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Wednesday, September 1, 2010

जन्माष्टमी और पर्युषण पर्व की शुभकामनायें!

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिः ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥



वृन्दावन में भगवान के चित्र लिये एक बालगोपाल

[Photo by Anurag Sharma - चित्र अनुराग शर्मा]

Wednesday, June 24, 2009

प्रभु की कृपा, भयऊ सब काजू...

लगभग एक वर्ष पहले जब हमारे मित्र श्री भीष्म देसाई ने विनोबा भावे द्वारा १९३२ में धुले जेल में दिए गए गीता प्रवचन के वाचन के बारे में बात की तब हम दोनों ने ही यह नहीं सोचा था कि प्रभु-कृपा से यह काम शीघ्र ही संपन्न हो जाएगा। देसाई जी ने पिट्सबर्ग में रहते हुए अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर भारत से इस पुस्तक की चार भाषाओं में अनेकों प्रतियाँ मंगवाईं और सभी संभावित वाचकों में बाँटीं। आर्श्चय की कोई बात नहीं है, देसाई दंपत्ति हैं ही ऐसे। इससे पहले, अपनी बेटी की शादी में उन्होंने चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित गीता का सम्पूर्ण अनुवाद एवं व्याख्या का एक-एक सेट प्रत्येक अतिथि को दिया था। मैं शादी में भारत नहीं जा सका था सो मेरे लिए वे उसे वापस आने पर घर आकर दे गए।

मैंने गीता की विभिन्न व्याख्याएं पढीं हैं। कुछ विद्वानों की लिखी हुई और कुछ भक्तों (गुरुओं) की लिखी हुई। (क्या कहा, मार्कस बाबा की व्याख्या - जी नहीं, वे इतने भाग्यशाली नहीं थे कि हम तक पहुँच पाते।) दोनों ही प्रकारों की अपनी-अपनी सीमायें हैं। मगर विनोबा की व्याख्या में वे सभी बातें स्पष्ट समझ में आती हैं जिनकी अपेक्षा उन जैसे भक्त, विद्वान् और क्रांतिकारी से की जा सकती है । मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि जीवन में सफलता की आकांक्षा रखने वाले हर व्यक्ति को विनोबा जी का यह भाषण सुनना चाहिए।

हिन्दी में सम्पूर्ण पाठ अनुराग शर्मा के स्वर में निम्न पोस्ट पर उपलब्ध है: पिट-ऑडियो पर सुनें

Thursday, November 13, 2008

चीनी दमन और तिब्बती अहिंसा

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महामहिम दलाई लामा की अगुयाई में अगले हफ्ते से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला नगर में निर्वासित तिब्बतियों के एक-सप्ताह तक चलने वाले एक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. हमेशा की तरह कम्युनिस्ट चीन ने पहले से ही बयानबाजी करके भारत पर राजनैतिक दवाब डालना शुरू कर दिया है. एक तरफ़ चीन ने भारत को याद दिलाया कि वह इस सम्मेलन को भारत भूमि पर हो रहा एक चीन विरोधी कार्यक्रम मानेगा वहीं दूसरी ओर चीन ने कहा कि भारत की बताई उत्तरी सीमा को उसने कभी नहीं माना है खासकर पूर्वोत्तर में.

दशकों से निर्वासन में जी रहे हमारे उत्तरी पड़ोसी देश के नागरिकों की देश वापस लौटने की आस अभी भी ज्वलंत है. भले ही उनके प्रदर्शन हमारे अपने भारतीयों के प्रदर्शनों की तरह हिंसक न हों मगर उनका जज्बा फ़िर भी प्रशंसनीय है.

मुझे तिब्बतियों से पूर्ण सहानुभूति है और मुझे अहिंसा में उनके दृढ़ विश्वास के प्रति पूर्ण आदर भी है. मगर अहिंसा की उनकी परिभाषा से थोडा सा मतभेद है. मेरा दिल उनके लिए यह सोचकर द्रवित होता है कि तानाशाहों की नज़र में उनकी अहिंसा सिर्फ़ कमजोरी है. मुझे बार-बार यह लगता है कि अहिंसा के इस रूप को अपनाकर वे एक तरह से तिब्बत में पीछे छूटे तिब्बतियों पर चीन के दमन को अनजाने में सहारा ही दे रहे हैं.

अहिंसा के विचार का उदय और विकास शायद भारत में ही सबसे पहले हुआ. गीता जैसे रणांगन के मध्य से कहे गए ग्रन्थ में भी अहिंसा को प्रमुखता दिया जाना यह दर्शाता है कि अहिंसा की धारणा हमारे समाज में कितनी दृढ़ है. परन्तु हमारी संस्कृति में अहिंसा कमजोरी नहीं है बल्कि वीरता है. और गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन की मोह के वश आयी छद्म-अहिंसा की अवधारणा को तोड़ते हुए उसे थोपे गए युद्ध में अपने ही परिजनों और गुरुजनों का मुकाबला करने के लिए कहा था.
दूसरे अध्याय में भगवान् कहते हैं:

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥२- ३८॥

सुख-दुख, लाभ-हानि, जय और पराजय को समान मानकर युद्ध करते हुए पाप नहीं लगता. आख़िर सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान मानने वाला किसी से युद्ध करेगा ही क्यों? युद्ध के लिए निकलने वाला पक्ष किसी न किसी तरह के त्वरित या दीर्घकालीन सुख या लाभ की इच्छा तो ज़रूर ही रखेगा. और इसके साथ विजयाकान्क्षा होना तो प्रयाण के लिए अवश्यम्भावी है. अन्यथा युद्ध की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है. तब गीता में श्री कृष्ण बिना पाप वाले किस युद्ध की बात करते हैं? यह युद्ध है अन्याय का मुकाबला करने वाला, धर्म की रक्षा के लिए आततायियों से लड़ा जाने वाला युद्ध. आज या कल तिब्बतियों को निर्दय चीनी तानाशाहों के ख़िलाफ़ निष्पाप युद्ध लड़ना ही पडेगा जिससे बामियान के बुद्ध के संहारक तालेबान समेत दुनिया भर के तानाशाहों को आज भी हथियार बेचने वाला चीन बहुत समय तक तिब्बत की बौद्ध संस्कृति का दमन न कर सके.

दलाई लामा - चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा
चित्र: अनुराग शर्मा
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दलाई लामा