लोकमान्य के नाम से प्रसिद्ध नेता बाल गंगाधर टिळक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था. वे एक विद्वान गणितज्ञ और दर्शन शास्त्री होने के साथ-साथ महान देशभक्त भी थे. ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता की नींव रखने वाले महापुरुषों में वे अग्रगण्य थे.
उनके व्याकरणशास्त्री पिता को पुणे में शिक्षणकार्य मिलने पर वे बचपन में ही पुणे आ गये जो बाद में उनकी कर्मभूमि बना.
सन् 1876 में उन्होंने डेकन कॉलेज से गणित और संस्कृत में स्नातक की डिग्री ली और 1879 में वे मुम्बई विश्वविद्यालय से कानून के स्नातक हुए. पश्चिमी शिक्षा पद्धति से शिक्षित लोकमान्य टिळक पश्चिम के अंधे अनुकरण के विरोधी थे.
उन्होंने पुणे में एक स्कूल आरम्भ किया जो बाद में डिग्री कॉलेज तक विकसित भी हुआ और उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी बना. 1884 में उन्होंने लोकशिक्षा के उद्देश्य से डेकन एजूकेशन सोसायटी (Deccan Education Society) की स्थापना की. अंग्रेज़ी के महत्व को पहचानकर उन्होंने भारतीयों के अंग्रेज़ी सीखने पर भी विशेष ज़ोर दिया.
जनजागरण के उद्देश्य से उन्होंने मराठी में "केसरी" तथा अंग्रेज़ी में "मराठा" शीर्षक से समाचारपत्र निकाले. दोनों अखबारों ने जनता को जागृत करते हुए देश में आज़ादी की भावना को प्रखर किया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अपने लिये खतरनाक मानते हुए 1897 में पहली बार गिरफ़्तार कर 18 मास जेल में रखा.
टिळक ने 1805 के बंग-भंग का डटकर विरोध किया. विदेशी उत्पादों के बहिष्कार का उनका आंदोलन जल्दी ही राष्ट्रव्यापी हो गया. उनके सविनय अवज्ञा के सिद्धांत को गांधीजी ने भी अपनाया और इस प्रकार सत्याग्रह के बीज पनपे.
लोकमान्य टिळक एक सजग और तार्किक व्यक्ति थे. कोई भी बात हो वे तर्क नहीं छोडते थे. वे हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे परंतु धार्मिक हिंदू जुलूसों पर मुस्लिम हमले के बारे में उन्होंने 10 सितम्बर 1898 को लिखा:
दंगे-फ़साद से पहले हिंदूजन मुहर्रम जैसे उत्सवों में बढ-चढकर भाग लेते थे परंतु हिंदू उत्सवों को अपने घरों में ही सीमित रखते थे. शिवरात्रि, जन्माष्टमी, रामनवमी, रक्षा बंधन हों या गणेश चतुर्थी, हिंदू समाज उन्हें अपने अपने घरों में व्यक्तिगत उत्सव जैसे ही मनाते थे. टिळक ने गणेशोत्सव को भी एक सामाजिक रूप देने का आह्वान किया जिसकी परम्परा आज पूरे महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि बाहर भी एक सुदृढ रूप ले चुकी है.
1895 में पुणे की एक सार्वजनिक सभा में उन्होंने रायगढ में शिवाजी के स्मारक के पुनर्निर्माण के लिये एक स्मारक कोष की घोषणा की. लेकिन धार्मिक तनाव देखते हुए यह भी याद दिलाया कि समय बदल गया है और तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही पिछड रहे हैं. सन् 1916 में हिंदू मुस्लिम एकता बनाने और अंग्रेज़ों के विरुद्ध साझा संघर्ष चलाने के उद्देश्य से उन्होंने मुहम्मद अली जिन्नाह के साथ लखनऊ समझौते (Lucknow Pact) पर हस्ताक्षर किये.
सन् 1907 में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ़्तार कर छह वर्ष तक म्यानमार की माण्डले जेल में रखा जहाँ उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ श्रीमद्भग्वद्गीतारहस्य का लेखन किया. सन् 1893 में उनकी द ओरायन (The Orion; or, Researches into the Antiquity of the Vedas), तथा 1903 में आर्कटिक होम इन द वेदाज़ (The Arctic Home in the Vedas) नामक पुस्तकें प्रकाशित हुईं.
सन् 1914 में उन्होंने भारतीय स्वराज्य समिति (Indian Home Rule League) की स्थापना की और 1916 में उनका प्रसिद्ध नारा "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" प्रसिद्ध हुआ. 1918 में वे लेबर पार्टी से भारत की स्वतंत्रता के लिये सहयोग लेने ब्रिटेन गये.
लोकमान्य टिळक ने आज़ादी की किरण नहीं देखी. उनका देहावसान 1 अगस्त सन् 1920 को मुम्बई में हुआ. महात्मा गांधी ने उन्हें कहा "नव भारत का निर्माता" और नेहरू जी ने उन्हें "भारतीय स्वाधीनता संग्राम का जनक" बताया.
उनके व्याकरणशास्त्री पिता को पुणे में शिक्षणकार्य मिलने पर वे बचपन में ही पुणे आ गये जो बाद में उनकी कर्मभूमि बना.
सन् 1876 में उन्होंने डेकन कॉलेज से गणित और संस्कृत में स्नातक की डिग्री ली और 1879 में वे मुम्बई विश्वविद्यालय से कानून के स्नातक हुए. पश्चिमी शिक्षा पद्धति से शिक्षित लोकमान्य टिळक पश्चिम के अंधे अनुकरण के विरोधी थे.
उन्होंने पुणे में एक स्कूल आरम्भ किया जो बाद में डिग्री कॉलेज तक विकसित भी हुआ और उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी बना. 1884 में उन्होंने लोकशिक्षा के उद्देश्य से डेकन एजूकेशन सोसायटी (Deccan Education Society) की स्थापना की. अंग्रेज़ी के महत्व को पहचानकर उन्होंने भारतीयों के अंग्रेज़ी सीखने पर भी विशेष ज़ोर दिया.
जनजागरण के उद्देश्य से उन्होंने मराठी में "केसरी" तथा अंग्रेज़ी में "मराठा" शीर्षक से समाचारपत्र निकाले. दोनों अखबारों ने जनता को जागृत करते हुए देश में आज़ादी की भावना को प्रखर किया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अपने लिये खतरनाक मानते हुए 1897 में पहली बार गिरफ़्तार कर 18 मास जेल में रखा.
टिळक ने 1805 के बंग-भंग का डटकर विरोध किया. विदेशी उत्पादों के बहिष्कार का उनका आंदोलन जल्दी ही राष्ट्रव्यापी हो गया. उनके सविनय अवज्ञा के सिद्धांत को गांधीजी ने भी अपनाया और इस प्रकार सत्याग्रह के बीज पनपे.
लोकमान्य टिळक एक सजग और तार्किक व्यक्ति थे. कोई भी बात हो वे तर्क नहीं छोडते थे. वे हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे परंतु धार्मिक हिंदू जुलूसों पर मुस्लिम हमले के बारे में उन्होंने 10 सितम्बर 1898 को लिखा:
अगर मुस्लिम नमाज़ के समय हिंदुओं के भजन आदि बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं तो वे ट्रेन, जहाज़ और दुकानों में नमाज़ कैसे पढते हैं? यह कहना गलत है कि नमाज़ के समय मस्जिद के सामने से भजन आदि गाते हुए निकलना अधार्मिक है.
लोकमान्य टिळक का शवदाह पद्मासन में हुआ |
1895 में पुणे की एक सार्वजनिक सभा में उन्होंने रायगढ में शिवाजी के स्मारक के पुनर्निर्माण के लिये एक स्मारक कोष की घोषणा की. लेकिन धार्मिक तनाव देखते हुए यह भी याद दिलाया कि समय बदल गया है और तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही पिछड रहे हैं. सन् 1916 में हिंदू मुस्लिम एकता बनाने और अंग्रेज़ों के विरुद्ध साझा संघर्ष चलाने के उद्देश्य से उन्होंने मुहम्मद अली जिन्नाह के साथ लखनऊ समझौते (Lucknow Pact) पर हस्ताक्षर किये.
लोकमान्य टिळक के हस्ताक्षर |
सन् 1907 में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ़्तार कर छह वर्ष तक म्यानमार की माण्डले जेल में रखा जहाँ उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ श्रीमद्भग्वद्गीतारहस्य का लेखन किया. सन् 1893 में उनकी द ओरायन (The Orion; or, Researches into the Antiquity of the Vedas), तथा 1903 में आर्कटिक होम इन द वेदाज़ (The Arctic Home in the Vedas) नामक पुस्तकें प्रकाशित हुईं.
सन् 1914 में उन्होंने भारतीय स्वराज्य समिति (Indian Home Rule League) की स्थापना की और 1916 में उनका प्रसिद्ध नारा "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" प्रसिद्ध हुआ. 1918 में वे लेबर पार्टी से भारत की स्वतंत्रता के लिये सहयोग लेने ब्रिटेन गये.
लोकमान्य टिळक ने आज़ादी की किरण नहीं देखी. उनका देहावसान 1 अगस्त सन् 1920 को मुम्बई में हुआ. महात्मा गांधी ने उन्हें कहा "नव भारत का निर्माता" और नेहरू जी ने उन्हें "भारतीय स्वाधीनता संग्राम का जनक" बताया.