हान्स क्रिश्चियन एंडरसन लिखित मार्मिक कथा "माचिस वाली नन्ही बच्ची" डैनिश भाषा में दिसंबर 1845 में पहली बार छपी थी। तब से अब तक अनेक भाषाओं में इसके अनगिनत संस्करण आ चुके हैं। इस कथा पर आधारित संगीत नाटक भी हैं और इस पर फिल्में भी बनी हैं। पहली बार पढ़ते ही मन पर अमिट छाप छोड़ देने वाली यह कहानी मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक है। मेरे शब्दों में, इस कथा का सार इस प्रकार है:
नववर्ष की पूर्व संध्या, हाड़ कँपाती सर्दी। दो पैसे की आशा में वह नन्ही सी निर्धन बच्ची सड़क पर माचिस बेच रही थी। बेतरह काँपती उस बच्ची को शायद ठंड पहले से ही जकड़ चुकी थी। इतनी सर्दी में उसे घर पर होना चाहिए था लेकिन वह डरती थी कि अगर एक भी माचिस नहीं बिकी तो उसका क्रूर पिता उसे बुरी तरह पीटेगा। जब ठंड और कमजोरी के कारण चलना भी दूभर हो गया तो वह एक कोने में जा बैठी।
सर्दी बढ़ती जा रही थी। बचने का कोई उपाय न देखकर उसने गर्मी के प्रयास में एक तीली जलाई। आँखों के सामने रोशनी छा गई। उस प्रकाश-पुंज ने उसके सपने मानो साकार कर दिये हों। उसे क्रिसमस ट्री और अनेक उपहार दिखाई दिये। उसे अच्छा लगा। खुश होकर उसने सिर ऊपर उठाया तो आकाश में एक तारा टूटता दिखा।
उसे याद आया कि उसकी दादी, जो अब इस दुनिया में नहीं थीं, ये कहती थीं कि जब कोई तारा टूटता है तो उसका मतलब होता है कि कोई अच्छा इंसान मरा है और अब स्वर्ग जा रहा है। उसे अपनी दादी सामने दिखीं। ये लो, उसकी तीली तो बुझ भी गई। और बुझते ही दादी भी अंधेरे में गुम हो गईं। वह फिर सर्दी से काँपने लगी। उसने एक और तीली जलाई। कुछ गर्माहट हुई और प्रकाश में दादी फिर से दिखने लगीं।
वह तीलियाँ जलाती रही ताकि उसकी दादी कहीं दूर न हो जाएँ। जब उसकी अंतिम तीली बुझने लगी तो दादी ने उसे गोद में उठा लिया और अपने साथ स्वर्ग ले गईं।
[समाप्त]
हान्स क्रिश्चियन एंडरसन (विकीपीडिया से साभार) |
सर्दी बढ़ती जा रही थी। बचने का कोई उपाय न देखकर उसने गर्मी के प्रयास में एक तीली जलाई। आँखों के सामने रोशनी छा गई। उस प्रकाश-पुंज ने उसके सपने मानो साकार कर दिये हों। उसे क्रिसमस ट्री और अनेक उपहार दिखाई दिये। उसे अच्छा लगा। खुश होकर उसने सिर ऊपर उठाया तो आकाश में एक तारा टूटता दिखा।
उसे याद आया कि उसकी दादी, जो अब इस दुनिया में नहीं थीं, ये कहती थीं कि जब कोई तारा टूटता है तो उसका मतलब होता है कि कोई अच्छा इंसान मरा है और अब स्वर्ग जा रहा है। उसे अपनी दादी सामने दिखीं। ये लो, उसकी तीली तो बुझ भी गई। और बुझते ही दादी भी अंधेरे में गुम हो गईं। वह फिर सर्दी से काँपने लगी। उसने एक और तीली जलाई। कुछ गर्माहट हुई और प्रकाश में दादी फिर से दिखने लगीं।
वह तीलियाँ जलाती रही ताकि उसकी दादी कहीं दूर न हो जाएँ। जब उसकी अंतिम तीली बुझने लगी तो दादी ने उसे गोद में उठा लिया और अपने साथ स्वर्ग ले गईं।
[समाप्त]
काश तीलियाँ अलादीन की तीलियाँ होती ।
ReplyDeleteतलछट तक भीगो गई यह कथा।
ReplyDeleteपहली बार पढ़ी यह कथा...सचमुच बहुत मार्मिक कथा है..बच्चों पर होते अन्याय का कितना कटु चित्रण इसमें हुआ है. आभार इससे परिचित करवाने के लिए
ReplyDeleteबहुत मार्मिक।
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeleteकितनी करुण !
ReplyDeleteबेहद मार्मिक लगी मुझे यह कहानी !
ReplyDeleteवह तीलियाँ जलाती रही ताकि उसकी दादी कहीं दूर न हो जाएँ। जब उसकी अंतिम तीली बुझने लगी तो दादी ने उसे गोद में उठा लिया और अपने साथ स्वर्ग ले गईं।
यह अंतिम पंक्तियाँ मन को छू गई वाकई !
हर दुख में एक सुख निहित है--हर एक अंधेरे में एक किरण--प्रकृति का नियम.
ReplyDeleteये तीलियां जलती रहें.
पहली बार ही पढ़ रहा हूँ ये कहानी पर बहुत ही मार्मिक .... दिल को छूती हुयी गुज़रती है ...
ReplyDeleteशुक्रिया इस संवेदनशील कहानी के लिए ...
उम्दा और बेहतरीन रचना के बारे में अवगत कराने के लिए शुक्रिया... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
मार्मिक रचना
ReplyDeleteकाश कि वो तीलियाँ भगवन कृष्ण के द्रोपदी को दिए गए पात्र की तरह होतीं की जो कभी खत्म ही न हों ! मार्मिक कथा
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