

ग्रंथों में काम, क्रोध, लोभ, मोह नामक चार प्रमुख पाप चिह्नित किये गये हैं। क्रोध का दुर्गुण असहायता, कमजोरी और कायरता का लक्षण है। पिछली प्रविष्टियों: 1. क्रोध पाप का मूल है एवम् 2. मन्युरसि मन्युं मयि देहि के बाद आइये कुछ ऐतिहासिक उदाहरणों में मन्यु को पहचानने का प्रयास करें।
अब आगे:

भक्त प्रह्लाद के रक्षक नृसिंह भगवान
गुरु तेगबहादुर जी के समय के सिख भाई कन्हैया जी जब गुरु गोविन्द सिंह के दर्शन करने आनंदपुर साहब आये उसी समय मुग़लों के पहाड़ी क्षत्रपों ने सिखों पर हमला कर दिया। सिख अपने शस्त्र लेकर मुकाबला करने लगे परंतु भाई कन्हैया जी पानी से भरी मशक लेकर युद्धरत व घायल सैनिकों की प्यास बुझाने लगे। बाद में कुछ सैनिकों ने गुरुजी से उनकी शिकायत की कि वे मुग़ल सैनिकों को भी बराबरी से पानी पिला रहे थे। गुरुजी ने सबके सामने उनसे वार्ता की। भाई कन्हैया जी ने स्वीकार करते हुए कहा कि उन्हें तो हर व्यक्ति में परमात्मा दिखता है सो वे सिख, मुग़ल का भेद किये बिना सबको जल पिला देते हैं। कहते हैं कि गुरुजी ने उनके सेवाभाव और समदृष्टि का सम्मान करते हुए उन्हें घायलों की शुश्रूषा के लिये औषधि भी प्रदान की। सेवापंथी के संस्थापक भाई कन्हैया जी ने युद्धभूमि में भी अपना पराया भूलकर सेवाकार्य कर सकने की उदात्त प्रवृत्ति का जीता जागता ऐतिहासिक उदाहरण हमारे सामने रखा है।
कई लोग सोचते हैं कि धैर्य कमज़ोरी का चिह्न है। मेरी दृष्टि में यह सोच ग़लत है। क्रोध कमज़ोरी का चिह्न है जबकि धैर्य बलवान का लक्षण है। ~ महामहिम दलाई लामा

भगवान की गदा और निर्भय बच्चे
एक देवासुर संग्राम से विजयी होकर लौटे सेनापति के स्वागत समारोह में जब इन्द्र ने उन्हें अपना पुरस्कार स्वयं चुनने को कहा तब उन्होंने पुरस्कार में एक जिज्ञासा के समाधान के लिये प्रश्न पूछा कि यदि देव समदृष्टा हैं तो फिर उनका असुरों से हिंसक संघर्ष क्यों होता है? इन्द्र का उत्तर था कि आसुरी हिंसा का प्रतिकार करके देव संसार में अन्याय फैलने से रोकते हैं परंतु उन्हें किसी असुर-विशेष से कोई द्वेष नहीं है, किसी असुर पर क्रोध नहीं है।

अपने प्रति अन्याय होता दिखे तो पशु भी प्रतिकार करते हैं परंतु बाकी चारों ओर अन्याय की बाढ़ आने पर भी लोग अक्सर कन्नी काटते दिखें तो कहा जाता है कि क्या तुम्हारा खून नहीं खौलता? शास्त्रों में ऐसे अन्याय का प्रतिकार मन्यु करता है। खून का अस्थाई उबाल क्रोध है परंतु जैसा कि पिछली कड़ियों में कहा गया, मन्यु का भाव एक मानसिक अवस्था है, जोकि न तो अस्थाई है, न "स्व" से सम्बद्ध है और न ही उसके लिये क्रोध की कोई आवश्यकता है। मन्यु का भाव बालक प्रह्लाद की रक्षा के लिये नृसिंह अवतार के रूप में हिरण्यकशिपु का काल भी बन सकता है और तेलंगाना की मानवीय-आर्थिक समस्या देखकर विनोबा के रूप में विश्व का सबसे बड़ा भूदान यज्ञ भी कर सकता है। यही मन्यु भाई कन्हैया के रूप में शत्रुपक्ष की शुश्रूषा भी कर सकता है। रूप रौद्र हो, सौम्य हो या करुणामय, मन्यु के साथ बल, धैर्य, समता और सहनशीलता तो है परंतु क्रोध, द्वेष आदि कहीं नहीं हैं। मन्यु को सात्विक क्रोध कहना या तो इस जटिल गुण की प्रकृति के बारे में नासमझी  है या इस जटिल उद्गार को सहज-सम्प्रेषणीय बनाना मात्र है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई कारण ऐसा नहीं लगता कि मन्यु को क्रोध के निकट रखा जाये।
समस्य मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः। समुद्रायेव सिन्धव:।। (ऋग्वेद 8/6/4)
जैसे नदियाँ सागर को नमनपूर्वक आकर्षित होती हैं, मन्युमय इन्द्र के लिए समस्त कृष्टियाँ (विकसित मानव) वैसे ही नमनपूर्वक आकर्षित होते हैं। यहाँ सायणाचार्य द्वारा मन्यु का अर्थ नमन/स्तुति लिया गया है। ग्रंथों में जब मन्युदेव का रौद्र मानवीकरण किया गया है तब "धी" उनकी संगिनी हैं जिससे मन्यु और विवेक का सहकार सिद्ध होता है। महादेव शिव का एक नाम तिग्म-मन्यु भी है जहाँ तिग्म का अर्थ तेजस्वी या तीक्ष्ण है। अखिल भारतीय गायत्री परिवार के अनुसार अनीति से संघर्ष करने के साहस का नाम ही "मन्यु" है।
क्रोधी स्वयं अस्थिर हो जाता है। मन्युशील व्यक्ति स्वयं संतुलित मनःस्थिति में रहते हुए दुष्टता का प्रतिकार करते हैं। ~पंडित श्रीराम शर्मा
इस सप्ताहांत किसी समारोह में कुछ पुराने मित्रों से मुलाक़ात होने पर मैंने पूछा कि क्या क्रोध सकारात्मक हो सकता है। जहाँ सबने एक पल भी लिये बिना नकारात्मक उत्तर दिया वहीं एक मित्र ने बात आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा कि क्रोध वह है जिसे करने के बाद बुद्धिमान व्यक्ति को दुःख अवश्य होता है। जहाँ नेताजी की बेटी अनिता बोस फ़ैफ़ अल्पायु में अपने पिता के चले जाने के बाबत पूछने पर अपने त्याग को मामूली बताती हैं वहीं हरिलाल गांधी ने माता-पिता को सज़ा देने के लिये अपना खान-पान व चाल-चलन तो दूषित किया ही, अंततः अपना धर्म-परिवर्तन भी किया। मुझे पहले उदाहरण में शांत मन्यु दिखता है जबकि दूसरे उदाहरण में उग्र क्रोध। अनिटा को अपने पिता पर गर्व है जबकि हरिलाल को अपने पिता के राष्ट्रपिता होने से शिकायत है।
विजेषकृदिन्द्रइवानवब्रवोSस्माकं मन्यो अधिपा भवेह।
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं यत आबभूथ॥ (ऋग्वेद 10/84/5)
इन्द्र के समान विजेता, हे मन्यु! असंतुलित न बोलने वाले आप हमारे अधिपति हों! हे सहिष्णु मन्यु! हम आपके निमित्त प्रिय स्तोत्र का उच्चारण करते हैं। हम उस विधा के ज्ञाता हैं जिससे आप प्रकट होते हैं।

सदा संतुलित बोलने वाले भी क्रोधित होने पर असंतुलित हो जाते हैं। सदा सहिष्णु दिखने वाले भी क्रोधित होने पर असहिष्णु दिखने लगते हैं। परंतु मन्यु में वाक-संतुलन भी है और सहिष्णुता भी।
संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुण्श्च मन्यु:।
भियं दधाना हृदयेषु शत्रव: पराजितासो अप नि लयन्ताम्‌॥ (ऋग्वेद 10/84/7)
हे वारणीय मन्यु! आप सृजित व संरक्षित ऐश्वर्य प्रदान करें। भयभीत हृदय वाले शत्रु पराभूत होकर दूर चले जायें!

उपरोक्त व कुछ अन्य सम्बन्धित मंत्रों की व्याख्या के आधार पर निम्न सारणी में मन्यु के लक्षण व तुलनात्मक रूप में क्रोध के लक्षण समाहित करने का प्रयास है। कृपया देखिये और अपने विचारों से अवगत कराइये।
 
क्रोध मन्यु टिप्पणी
परवश समर्थ असहाय महसूस करने की अवस्था में भी क्रोध आता है। समर्थ को वह स्थिति नहीं आती
अशिष्ट विनम्र क्रोध में शिष्टाचार खो जाता है
क्षणिक आवेश स्थायी भाव क्रोध रक्त का उबाल है, मन्यु मन की धारणा/अवस्था है
क्षणिक आवेश विवेक, बुद्धि क्रोध रक्त का उबाल है, मन्यु में मन, बुद्धि, विवेक, धी है
बुद्धिनाश धी ग्रंथों में विवेकबुद्धि धी को मन्यु की सहयोगी बताया है
अहंकार निर्मम क्रोध के मूल में "मैं/मेरा" का भाव है जबकि मन्यु में परहित, जनकल्याण है
झुंझलाहट उत्साह क्रोध असंतोष का मित्र है
कायरता वीरता स्वार्थ के लिये कायर भी गाली दे सकते हैं। अन्याय के खिलाफ़ खड़े होने की वीरता के लिये क्रोध की आवश्यकता नहीं है।
वीभत्स/दयनीय रौद्र मन्यु रौद्र हो सकता है मगर क्रोध जैसा दयनीय (पिटियेबल) या वीभत्स नहीं
क्रूर दयालु क्रोध के मूल में अपने लिये दूसरों का अहित है, मन्यु के मूल में जनकल्याण है
विनाश रक्षण/सृजन क्रोध विनाशकारी है, मन्यु सृजनकारी है
स्वार्थ परमार्थ क्रोध आत्मकेन्द्रित होता है
अन्याय न्याय मेरा-तेरा से कहीं ऊपर, मन्यु न्यायप्रिय है
मेरा पक्ष साक्षी भाव मन्यु में "मेरा पक्ष" नहीं है
लिप्तता तटस्थ मैं और मेरा बनाम निष्पक्षता, न्यायप्रियता
बड़े बोल संतुलित बात ऋग्वेद 10/84/5
सूरां वाणी सारथक, कायर उपजै ताव|
कायर वाणी जोसरी, सूर न आवै साव||
(~स्व.आयुवानसिंह शेखावत)
वीरों की वाणी सदैव सार्थक होती है| कायर को केवल निष्फल क्रोध आता है| कायर मात्र जोशीले बोल बोलते है परन्तु शूरवीर थोथी बड़ाई नहीं करते|

क्रोधी आदमी कायर होता है। आपने भय को छुपने के लिए हिंसा करता है, ताकि उसे पता न चले की मैं कमजोर हूं। आपके ये हिटलर, मुसोलनी ,नादिर शाह….कायर है। बुद्ध महावीर प्रेम से भरे है उनके पास कोई हिंसा नहीं है। ~स्वामी आनंद प्रसाद "मनसा"

[सम्पन्न]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* क्रोधोपचार - निशांत मिश्र (हिन्दीज़ेन)
* मन्यु - पुराण विषय अनुक्रमणिका
* उपमन्यु - पुराण विषय अनुक्रमणिका
* दिव्य लाभ मिल गए यज्ञ से, मन्यु और सामर्थ्य भरे
* मन्यु सूक्त (यूट्यूब)