.कल पटना के एक भारतीय मित्र से बात हो रही थी. हमेशा की तरह बात राजनीति की तरफ फिसल गयी और तब मित्र ने विश्वास से कहा कि जब उच्च-शिक्षित लोग राजनीति में आयेंगे तो देश का भला होगा. जब मैंने "उच्च शिक्षित" शब्द का अभिप्राय जानना चाहा तो उनका उत्तर था, "जैसे आई आई टी से पढ़े हुए इंजिनीयर आदि..."
अगर आज उन्हें आई आई टी कानपुर से पढ़े हुए इंजिनीयर नित्यानंद गोपालिका के बारे में पता लगता तो शायद काफी तकलीफ पहुँचती. पूर्णिया का यह तीस-वर्षीय नौजवान पेंसिलवेनिया राज्य विश्व विद्यालय के प्रांगण में रहता है और जीई में प्रतिष्टित पद पर है. इंटरनेट पर एक तेरह वर्षीय बालिका से मैत्री करके कई दिनों तक उससे वार्तालाप करता रहा.
यह जानते हुए भी कि बालिका नाबालिग़ है, गोपालिका ने उससे अश्लील वार्तालाप भी किये और वेबकैम पर अपने अमान्य चित्र भी भेजे. बाद में ऐसा लगा जैसे कि बालिका उसकी बातों में आ गयी और तब पहले से नियत समय पर वह बुरे इरादे से पिट्सबर्ग के एक उपनगर में आ पहुँचा.
मज़ा तब आया जब वहां उसे किसी बालिका की जगह चाइल्ड प्रीडेटर दल के पुलिस अधिकारी मिले जिनका काम ही उस जैसे लोगों को सही रास्ते पर पहुँचाना है. आज उसके मुक़दमे की पहली सुनवाई थी. ख़बरों से ऐसा लग रहा है कि अब तक ऐसे २६० अपराधियों को पकड़ने वाले दल ने पहली बार एक भारतीय नागरिक को गिरफ्तार किया है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय नर बहुत भले हैं या फिर दूसरे भारतीय पकडे नहीं गए हैं. बस इतना है कि वे भारतीय अमरीकी नागरिकता ले चुके हैं.
कुछ लोग कह सकते हैं कि इस घटना में कोई भी अपराध हुआ नहीं मगर अपराधों के मूल में पाई जाने वाली पाशविक प्रवृत्ति तो उभरी ही, ज़रुरत है उसे नियंत्रण में करने की और मुझे खुशी है कि स्थानीय पुलिस ने यह कर्त्तव्य बखूबी निभाया.
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा। हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है।]
अगर आज उन्हें आई आई टी कानपुर से पढ़े हुए इंजिनीयर नित्यानंद गोपालिका के बारे में पता लगता तो शायद काफी तकलीफ पहुँचती. पूर्णिया का यह तीस-वर्षीय नौजवान पेंसिलवेनिया राज्य विश्व विद्यालय के प्रांगण में रहता है और जीई में प्रतिष्टित पद पर है. इंटरनेट पर एक तेरह वर्षीय बालिका से मैत्री करके कई दिनों तक उससे वार्तालाप करता रहा.
यह जानते हुए भी कि बालिका नाबालिग़ है, गोपालिका ने उससे अश्लील वार्तालाप भी किये और वेबकैम पर अपने अमान्य चित्र भी भेजे. बाद में ऐसा लगा जैसे कि बालिका उसकी बातों में आ गयी और तब पहले से नियत समय पर वह बुरे इरादे से पिट्सबर्ग के एक उपनगर में आ पहुँचा.
मज़ा तब आया जब वहां उसे किसी बालिका की जगह चाइल्ड प्रीडेटर दल के पुलिस अधिकारी मिले जिनका काम ही उस जैसे लोगों को सही रास्ते पर पहुँचाना है. आज उसके मुक़दमे की पहली सुनवाई थी. ख़बरों से ऐसा लग रहा है कि अब तक ऐसे २६० अपराधियों को पकड़ने वाले दल ने पहली बार एक भारतीय नागरिक को गिरफ्तार किया है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय नर बहुत भले हैं या फिर दूसरे भारतीय पकडे नहीं गए हैं. बस इतना है कि वे भारतीय अमरीकी नागरिकता ले चुके हैं.
कुछ लोग कह सकते हैं कि इस घटना में कोई भी अपराध हुआ नहीं मगर अपराधों के मूल में पाई जाने वाली पाशविक प्रवृत्ति तो उभरी ही, ज़रुरत है उसे नियंत्रण में करने की और मुझे खुशी है कि स्थानीय पुलिस ने यह कर्त्तव्य बखूबी निभाया.
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा। हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है।]
इस शर्मनाक समाचार को मैं ने भी पढ़ा। हम जानते हैं कि यहाँ भारत में तलाश करने पर ऐसे सैंकड़ों लोग मिल जाएंगे। लेकिन उन्हें पकड़ने वाला शायद ही कोई पुलिस में मिले।
ReplyDeleteभारतीय पुलिस इस तरह प्रोएक्टिव रूप से काम करे तो आश्चर्य ही होता। वह तो अपराध होने की राह देखती है और उसके बाद भी बहुत कोंचने पर हरकत में आती है। अब भी उसका नजरिया ब्रिटिश काल का है जब उसे जनता के दमन के लिए इस्तेमाल किया गया था। आम आदमी पुलिस के पास जाने से डरता है।
ReplyDeleteभारत में पुलिस रिफोर्म तो बहुत उलझा हुआ और कठिन मामला है, पर इसे कभी-न-कभी तो करना ही होगा।
अन्य देशों की पुलिस की इस तरह के अच्छे कारनामों की जानकारी शायद भीरत में पुलिस सुधार की प्रक्रिया में त्वरण लाए।
अनुराग जी,
ReplyDeleteबहुत ही दुःख देने वाला समाचार है यह, ख़ास करके जब इतने शिक्षित लोग इस तरह की हरकत करें तो हमारा सर शर्म से झुक जाता है, फिर भी ईश्वर का धन्यवाद है कि ऐसे संस्कारहीन लोगों की संख्या कम है, इसके बावजूद आपके मित्र का यह कहना की उच्च-शिक्षा प्राप्त लोगों को राजनीति में जाना चाहिए, बिलकुल दुरुस्त है, आज भारत को ऐसे ही नेताओं की आवश्यकता है जो तकनिकी ज्ञान रखते हों, जैसे स्वस्थ्य मंत्री अगर चिकित्सक हो तो उसे स्वस्थ्य सम्बन्धी मुश्किलें समझ में आसानी से आयंगी, उसी प्रकार अन्य विभागों में भी ऐसी ही आसानी रहेगी साथ ही कोई भी ऐरा गैरा मंत्री को बेवकूफ नहीं बना पायेगा क्योंकि मंत्री महोदय को अपने पोर्टफोलियो का पूरा ज्ञान होगा...
आपका लेख हमेशा की तरह जागरूकता पूर्ण और ज्ञानवर्धक है... आपका धन्यवाद...
यों तो पुलिस में किसी न किसी का भाई-भतीजा मौजूद है,
ReplyDeleteपरन्तु इन पुलिसवीलों में मानवीय भावनाएँ शून्य से भी
नीचे पहुँच चुकी हैं।
अफसोस.....।
बुरे फंसे नित्य आनन्द लेने की हसरत वाले! :-)
ReplyDeleteइस तरह की मानसिकता रखने वाले लोग सब जगह हैं......... पढ़े लिखे या अनपढ़ कोई भी हो सकत है........ आर इस बात से कोई भी इनकार नही करेगा की राजनीति में अच्छे लोग आने चाहिएं...........
ReplyDeleteशर्मनाक।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जैसा कि 'अदा' जी ने कहा आपका लेख हमेशा की तरह जागरूकता पूर्ण और ज्ञानवर्धक है... और मुझे लगा कि संक्षिप्त रखने के कारण ही आपने इसके एक पहलू पर ही फोकस किया इस वजह से इस कडी में उस पहलू पर चर्चा नहीं हो पाई जिस विषय से इस परिचर्चा का प्रारंभ हुआ था । पर सार यही है कि बुरे व्यक्ति पढ लिख कर भी बुरे ही होते हैं और उन्हें काल कोठरी ही जाना पडता है जो उनकी शाश्वत जगह है।
ReplyDeleteअब क्या कहें. कितने शर्म की बात है. पर कितने ही मामले तो शायद कभी सामने ही नही आते?
ReplyDeleteरामराम.
अरे - हमने ये खबर देखी ही नहीं थी - आपकी बात सही है -
ReplyDeleteयहाँ की पुलिस, कई ऐसे मजनू बने ,नालायकों को पकड़ती है
भारतीय मूल के कई लोगों के विचित्र किस्से सुने हैं
- लावण्या
अब क्या कहा जाये, शर्म, शर्म
ReplyDeleteवाकया शर्मसार है.....फिर भी मै आपके मित्र से बात से इत्तिफाक रखता हूँ की पढ़े लिखे लोगो को ही राजनीति में आना चाहिए ..
ReplyDeletekhi pdha tha har ameer vykti bura nhi hota ,aur har greeb vykti achha nhi hota .theek isi tarh har pdha likha smjhdar nhi hota aur har anpdh aadmi nasmjh nhi hota .jb mansikta vikrat ho to sb jhahi hai .kitu kuch hi apwad hote hai aise .
ReplyDeletepadhe likhe aur hunar vale vyktiyo ko rajniti me aana hi chahiye .
thtakthit pdhe likhe logo ki aisi kartuto ko sbke samne lane ke liye abhar .
अनुराग जी,
ReplyDeleteपढ़कर यह ठेस तो जरूर पहुँचती है कि एक बालिका के साथ यह व्यवहार अनाचार/कदाचार के श्रेणी का ही है और उसमें लिप्त एक भारतीय तो हमारी गरिमा को भी धक्का लगता है।
लेकिन एक बात मूल रूप से सामने आती है कि अनैतिक क्रिया-कलापों का शिक्षा से कोई लेना देना नही है, यह भ्रम ही है कि आदमी को शिक्षा सही और गलत में फर्क करना सिखा देती है वस्तुतः फर्क कर पाना ही नही चलेगा उसे अमल में भी लाने कि जरूरत है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ीआज् आपकी पिछली सभी पोस्ट पढ बहुत बडिया जानकारी है और इस पोस्ट ने तो झक झोर कर रख दिया क्या से क्या होता जा रहा है इन्सान दुखद आभार्
ReplyDeleteसही खबर जुटाई है |
ReplyDeleteसंस्कृत का पढ़े-लिखे लोगों पे एक श्लोक याद आया :
"मणिना भूषित सर्पः किमसो न भयंकरः ?"
यह खबर पढ़कर तो... क्या कहें लोग ऐसे घिनौने काम करते हैं और नाम डूबा देते हैं. नालायक कहाँ नहीं होते !
ReplyDeleteयह पाशविक प्रवृति आदिम युग से है..... खत्म हो पायेगी क्या.............. कुल मिलाकर शर्मनाक...
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