यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो न निराश करो मन को
संभलो कि सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को, नर हो न निराश करो मन को
काव्यपाठ 1956 (चित्र सौजन्य: आकाशवाणी) |
गुप्त जी का विवाह सन 1895 में 10 वर्ष की अल्पायु में हो गया था। तब बाल-विवाह प्रचलित थे जिनमें विवाह संस्कार बाल्यावस्था में हो जाता था और युवावस्था में गौना करने की परंपरा थी।
परतंत्रता के दिनों में उनकी ओजस्वी लेखनी अनेक भारतीयों की प्रेरणा बनी। स्वतंत्रता संग्राम के समय वे कई बार जेल भी गए।
भारत को स्वतन्त्रता मिलने पर उन्हें पद्म भूषण के अतिरिक्त उन्हे मंगला प्रसाद पारितोषिक भी मिला। स्वतंत्र भारत सरकार ने उन्हें "राष्ट्रकवि" का सम्मान दिया था। 1947 में वे संसद सदस्य बने और 12 दिसंबर 1964 को अपने देहावसान तक सांसद रहे।
गुप्त जी की रचना "आर्य" से कुछ पंक्तियाँ:
हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिल कर, ये समस्याएँ सभी
भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ, फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ
सम्पूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है, उसका कि जो ऋषि-भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
यह पुण्य-भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं, विद्या, कला, कौशल्य, सबके जो प्रथम आचार्य हैं
सन्तान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े, पर चिह्न उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े
नमन महान कवि को. अच्छा किया आपने याद दिला दी. बीबीसी पर एक बार उनकी आवाज़ सुनने को मिला था. आप भी सुनिए अगर यह आपने नहीं सुना होगा पहले -
ReplyDeletehttp://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2012/12/121226_poets_bbc_archive_vv.shtml?s
धन्यवाद! यह लिंक काम नहीं कर रहा है।
Deleteमैंने यहाँ पोस्ट की हुई लिंक को ही खोला और मेरे लिए यह काम कर रहा है (गूगल क्रोम).
Deleteआश्चर्य की बात है कि मैं भी क्रोम में ही देख रहा हूँ और लगातार निम्न संदेश आ रहा है:
Deleteऐसा कोई पन्ना उपलब्ध नहीं है
खेद है!
ऐसा कोई पन्ना उपलब्ध नहीं है.
कृपया यूआरएल एक बार जाँच लें और सुनिश्चित करें कि इसमें कोई कैपिटल लेटर्स या स्पेस नहीं हैं. यह भी संभव है कि जिस पेज की तलाश आप कर रहे हों वह अब उपलब्ध न हो. हटा दिया गया हो या अपडेट कर दिया गया हो.
कृपया एक बार फिर खोजें.
या तो पेज के सबसे ऊपर मौजूद नेविगेशन बार की मदद लें. या फिर हमारी साइट और सेवाओं की पूरी सूची देखें.
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के पहले पन्ने पर चलें.
जबकि एक बार IE में कोशिश की तो सही जगह पहुँच गया। धन्यवाद!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteकविता के महान वाहक को नमन ... नर हो न निराश करो मन को .... कुछ काम करो कुछ काम करो ... इन पक्तियों से शायद ही कोई अनजाना होगा ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आख्यान। श्री मैथिलीशरण गुप्त को ह्रदय से नमन। वाकई उनका रचना-संसार गदगद करता है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा। अभी लिंक भी देखते हैं। धन्यवाद।
ReplyDeleteराष्ट्रीय कवि की यह पंक्तियाँ सदा ही मन को प्रेरणा से भर देती हैं... उन्हें शत शत नमन !
ReplyDeleteआदरणीय दद्दा को शत शत नमन
ReplyDeleteसार्थक सहेजने योग्य पोस्ट , महाकवि को नमन
ReplyDeleteपूरे युग को अपने अपनी कविता -पुकार से जगा देनेवाले राष्ट्र- कवि का संदेश अब भी उतना ही प्रासंगिक है !
ReplyDeleteहिन्दी कविता के इतिहास में उनके इस योगदान को नमन !
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट !
प्रेरक रचना के रचनाकार महाकवि के जीवन परिचय के लिए आभार !
ReplyDeleteएक महान कवि का परिचय पाकर धन्य हुए... हमारे लिये ये सच्चे भारत-रत्न हैं! नमन!!
ReplyDelete