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शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।
राज सभी पर अपना था।
चलते हुक्म हमारे थे।।
गुड्डे-गुडियाँ, गेंदें-गोली।
ईद, बिहू और पोंगल, होली।।
सब त्यौहार मनाते थे।
हम कितना इतराते थे।।
जीवन सुख से चलता था।
बिन मांगे सब मिलता था।।
दिन वैभव से कटते थे।
ऐसे ठाठ हमारे थे।।
शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।
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गुजरे दिन याद करते हो, मियाँ?
ReplyDeleteआप ने तो बचपन की याद दिला दी...
ReplyDeleteआप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
सुन्दर सलोनी कविता
ReplyDeleteमैंने भी इसी विषय पर एक कविता अभी कुछ दिन पूर्व ही अपने ब्लॉग पर पोस्ट की थी.
ReplyDeleteविषय-वस्तु की समानता और बचपन की महानता के गुणगान हेतु आपका आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
हमेशा यही बात सताती है भाई ...............बहुत सही चीज याद दिलाई....
ReplyDeleteबहुत सही पल याद दिलायी ....................बहुत बहुत शुक्रिया........
ReplyDeleteWah....अच्छी कविता है अनुराग जी
ReplyDeleteबापन तो वैसे भी जीवन का स्वर्णिमकाल कहलाता है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ओहो..कितनी प्यारी और कोमल कविता रची है आपने. काश वो शैशव काल वापस लौट पाता. अब तो सपने मे भी नही झांकता वो समय. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर कविता जो बचपन की याद दिलाती है
ReplyDeleteबचपन के दिन भी क्या दिन थे.बहुत सुंदर लिखा जी आप ने.
ReplyDeleteधन्यवाद
वो दिन भी क्या दिन थे जब पसीना गुलाब था, अब तो गुलाब से भी पसीने की बू आती है !!
ReplyDeleteबचपन की बात, भी क्या बात है !!
स्वप्न मंजूषा 'अदा'
http://swapnamanjusha.blogspot.com/
क्य कुरेद दिया मित्र!
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteशैशव सा नहीँ कुछ भी सलोना
- लावण्या
शैशव का सुन्दर चित्रण किया है।
ReplyDeleteबधाई।
खुशनसीब हैं आप जो ऐसा बचपन मिला। यहाँ तो करोड़ों बचपन कब बुढा जाते हैं पता ही नहीं चलता। टोकरी में धोती में लिपटे बचपन, अंगूठे के सहारे ही बडे होते हैं। हमारे काल में तो लम्बी-चौडी फोज हुआ करती थी, किसकी चाहतों का ध्यान रखते माता-पिता। बस वैसे ही पल गए। आपके बचपन के लिए बधाई।
ReplyDeleteइसको संयोग ही कहूंगा कि अभी अभी जो पोस्ट मैंने डाली है वह भी बच्चों की खुशी को लेकर है.
ReplyDeleteअम्मा डांट लगाती थीं
ReplyDeleteदादी हमें बचाती थीं
अपने हाथों आंगन में
चावल दूध खिलाती थीं।
(भाई आपकी कविता ने बचपन याद दिला दिया। लेकिन तब हमारे गांव में मम्मी-पापा नहीं होते थे। अम्मा और बाबूजी होते थे। दादी जी होती थीं।)
बहुत खूब |
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