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Monday, June 17, 2013

खूब लड़ी मर्दानी...

रानी लक्ष्मीबाई "मनु" (१९ नवम्बर १८३५ - १७ जून १८५८)
मणिकर्णिका दामोदर ताम्बे
(रानी लक्ष्मी गंगाधर राव*)
आज से डेढ़ सौ साल पहले उस वीरांगना ने अपना पार्थिव शरीर छोडा था। जिनसे देशहित में सहायता की उम्मीद थी उनमें से बहुतों ने साथ में या पहले ही जान दे दी। जब नाना साहेब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मी बाई, और खान बहादुर आदि खुले मैदान में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे तब तात्या टोपे ने इस बात को समझा कि युद्ध में सफल होने के लिए उन्हें ग्वालियर जैसे सुरक्षित किले की ज़रूरत है। अंग्रेजों के वफादार सिंधिया ने अपनी तोपों का मुँह रानी की सेना की ओर मोड़ दिया परन्तु अंततः आज़ादशाही सेना ने किले पर कब्ज़ा कर लिया। सिंधिया ने भागकर आगरा में अंग्रेजों की छावनी में शरण ली। युद्ध चलता रहा। बाद में १७ जून १८५८ को रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। ध्यान देने की बात है कि मृत्यु के समय इस वीर रानी की आयु सिर्फ़ २३ वर्ष की थी।

रानी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने तात्या टोपे को पकड़ लिया। विद्रोह को कुचल दिया गया और तात्या को बार फाँसी चढाया गया। यद्यपि तात्या टोपे पर उनके वंशजों द्वारा किये शोध के अनुसार अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए तात्या असली नहीं थे और असली तात्या टोपे की मृत्य एक छापामार युद्ध में गोली लगने से हुई थी। स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवारजन दशकों तक अँगरेज़ और सिंधिया के सिपाहियों से छिपकर दर-बदर भटकते रहे। रानी के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुँह..." से बेहतर श्रद्धांजलि तो क्या हो सकती है? अपनी वीरता से रानी लक्ष्मीबाई ने फिर से यह सिद्ध किया कि अन्याय से लड़ने के लिए महिला होना या अल्पायु होना कोई बाधा नहीं है।

ज्ञातव्य हो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में पहली महिला रेजिमेंट का नामकरण रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में किया था।

(~ अनुराग शर्मा)
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* झांसी की रानी रेजिमेंट
* सुभद्रा कुमारी चौहान
* यह सूरज अस्त नहीं होगा
* खुदीराम बासु
* रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी
* The Rani of Jhansi - Time Specials

[मूल आलेख की तिथि: 18 जून 2009; Thursday, June 18, 2009; *चित्र ब्रिटिश लायब्रेरी से]

Thursday, June 16, 2011

वन्दे मातरम् - पितृ दिवस - जून प्रसन्न

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वर्ष का सूर्यप्रिय मास जून फिर आ गया। और साथ में लाया बहुत से विचार - जननी, जन्मभूमि के बारे में भी और पितृदेव के बारे में भी। रामायण के अनुसार, रावण का अंतिम संस्कार करने के बाद जब विभीषण ने राम को लंका का राजा बनाने का प्रस्ताव रखा था तब उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना करते हुए अनुज लक्ष्मण से कहा था:

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

सत्पुरुष सोने की लंका से निर्लिप्त रहते हुए मातृशक्ति और मातृभूमि के चरणों में ही रहना चाहते हैं। 17 जून 1858 को ऐसी ही "मर्दानी" वीरांगना मातृशक्ति ने मातृभूमि के लिये आत्माहुति दी थी। इस पावन अवसर पर रानी लक्ष्मीबाई को एक बार फिर नमन।

जहाँ मातृभूमि पर सब कुछ न्योछावर करने वाले भारतीय हैं वहीं सत्ता के दम्भी भी कम नहीं हुए हैं। चाहे गंगा में खनन रोकने के अनशन की बात पर बाबा निगमानन्द की मृत्यु हो चाहे फोर्ब्सगंज (अररिया) बिहार में गोलीबारी से अधमरे होकर धराशायी व्यक्तियों को पुलिस द्वारा पददलित किया जाना हो, सत्तारूढों की क्रूर दानवता सामने आयी है। बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन के समर्थन में अनशन पर बैठे जन-समुदाय पर चार जून की अर्धरात्रि में दिल्ली के रामलीला मैदान में सोते समय जिस तरह की कायर और क्रूर पुलिस कार्यवाही की गयी उसने एक बार फिर यह याद दिलाया कि देश का राजनैतिक नेतृत्व किस तरह से लोकतंत्र को कांख में दबाकर बैठा है।

जनतंत्र पर जून की काली छाया की बात करते समय याद आया कि 26 जून 1975 को भारत में आपात्काल की घोषणा हुई थी। 23 जून 1985 को बब्बर खालसा के आतंकवादियों ने एयर इंडिया के मॉंट्रीयल से दिल्ली आ रहे कनिष्क बोइंग 747 विमान को बम विस्फोट से उडा दिया था। 329 हत्याओं के साथ यह 9-11 के पहले की सबसे घृणित आतंकवादी कार्यवाही कही गयी थीं। 2009 में इसी मास चीन की कम्युनिस्ट सरकार और सेना द्वारा जनतंत्र/डेमोक्रेसी/मानवाधिकार की मांग करने वाले हज़ारों नागरिकों के दमन की याद भी ताज़ा हो गयी है। दिल दुखता है लेकिन याद रहे कि आखिर में हर कालिमा छंटी है, जून 2011 को दिखी यह कालिमा भी शीघ्र छंटेगी।

जून आया है तो ईसा मसीह का जन्मदिन भी लाया है। खगोलशास्त्रियों की मानें तो क्रिस्मस भी जून में ही मने। ईसा मसीह का जन्मदिन 17 जून, 2 ईसा पूर्व को जो हुआ था।

2008 में इसी मास को भीष्म देसाई जी की पहल पर आचार्य विनोबा भावे का गीता प्रवचन हिन्दी में पढना शुरू किया था जोकि 2009 को इसी मास में अपने ऑडियो रूप में पूरा हुआ।

संयोग से इसी मास संगणक की महारथी कंपनी आईबीएम (IBM) शतायु हो गयी है।

मेरे पिताजी की एक सुबह
इस 19 जून को 101वाँ पितृ दिवस है। उन सभी पुरुषों को बधाई जिन्हें पितृत्व का सुख प्राप्त हुआ है। 19 जून को ही पडने जाने वाला पर्व जूनटींथ मानव-मानव की समानता का विश्वास दिलाता है। पढने में आया है कि मेरे प्रिय नायकों पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल (11 जून 1897), आंग सान सू ची (19 जून), इब्न ए इंशा (15 जून), बाबा नागार्जुन (30 जून), पॉल मैककॉर्टनी (18 जून) और ब्लेज़ पास्कल (19 जून) के जन्म दिन का शुभ अवसर भी है। मैं प्रसन्न क्यों न होऊँ?

मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवः, अतिथि देवो भवः, ...
पितृदिवस की शुभकामनायें!


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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* जून का आगमन
* ४ जून - सर्वहारा और हत्यारे तानाशाह
* खूब लड़ी मर्दानी...
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* जन्म दिवस की शुभकामनाएं
* १९ जून, दास प्रथा और कार्ल मार्क्स
* तिआनमान चौक, बाबा नागार्जुन और हिंदी फिल्में
* अण्डा - बाबा नागार्जुन
* दो कलाकारों का जन्म दिन - नीलम अंशु
* फोटो फीचर-बाबा नागार्जुन (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

Friday, November 19, 2010

1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

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मणिकर्णिका दामोदर ताम्बे (रानी लक्ष्मी गंगाधर राव)
(१९ नवम्बर १८३५ - १७ जून १८५८)

मात्र 23 वर्ष की आयु में प्राणोत्सर्ग करने वाली झांसी की वीर रानी लक्ष्मी बाई के जन्मदिन पर अंतर्जाल से समय समय पर एकत्र किये गये कुछ चित्रों और पत्रों के साथ ही सेनानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ओजस्वी कविता के कुछ अंश:

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी - 1850 में फोटोग्राफ्ड 

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
युद्धकाल में रानी लिखित पत्र 

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
युद्धकाल में रानी लिखित पत्र

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी का पत्र डल्हौज़ी के नाम

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
मनु के विवाह का निमंत्रण पत्र

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अमर चित्र कथा का मुखपृष्ठ्

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झांसी की रानी की आधिकारिक मुहर 
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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