रानी लक्ष्मीबाई "मनु" (१९ नवम्बर १८३५ - १७ जून १८५८)
आज से डेढ़ सौ साल पहले उस वीरांगना ने अपना पार्थिव शरीर छोडा था। जिनसे देशहित में सहायता की उम्मीद थी उनमें से बहुतों ने साथ में या पहले ही जान दे दी। जब नाना साहेब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मी बाई, और खान बहादुर आदि खुले मैदान में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे तब तात्या टोपे ने इस बात को समझा कि युद्ध में सफल होने के लिए उन्हें ग्वालियर जैसे सुरक्षित किले की ज़रूरत है। अंग्रेजों के वफादार सिंधिया ने अपनी तोपों का मुँह रानी की सेना की ओर मोड़ दिया परन्तु अंततः आज़ादशाही सेना ने किले पर कब्ज़ा कर लिया। सिंधिया ने भागकर आगरा में अंग्रेजों की छावनी में शरण ली। युद्ध चलता रहा। बाद में १७ जून १८५८ को रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। ध्यान देने की बात है कि मृत्यु के समय इस वीर रानी की आयु सिर्फ़ २३ वर्ष की थी।
रानी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने तात्या टोपे को पकड़ लिया। विद्रोह को कुचल दिया गया और तात्या को बार फाँसी चढाया गया। यद्यपि तात्या टोपे पर उनके वंशजों द्वारा किये शोध के अनुसार अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए तात्या असली नहीं थे और असली तात्या टोपे की मृत्य एक छापामार युद्ध में गोली लगने से हुई थी। स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवारजन दशकों तक अँगरेज़ और सिंधिया के सिपाहियों से छिपकर दर-बदर भटकते रहे। रानी के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुँह..." से बेहतर श्रद्धांजलि तो क्या हो सकती है? अपनी वीरता से रानी लक्ष्मीबाई ने फिर से यह सिद्ध किया कि अन्याय से लड़ने के लिए महिला होना या अल्पायु होना कोई बाधा नहीं है।
ज्ञातव्य हो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में पहली महिला रेजिमेंट का नामकरण रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में किया था।
(~ अनुराग शर्मा)
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* झांसी की रानी रेजिमेंट
* सुभद्रा कुमारी चौहान
* यह सूरज अस्त नहीं होगा
* खुदीराम बासु
* रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी
* The Rani of Jhansi - Time Specialsमणिकर्णिका दामोदर ताम्बे (रानी लक्ष्मी गंगाधर राव*) |
रानी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने तात्या टोपे को पकड़ लिया। विद्रोह को कुचल दिया गया और तात्या को बार फाँसी चढाया गया। यद्यपि तात्या टोपे पर उनके वंशजों द्वारा किये शोध के अनुसार अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए तात्या असली नहीं थे और असली तात्या टोपे की मृत्य एक छापामार युद्ध में गोली लगने से हुई थी। स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवारजन दशकों तक अँगरेज़ और सिंधिया के सिपाहियों से छिपकर दर-बदर भटकते रहे। रानी के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुँह..." से बेहतर श्रद्धांजलि तो क्या हो सकती है? अपनी वीरता से रानी लक्ष्मीबाई ने फिर से यह सिद्ध किया कि अन्याय से लड़ने के लिए महिला होना या अल्पायु होना कोई बाधा नहीं है।
ज्ञातव्य हो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में पहली महिला रेजिमेंट का नामकरण रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में किया था।
(~ अनुराग शर्मा)
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* झांसी की रानी रेजिमेंट
* सुभद्रा कुमारी चौहान
* यह सूरज अस्त नहीं होगा
* खुदीराम बासु
* रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी
[मूल आलेख की तिथि: 18 जून 2009; Thursday, June 18, 2009; *चित्र ब्रिटिश लायब्रेरी से]
"खूब लड़ी मर्दानी वो झासी वाली रानी थी"
ReplyDeleteपाठ्यपुस्तको में इस रचना को खूब पढ़ा है शायद जबतक जीवन रहेगा भूल नहीं पाउँगा .
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ .आभार.
रानी लक्ष्मी बाई ने मर कर भी इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। फिर से याद दिलाने का शुक्रिया।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
श्रद्धांजलि के सुमन
ReplyDeleteसुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुंह..." से
रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी।
श्रद्धांजलि के सुमन
ReplyDeleteसुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुंह..." से
रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी।
नमन है ऐसी वीरांगनाओं को...........दो देश की खातिर प्राण दे गयी और अमर हो गयीं
ReplyDeleteआज भी रानी लक्ष्मी बाई झांसी का नाम सुन कर दिल मे कुछ करने की हिम्मत पेदा हो जाती है, हमे मान करना चाहिये इन शहिदो पर, ओर उस मान को, उस आजादी को समभांले रखना चाहिये, लेकिन आज यह सब नही हो रहा,
ReplyDeleteनमन है इस बाह्दुर नारी को जिस ने नारी हो कर शान से जीना सिखाया हम सब को
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
इस वीरांगना को नमन .आपने एक प्रेरणादायक उम्दा पोस्ट लिखा है .धन्यवाद .
ReplyDeleteAankhen bhar aayin.......dekhiye na kisi ko yaad nahi aaj ka yah balidaan divas...kya vidambna hai....
ReplyDeleteis mahat post ke liye aapka bahut bahut aabhr...
अपनी वीरता से रानी लक्ष्मीबाई ने फ़िर से यह सिद्ध किया कि अन्याय से लड़ने के लिए महिला होना या कम आयु कोई भी बाधा नहीं है।
ReplyDeleteसादर श्रद्धांजलि और नमन, उनके साथ साथ सभी रणबांकुरों को. बहुत सही लिखा है आपने.
रामराम.
इस वीरांगना को तो सदैव नमन है. आभार इस तिथि को याद दिलाने के लिए.
ReplyDeleteइस दिन को याद दिलाने के लिए abhar
ReplyDeleteवीरँगना , निडर
ReplyDeleteराणी लक्ष्मीबाई
हर भारतीय के खून मेँ
देश प्रेम और वीरता की ज्वाला प्रज्वलित कर देती है -
उन्हेँ हम कभी ना भूलेँगेँ
- लावण्या
झांसी रानी को याद करेंगे तो क्या पायेंगे
ReplyDeleteवोटों की फसल तो महारानी के परिवारीजनों को याद कर उगायेंगे
कल तक जो क्राउन के आगे घिघियाते थे
आज बन गये माननीय, क्राउन की चरणवंदना करने वालों से क्या उम्मीद लगायेंगे.
हर बार की तरह सुन्दर रोचक जानकारी .. व्यस्तता के चलते ब्लॉग जगत से काफी दूर रहा क्षमा प्राथी हूँ
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.... वाह....
ReplyDeleteकृपया शीर्षक संशोधित कर लें, लडी की जगह लदी छपा हुआ है। जानकारी के लिए आभार।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ज़ाकिर भाई, ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteअच्छा याद दिलाया आपने। झांसी मेरी एक रेल डिवीजन है। अभी तक वहां गया नहीं - हो कर आता हूं।
ReplyDeleteश्री वृन्दावनलाल वर्मा जी की पुस्तक वीरांगना लक्ष्मी बाई पर लिखी उत्कृष्ट कथा हाल ही में पढी है।
ReplyDeleteआप का लिखा भी बेहतरीन लगा Anurag Sharma bhai।
- लावण्या
श्री वृन्दावनलाल वर्मा जी की पुस्तक वीरांगना लक्ष्मी बाई पर लिखी उत्कृष्ट कथा हाल ही में पढी है।
ReplyDeleteआप का लिखा भी बेहतरीन लगा Anurag Sharma bhai।
- लावण्या
श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteशत शत वंदन वीरांगना को…
ReplyDeleteनमन है वीरांगना लक्ष्मी बाई के साहस और बलिदान को...
ReplyDeleteसादर नमन।
ReplyDeleteविरांगना रानी लक्ष्मी बाई के जन्म स्थली पर एक मूर्ति बनी है। अभी विधिवत लोकार्पण भी नहीं हो पाया है।
ReplyDeleteइसी बहाने भारत के महान व्यक्तित्व को याद करने के लिए आप को धन्यवाद...सुन्दर लेख के लिए बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मानवता अब तार-तार है
देरी के लिए माफ़ी सहित रानी लक्ष्मीबाई को याद दिलाने के लिए प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteसुंदर संक्षिप्त उपयोगी आलेख
शत शत वंदन वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को !
प्रिय बंधुवर अनुराग शर्मा जी
आभार आपका ...
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
नमन जयंती पर।
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