लगभग एक वर्ष पहले जब हमारे मित्र श्री भीष्म देसाई ने विनोबा भावे द्वारा १९३२ में धुले जेल में दिए गए गीता प्रवचन के वाचन के बारे में बात की तब हम दोनों ने ही यह नहीं सोचा था कि प्रभु-कृपा से यह काम शीघ्र ही संपन्न हो जाएगा। देसाई जी ने पिट्सबर्ग में रहते हुए अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर भारत से इस पुस्तक की चार भाषाओं में अनेकों प्रतियाँ मंगवाईं और सभी संभावित वाचकों में बाँटीं। आर्श्चय की कोई बात नहीं है, देसाई दंपत्ति हैं ही ऐसे। इससे पहले, अपनी बेटी की शादी में उन्होंने चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित गीता का सम्पूर्ण अनुवाद एवं व्याख्या का एक-एक सेट प्रत्येक अतिथि को दिया था। मैं शादी में भारत नहीं जा सका था सो मेरे लिए वे उसे वापस आने पर घर आकर दे गए।
मैंने गीता की विभिन्न व्याख्याएं पढीं हैं। कुछ विद्वानों की लिखी हुई और कुछ भक्तों (गुरुओं) की लिखी हुई। (क्या कहा, मार्कस बाबा की व्याख्या - जी नहीं, वे इतने भाग्यशाली नहीं थे कि हम तक पहुँच पाते।) दोनों ही प्रकारों की अपनी-अपनी सीमायें हैं। मगर विनोबा की व्याख्या में वे सभी बातें स्पष्ट समझ में आती हैं जिनकी अपेक्षा उन जैसे भक्त, विद्वान् और क्रांतिकारी से की जा सकती है । मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि जीवन में सफलता की आकांक्षा रखने वाले हर व्यक्ति को विनोबा जी का यह भाषण सुनना चाहिए।
मैंने गीता की विभिन्न व्याख्याएं पढीं हैं। कुछ विद्वानों की लिखी हुई और कुछ भक्तों (गुरुओं) की लिखी हुई। (क्या कहा, मार्कस बाबा की व्याख्या - जी नहीं, वे इतने भाग्यशाली नहीं थे कि हम तक पहुँच पाते।) दोनों ही प्रकारों की अपनी-अपनी सीमायें हैं। मगर विनोबा की व्याख्या में वे सभी बातें स्पष्ट समझ में आती हैं जिनकी अपेक्षा उन जैसे भक्त, विद्वान् और क्रांतिकारी से की जा सकती है । मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि जीवन में सफलता की आकांक्षा रखने वाले हर व्यक्ति को विनोबा जी का यह भाषण सुनना चाहिए।
हिन्दी में सम्पूर्ण पाठ अनुराग शर्मा के स्वर में निम्न पोस्ट पर उपलब्ध है: पिट-ऑडियो पर सुनें |
सहेज लिया समय मिलने पर सुना जाएगा !
ReplyDeleteज़रूर सुनेंगे जी।
ReplyDeleteबहुत आभार इसके लिए.
ReplyDeleteइस भेंट के लिए आभार और साधुवाद.
ReplyDeleteबहुत आभार आपका इस लिंक के लिये. इसे सुनकर लाभ अवश्य ऊठायेंगे और आपने स्वर दिया है तो अवश्य इसका आनंद द्विगुणित हो गया होगा.
ReplyDeleteरामराम.
लो जी, टिप्पणी करने लगे और लाईट चली गई......खैर बाद में आकर विनोबा जी का ये भाषण सुनते है.
ReplyDeleteआपका प्रयास अति स्तुत्य है. हिन्दी और भारतीय दर्शनशास्त्र पर आपका वाचन , सोच और कार्य सभी सराहनीय है. कृपया जारी रखें.
ReplyDeleteमेने तो यह सुंदर प्रवचन पहले भी सुने है, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
आज शाम को ही सुनना संभव हो पायेगा. आभार !
ReplyDeleteइस धरोहर से रूबरू करवाने के लिए आभार।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हमेशा की तरह अनूठी और सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसाधुवाद
अनुराग भाई, आभार ..
ReplyDeleteअभी लिंक सहेजा है ..
ध्यान से सुनूंगी
- लावण्या
Anuraag bhai,kya yah mail dwara prapt kar saktee hun.....
ReplyDeleteAapki aabhari rahungi...
बेहतरीन प्रस्तुति.. अनुराग जी....
ReplyDeleteसुन्दर और अनूठी संस्कारिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
आप हर बार चकित करते हैं अनुराग जी...अपने काव्य से, अपनी लेखनी से, अपनी बेमिसाल जानकारियों के खजाने से...
ReplyDeleteसुनता हूँ फुरसत में
an alien among flesheaters की क्या प्रगति है?
अनुराग जी, आपकी आवाज मे गीता का प्रस्तावना सुन रहा हूँ,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी जिस ब्लॉग पर मिली है वह, केवल प्रयोग के लिये बनाया था।
उस पेज पर संगीत एच पी की वेब साइट से आ रहा है, जिसको बन्द किया जा सकता है। और मेरा गीता के श्लोकों वाला ब्लॉग http://gita.rcmishra.com पर उपलब्ध है।
आपका ई-मेल पता नही मिला इसलिये टिप्पणी का उत्तर टिप्पणी के माध्यम से दे रहा हूँ।
धन्यवाद।
Jarur sunenege . aabhar.
ReplyDeleteसुंदर, अति सुंदर.
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